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पेगासस मामले में केंद्र सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने बनाई विशेष जांच समिति

पेगासस जासूसी मामले में सुप्रीम कोर्ट से मोदी सरकार को बड़ा झटका लगा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से कहा गया है कि पेगासस केस की जांच होगी और कोर्ट ने जांच के लिए एक्सपर्ट कमेटी का गठन भी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश के हर नागरिक की निजता की रक्षा होनी चाहिए, अगर निजता का उल्लंघन हुआ है तो इसकी जांच होनी चहिए। सोशन मीडिया पर भी लोग इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। रवीश कुमार ने भी ट्वीट कर रहा है कि द वायर की पत्रकारिता और पत्रकारिता की चाह रखने वालों की ऐतिहासिक जीत हुई है। गोदी मीडिया में काम करने वालों को मेरी एक सलाह है। अपने गोदी संपादकों/ऐंकरों की आँखों में देखिएगा जब वे नज़रें बचाकर दबे पाँव न्यूज़ रूम में चल रहे होंगे। गोदी मीडिया भारत के लोकतंत्र का हत्यारा है।

 

इस जांच समिति में आलोक जोशी, पूर्व आईपीएस अधिकारी (1976 बैच), जस्टिस आरवी रविंद्रन पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज और संदीप ओबेराय अध्यक्ष, उप समिति (अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग/संयुक्त तकनीकी समिति) शामिल है। ये स्वतंत्र जांच में शामिल रहेंगे।

तीन तकनीकि सदस्यीय भी होंगे इसमें शामिल

1.डॉ नवीन कुमार चौधरी, प्रोफेसर (साइबर सुरक्षा और डिजिटल फोरेंसिक) और डीन, राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात।

2.डॉ. प्रभारन पी., प्रोफेसर (इंजीनियरिंग स्कूल), अमृता विश्व विद्यापीठम, अमृतापुरी, केरल।

3.डॉ अश्विन अनिल गुमस्ते, इंस्टीट्यूट चेयर एसोसिएट प्रोफेसर (कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे, महाराष्ट्र।

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने अपने आदेश में कहा गया है कि

1.निजता के अधिकार और बोलने की स्वतंत्रता पर कथित रूप से प्रभाव पड़ रहा है, जिसकी जांच की जानी चाहिए।

2.संभावित दुष्प्रभाव के कारण इस तरह के आरोपों से नागरिक प्रभावित हैं।

3. प्रतिवादी भारत संघ द्वारा की गई कार्रवाइयों के संबंध में कोई स्पष्ट रुख नहीं लिया गया है।

4. विदेशों द्वारा लगाए गए आरोपों और विदेशी पार्टियों की संलिप्तता को गंभीरता से लिया गया।

5. संभावना है कि इस देश के नागरिकों को निगरानी में रखने में कोई विदेशी प्राधिकरण, एजेंसी या निजी संस्था शामिल है।

6. आरोप है कि केंद्र या राज्य सरकारें नागरिकों के अधिकारों से वंचित करने की पक्षकार हैं।

7. रिट क्षेत्राधिकार के तहत तथ्यात्मक की सीमा। उदाहरण के लिए नागरिकों पर तकनीक के उपयोग का प्रश्न, जो कि अधिकार क्षेत्र का तथ्य है, विवादित है और इसके लिए और अधिक तथ्यात्मक जांच की आवश्यकता है।

आपको बता दें कि पेगासस जासूसी मामले में निष्पक्ष जांच के लिए 15 याचिकाएं दायर की गई थीं। ये याचिकाएं वरिष्ठ पत्रकार एन राम, सांसद जॉन ब्रिटास और यशवंत सिन्हा समेत कई लोगों ने दायर की थीं। बेंच ने 13 सितंबर को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उस वक्त कोर्ट ने कहा था कि वह सिर्फ ये जानना चाहता है कि क्या केंद्र ने नागरिकों की कथित जासूसी के लिए अवैध तरीके से पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया या नहीं?

पेगासस जासूसी मामला आखिर है क्या?

पेगासस एक जासूसी सॉफ्टवेयर का नाम है, जिसे इजरायली सॉफ्टवेयर कंपनी एनएसओ ग्रुप ने बनाया है। इस सॉफ्टवेयर के जरिए ग्लोबली 50,000 से ज्यादा फोन को टारगेट किया जा चुका है। इसमें 300 भारतीय भी शामिल हैं। भारत समेत दुनिया के 17 अखबारों-पोर्टल्स पर ये खबर छपी। इसमें द गार्डियन, वॉशिंगटन पोस्ट जैसे प्रतिष्ठित अखबार शामिल हैं। भारत से ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल द वायर को ये डेटा मिला। पेगासस जासूसी के शिकार 40 भारतीय पत्रकार समेत राहुल गांधी और प्रशांत किशोर के फोन की जासूसी की जा रही थी। इसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्र जांच के आदेश दिये हैं। 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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