दिल्ली विश्वविद्यालय के गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ.चरणजीत सिंह सचदेव का कोरोना के कारण 14 दिसम्बर शाम 7:30 बजे निधन हो गया, जिससे साहित्य जगत शोकाकुल है। डॉ. चरणजीत दिल्ली विश्वविद्यालय से अध्ययन कर दिल्ली विश्वविद्यालय में ही सह आचार्य के पद पर अध्यापन कार्य कर रहे थे। उनकी सेवानिवृत्ति में भी अभी 5 साल शेष था, परंतु आकस्मिक उनका चले जाना हिंदी साहित्य जगत के लिए दुख का विषय है।
डॉ.चरणजीत का स्वभाव बेहद सरल सहज व स्नेहपूर्ण था, वह जिससे भी मिलते आत्मीय रूप से मिलते थे। प्रत्येक व्यक्ति को वह अपने से लगते थे। स्टाफ मेंबर एवं छात्र सबके प्रिय व्यक्ति एकमात्र डॉ.चरणजीत सिंह थे। डॉ.चरणजीत के गुरु मार्गदर्शक हिंदी साहित्य के मूर्धन्य आलोचकों में से एक विश्वानाथ त्रिपाठी थे, जिनका आचरण का बहुत कुछ हिस्सा चरणजीत में भी था। छात्रों की हर तरह से मदद किया करते थे। पैसे से लेकर अकादमिक जगत में किस तरह से अपना परिचय कराना है, यह सब उनकी रचनात्मकता के उदाहरण है। आज जिनकी किताबें पढ़कर शोधार्थी विद्यार्थी अपना अध्ययन पूरा करते हैं, उन सभी साहित्यकारों के साथ चरणजीत का आत्मीय व्यवहार था। डॉक्टर नगेंद्र विश्वनाथ त्रिपाठी, नित्यानंद तिवारी, निर्मला जैन, तारकनाथ बाली, महेंद्र कुमार आदि सब के पास बैठकर साहित्य पढ़ने समझने का अवसर मिला। इसी सब का फल था वह फकीरी नुमा जिंदगी जीते थे।
सबके लिए उत्तम सोचते थे। किसी का बुरा ना चाहते थे, ना करते थे। हमेशा मनमोहक मुस्कान उनके चेहरे पर होती थी। चरणजीत की निराला के साहित्य पर पीएचडी है। संत साहित्य पर भी उनका काम है। भाषा विज्ञान पर एक पुस्तक है एवं अनेकों शोध आलेख विभिन्न पत्रिकाओं से प्रकाशित हुए हैं। डॉ.चरणजीत साहित्य जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उनके जैसा वक्तव्य अब विरले ही सुनने को मिलेगा इसके अलावा चरणजीत गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज में स्पोर्ट्स विभाग का कार्य भी देखते थे। अपने कॉलेज जीवन में वह क्रिकेट के उम्दा खिलाड़ी थे। इसलिए यूनिवर्सिटी खेलने के लिए उनका चयन लगातार होता रहा। फिर जब खालसा कॉलेज में प्राध्यापक हुए तब वह खुद कॉलेज की टीम के मार्गदर्शक हुए। इस दौरान उन्होंने खालसा कॉलेज को कई अवार्ड से नवाजा स्पोर्ट्स क्षेत्र में भी उनकी ख्याति उतनी है जितनी कि साहित्य जगत में यहां भी टूर्नामेंट में इनके बुलावे पर अतिथि रूप में कपिल देव जैसे नामी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी शिरकत किया करते थे। आज क्रिकेट का मैदान भी सुना है और साहित्य जगत भी। शोकाकुल सबको हंसाने वाले निराश व्यक्ति के भीतर झट से आशा का संचार पैदा कर देने वाले चरणजीत ऐसे जाएंगे, यह अविश्वसनीय है। आप हमेशा लोगों के हृदय में वास करें।
Be the first to comment on "डॉ.चरणजीत ने साहित्य जगत में ही नहीं बल्कि क्रिकेट में भी बनाई थी पहचान"