SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

दिल्ली का निजामुद्दीन इन दिनों सुर्खियों में कैसे आया? कैसे होने लगी धार्मिक सियासत?

दिल्ली का निजामुद्दीन पहले सभी के बीच इतना चर्चा में नहीं आया होगा, जितना अभी सुर्खियों में आ गया है। धार्मिक आयोजन ने सभी का ध्यान इसलिए इस ओर डाल दिया, क्योंकि इस आयोजन से कोरोना को इस तरह सह मिली कि उसने कई सौ लोगों को खतरे में डाल दिया और अब तक इसमें शामिल 24 लोगों में कोरोना के संक्रमण का मामला सामने आया है। बता दें कि निजामुद्दीन में मुस्लिम संस्था तबलीगी जमात का मुख्यालय है जहां मार्च में यह आयोजन शुरू हुआ था। इसमें हजारों लोग इकठ्ठा हुए थे। और लॉकडाउन के दौरान भी बड़ी संख्या में लोग वहीं रह रहे थे।

दिल्ली में पहले ही अरविंद केजरीवाल ने तमाम लोगों को एक साथ इकठ्ठा होने के लिए मना किया था। इसके बावजूद उस समय इतने लोगों के एक साथ इकठ्ठा होने पर प्रशासन पर भी सवाल उठने लगे हैं। कोरोना संक्रमण के समय निजामुद्दीन के हॉट स्पॉट बनने पर सोशल मीडिया पर इस आयोजन के साथ ही धार्मिक रूप से इसकी आलोचना करने का साधन लोगों ने बना लिया। तबलीगी जमात के प्रेस रिलीज के अनुसार जनता कर्फ्यू के एलान पर ही इस कार्यक्रम को रोक दिया गया था। लेकिन लॉकडाउन की स्थिति में काफी संख्या में लोग वापिस नहीं जा सके। पुलिस ने आरोप लगाया है कि बिना अनुमति के इस तरह के आयोजन हुए। लेकिन पुलिस पर इससे बड़ा सवाल उठने लगता हैकि आखिर दिल्ली पुलिस इन चीजों से कैसे अनजान रही? और अगर उसे पता था तो उसने इस समय इस कार्यक्रम के आयोजन को लेकर क्यों नहीं कोई कदम उठा सकी?

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का यह कहना कि आयोजन करने के बारे में पता चलने के बाद लॉकडाउन का उल्लंघन करने के लिए नोटिस जारी किया गया, आयोजन के बाद पुलिस को पता चलना पुलिस की ओर से भी बड़ी चूक के रूप में सामने है। हालांकि पुलिस को जब कोरोना के लक्षण उन आयोजन में शामिल लोगों में पाए जाने की जानकारी मिली तो उनका टेस्ट करवाया गया। रविवार को ही जानकारी मिली कि इस आयोजन में विदेशी भी शामिल रहे तो दिल्ली पुलिस औऱ सीआरपीएफ के अधिकारी मेडिकल टीम लेकर पहुंच गए। दिल्ली पुलिस ने तबलीगी जमात के मुख्य केंद्र के साथ इस इलाके को पूरी तरह सील कर दिया है।

सुर्खियों में है यह मामला?

यह मामला इसलिए भी सुर्खियों में है क्योंकि तेलंगाना सरकार ने माना है कि उनके यहां कोरोना की वजह से हुई मौतों में से जिन 6 लोगों की मौत हुई वे लोग निजामुद्दीन में हुए धार्मिक आयोजन में शामिल हुए थे। इसी वजह से बीबीसी की खबर के अनुसार इस धार्मिक आयोजन में शामिल 700 लोगों को क्वारंटीन में रखा गया है जबकि 335 लोगों को अस्पताल में निगरानी में रखा गया है। चूंकि जब धार्मिक आयोजन चल रहा था तो ऐसे समय दिल्ली सरकार ने 5 से ज्यादा लोगों के इकठ्ठे होने पर रोक लगाई थी, इसलिए आयोजकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश भी की है।

अलजजीरा के रिपोर्ट के मुताबिक मलेशिया में कोरोना संक्रमण के मामलों में से करीब दो-तिहाई मामलों में तबलीगी जमात के आयोजन से जुड़े लोग थे। मलेशिया के कुआलालंपुर की मस्जिद में 27 फरवरी से एक मार्च के बीच तबलीगी जमात का धार्मिक आयोजन हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान, सिंगापुर मलेशिया में भी इसी वजह से कई लोग संक्रमण के शिकार हुए जो कि इसी धार्मिक आयोजन के हिस्सा रहे।

तबलीगी जमात मुसलमानों से कैसे जुड़ा है?

तबलीगी जमात मुस्लिम समुदाय के लोगों का धार्मिक संस्था है, जो हर साल राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलसे का आयोजन करता है, जिसे इज्तिमा कहते हैं। तबलीगी शब्द का मतलब धर्म का प्रचार करना होता है। इसे मरकज भी कहते हैं। कहीं-कहीं इज्तमा लिखा मिलेगा तो कहीं इज्तिमा और कहीं इज्तेमा। इसलिए कन्फ्यूज नहीं होना है। यह बस बोलने-लिखने का तरीका है. तीनों शब्द अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही हैं। अगर अर्थ में जाएं तो इज्तिमा-इज्तमा या इज्तेमा अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसका मतलब है कई लोगों का एक जगह पर इकट्ठा होना। तब्लीगी का मतलब है अल्लाह के संदेशों का प्रचारक।

हरियाणा का जो मेवात इलाका है, वह काफी पहले से मुस्लिम इलाका है। इन्हें मेव मुसलमान कहते हैं। एक दौर में भारत में बहुत तेजी के साथ धर्मांतरण हुआ था। पहले लोग मुस्लिम बने। इसके बाद जब ब्रिटिश शासन आया तो मिशनरी ने ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार शुरू किया। 1920 के आस-पास मेवात में भी मिशनरी कार्यक्रम जोर पकड़ने लगा। लोग इस्लाम छोड़ने लगे।  नहीं भी छोड़ते तो धीरे-धीरे तौर-तरीके भूलने लगे। कई बार कई मामलों में उहापोह की स्थिति रहती।
दिल्ली के निजामुद्दीन में एक नौजवान ने धर्म शिक्षा के साथ-साथ फारसी और अरबी की भी अच्छी तालीम हासिल कर ली थी। कुरान को रट लिया था और इसकी हर शिक्षा को समझता-बूझता था। लोग उससे धार्मिक मसले पर शक-शुबहा हल करने आते थे। तब का यह काफी चर्चित नौजवान था। मेवात के साथ-साथ देश भर में जो हो रहा था उसकी खबर इसके कानों तक भी पहुंचती थी तो इस्लाम को बचाने के लिए ख्याल आया की जगह-जगह ऐसी बैठकी होनी चाहिए ताकि लोग इस्लाम के तौर-तरीके न भूलें। इस तरह 1927 में तब्लीगी जमात की स्थापना हुई। इस शख्स का नाम था, मोहम्मद इलियास कांधलवी

कौन मोहम्मद कांधलवी?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के गांव कांधला से 1303 हिजरी यानी 1885/1886 में मोहम्मद इलियास की पैदाइश हुई। उनके पिता मोहम्मद इस्माईल थे और मां सफिया थीं। बचपन में ही बच्चे ने कुरान में दिलचस्पी ली और काफी हिस्से पढ़ डाले और याद कर लिए। इसके बाद दिल्ली के निजामुद्दीन में पूरी कुरान याद कर ली। यहीं अरबी और फारसी को भी पढ़ा। 1908 में मोहम्मद इलियास ने दारुल उलूम में दाखिला लिया।

जमात का मतलब है समूह। तब्लीगी जमात का मतलब हुआ, अल्लाह के संदेश को बताने वालों का समूह। तब्लीगी जमात से जुड़े लोग पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं. इसका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनिया भर में 15 करोड़ सदस्य हैं। 20वीं सदी में तब्लीगी जमात को बड़े इस्लामी आंदोलन के तौर पर माना गया था। हालांकि यह धर्म प्रचार से अधिक कुछ नहीं था।

धर्म प्रचार के लिए बैठक करने वाली जगह को मरकज़ कहते हैं जिसका अरबी में अर्थ सभा की तरह लगाया जाता है।  हरियाणा के नूंह (मेवात) से 1927 में शुरू हुए इस तब्लीगी जमात की पहली मरकज 14 साल बाद हुई। 1941 में 25 हजार लोगों के साथ पहली बैठक आयोजित हुई और फिर यहीं से ये पूरी दुनिया में फैल गया। विश्व के अलग-अलग देशों में हर साल इसका वार्षिक कार्यक्रम आयोजित होता है, जिसे इज्तिमा कहते हैं।

इज्तिमा के दौरान उन बातों पर चर्चा होती है जिनसे एक मुसलमान दीन के रास्ते पर बेहतर ढंग से चल सके। इस दौरान शादी के दौरान होने वाले ख़र्चों को लेकर चर्चाएं होती हैं, जैसे ख़र्चीली शादियों से समाज को किस तरह के नुक़सान होते हैं और इस्लाम इस बारे में क्या कहता है। इसी दौरान बड़ी संख्या में निकाह भी संपन्न कराए जा सकते हैं, जो कि बिना दहेज के होते हैं। कुछ इस तरह की चर्चाएं होती हैं कि इस्लाम के मुताबिक़ किसी को अपना रोज़ाना का जीवन कैसे जीना चाहिए।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

Be the first to comment on "दिल्ली का निजामुद्दीन इन दिनों सुर्खियों में कैसे आया? कैसे होने लगी धार्मिक सियासत?"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*