ब्रज के रंग हजार, ब्रज में सबकुछ कृष्ण के लिए है और कृष्ण का सब कुछ सबके लिए है। यही मथुरा है। इसकी महिमा शब्दों में नहीं बल्कि भावनाओं में हैं। कवि रसखान ने हर मनुष्य की अभिलाषा अपने एक पद में समेट दी और लिखा कि मानुष हौं तो वही रसखान, बसौ ब्रज गोकुल गांव के ग्वालन। यानी कोई मनुष्य हो तो वह ब्रज का रहने वाला हो जो गोकुल गांव के ग्वालों के बीच रहता है।
होली के आसपास हजार रंगों वाले इसी ब्रज मंडल में धूम मची है। रंग में सराबोर चेहरे, फूलों की तरह खिले मन और ब्रज रज में सनी स्नेह भरी आत्मा एक अलग ही उल्लास में डूबी है। और ऐसा हो भी क्यों न, जहां देश भर सिर्फ फागुन पूर्णिमा को होली मनाता है ब्रजमंडल महीने भर पहले से ही होली के उल्लास में डूब जाता है। इस पूरे दौरान आठ तरह की होली यहां के हुड़दंग में रंग भरती है। जानिए यहां के कैसे-कैसे रंग-
लड्डू की होली
ब्रज में लड्डुओं की होली से विशेष आयोजन की शुरुआत होती है। होली के दौरान पूरा ब्रजमंडल एक बार फिर द्वापरयुग में पहुंच जाता है। लड्डुओं की होली एक तरीके से होली खेलने के लिए दिया जाने वाला आमंत्रण है। इसकी शुरुआत बरसाना गांव से होती है। बरसाना की राधा प्रतीक तौर पर नंदगांव लड्डू लेकर जाती हैं। उनके यहां पहुंचते ही नंदगांव के हुरियारे हुड़दंग शुरू कर देते हैं। लड्डूभरी मीठी-मीठी होली खेलने और देखने का अलग ही मजा है। ब्रज में यह होली हो चुकी है। इस तरह होली का निमंत्रण स्वीकार कर लिया गया है।
लट्ठमार होली
ब्रजमंडल का दूसरा आकर्षण है लट्ठमार होली। यह होली मुख्यतः बरसाना की होली है। होली का निमंत्रण स्वीकार कर लेने के बाद नंदगांव के हुरियारे बरसाना पहुंचते हैं। वह गोपिकाओं को रंग में सराबोर करना शुरू करते हैं। अपना बचाव करती हुई गोपिकाएं उन्हें लाठी से मारती हैं। इससे बचने के लिए हुरियारे कपड़े की बनी ढाल से अपना बचाव करते हैं। नाचते-गाते ढोलक-मृदंग की थाप पर रंगों की ये बरसात उमंग भर देती है।
फूलों की होली
होली की शुरुआत फूलों की होली से मानी जाती है। मान्यता है कि रमणरेती से ही भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी के साथ होली खेलने की शुरुआत की थी। इसके लिए पहले उन्होंने फूलों से राधा रानी का श्रृंगार किया और इस क्रम में उन्हें पूरी तरह फूलों से सराबोर कर दिया। ब्रजमंडल की सभी गोपिकाएं इसमें शामिल रहीं और इस फूल वाली होली का आनंद लिया। वर्तमान में फूलों की होली खेलना राधा-कृष्ण से होली पर्व की अनुमति लेना और उन्हें इस उल्लास में आमंत्रित करने का पर्व है, जिसमें सारा ब्रज उमड़ पड़ता है।
दुल्हेंदी होली या सोटे वाली होली
ब्रज की यह होली भी बेहद खास होती है। इसके जरिए पारिवारिक और सामाजिक ताने-बाने में रंग भरने की कवायद की जाती है। इस होली के दौरान देवर भाभियों पर रंग डालते हैं और भाभियां उन्हें कपड़ों के बने रंग में डूबे सोटे से पीटती हैं। देवर बचने की कोशिश करते हैं और फिर रंग फेंकते हैं। इस पूरे दौरान होली की मस्ती में डूबे लोकगीत अलग ही उल्लास घोलते हैं।
रंगो की होली
रंगों की होली का क्रम ब्रज में वैसे तो महीने भर चलता रहता है। लेकिन धुलैंडी के दिन खेली जाने वाली यह होली खास होती है। पूरा ब्रज रंगों में डूबा दिखता है। मथुरा, गोकुल, बरसाना, वृंदावन, रमणरेती में लोग आपस में तो होली खेलते ही हैं, एक-दूसरे के गांव भी पहुंचते हैं। मथुरा में इस दिन राधा-क़ृष्ण को कई प्रकार के व्यंजनों का भोग लगता है और फिर रंग खेला जाता है।
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