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डीजल की जगह हो सोलर पंप का इस्तेमाल, सरकारें करें किसानों की मदद

पर्यावरण पर काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस इंडिया की नई रिपोर्ट

कृषि, ऊर्जा आधारित क्षेत्र है। किसान सिंचाई के लिए मुख्य रूप से डीजल और इलेक्ट्रिक पंपों पर निर्भर रहते हैं। हालांकि इस क्षेत्र में डीजल और इलेक्ट्रिक पंप का भारी इस्तेमाल आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं में इजाफा करता है। डीजल पंप जीवाश्म इंधनों के दोहन पर निर्भर करता है।  राज्य सरकारें डीजल सब्सिडी पर खर्च उठाती हैं। किसानों की ईंधन लागत को बढ़ाता है और जहरीले धुएं को छोड़ता है, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है और मनुष्य का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। वहीं दूसरी तरफ, राज्य सरकारों के द्वारा मुफ्त या सब्सिडी पर मिलने वाली बिजली से चलने वाले इलेक्ट्रिक पंप भी वृहद रूप से जीवाश्म ईंधन पर ही निर्भर हैं, जो राज्य की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) पर काफी ज्यादा बिल का बोझ डालती है। ये अनियमित भी हैं और पंपों के ज्यादा इस्तेमाल के कारण भूमिगत जल की कमी में एक मुख्य कारक हैं। आज जब बढ़ती अप्रत्याशित जलवायु स्थतियों में सिंचाई की आवश्यकता निश्चित है तो डीजल और इलेक्ट्रिक पंप लंबे समय तक टिकने वाले समाधानों में नहीं हो सकते।

ग्रीनपीस इंडिया ने अपनी नई रिपोर्ट में कृषि के सौर्यकरण पर जोर देते हुए चार राज्यों के सौर्य कृषि मॉडलों का अध्ययन पेश किया है। ग्रीनपीस की रिपोर्ट के अनुसार, “सौर सिंचाई भारत के नवीकरणीय ऊर्जा की ओर सुधारों का एक अहम हिस्सा है। 2022 तक भारत के 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा को प्राप्त करने के लक्ष्य में 100 गीगावाट सौर ऊर्जा पर आधारित होगा।”

 

वैशाली (बिहार) का सौर्य कृषि मॉडल: लालपुरा, बनिया और हरहरो

साल 2012 में, बिहार सरकार ने सौर सिंचाई के लिए एक योजना बिहार सौर क्रांति सिंचाई योजना (BSKSY) लॉन्च की थी, जिससे राज्य में पर्याप्त सिंचाई के अभाव को हल किया जा सके। इस योजना का लक्ष्य छोटे और अत्यंत छोटे किसानों को छोटे पंपों के साथ 2 KWp क्षमता का सोलर पैनल प्रदान करना था। बिहार सौर क्रांति सिंचाई योजना (BSKSY) के लिए नोडल एजेंसी बिहार रिन्युएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (BREDA) ने नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के 30 फीसदी सब्सिडी के अतिरिक्त 60 फीसदी सब्सिडी उपलब्ध कराई, जिससे कुल सब्सिडी 90 फीसदी पहुंच गई। हालांकि खेतों की सिंचाई के लिए उपयुक्त पंप काफी छोटे पाए गए।

बिहार के वैशाली जिले में सिंचाई योजनाओं को लागू करवाने वाली वैशाली कृषक समिति (वासफा)  के येके शर्मा के अनुसार, “बिहार सौर क्रांति सिंचाई योजना प्रभाव डालने में नाकाम रही।”

इसी दरमियां जर्मनी की एक एजेंसी, जो भारत के पूर्वी क्षेत्रों में सोलर पंप मुहैया करवाने का काम कर रही थी, वह वैशाली के किसान संगठन वास्फा के संपर्क में आई कंपनी ने साल 2014 में बिहार के वैशाली जिले में इस सेवा वितरण मॉडल को लागू करना शुरू किया था। GIZ ने पंपों की सप्लाई और रखरखाव सर्विस के लिए क्लैरो एनर्जी के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया था। क्लैरो एनर्जी ने VASFA को शक्ति पंप्स द्वारा निर्मित दो 5 HP AC सोलर सबमर्सिबल पंप और सभी पंपों के लिए  4.8 KW की क्षमता वाले सोलर पैनल को उपलब्ध कराए।

लालपुरा गांव और बनिया गांव में स्थित डीजल पंपों को सौर सिंचाई पंपों के साथ बदल दिया। लालपुरा गांव में सौर सिंचाई पंप योजना के 40 लाभार्थी सदस्य हैं। वहीं बनिया गांव में इस योजना के 23 लाभार्थी हैं। लालपुरा गांव में जगह की कमी के कारण सोलर पैनलों को स्थायी कर दिया गया है, वहीं बनिया में रोटेटेबल है जिससे आसानी से सौर किरणों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

योजना के लाभार्थी राकेश पासी कहते हैं, “सौर सिंचाई पंपों का प्रबंधन और संचालन हम किसानों के समूह द्वारा किया जाता है। किसानों का समूह बनाया जाता है। प्रत्येक समूह के पास उसी समूह से चुना हुआ एक नेता होता है, जो पंप की निगरानी और सर्विस चार्ज को इकट्ठा करता है। इसके अलावा पंप के रोजाना संचालन के लिए ऑपरेटर होता है। समूह के सदस्यों को प्रमुखता से पानी सप्लाई किया जाता है और उसके बाद पानी की वितरित मात्रा पर सर्विस चार्ज के साथ आसपास के किसानों को दिया जाता है।”

 

गुजरात का ढ़ुंडी

राज्य सरकार ने किसानों के लिए जून 2018 में सौर्यशक्ति किसान योजना लॉन्च की थी। इस योजना के तहत किसानों को बिजली कनेक्शन के साथ सोलर पैनल दिया जाता है. इसमें राज्य और केंद्र सरकार कुल लागत का 60 फीसदी सब्सिडी देती है, किसानों को 5 फीसदी देना होता है, वहीं 35 फीसदी राशि कर्ज के रूप में उपलब्ध करा दी जाती है।

गांव में 40 डीजल पंप हैं जिससे साल भर सिंचाई की जरूरत को पूरा किया जाता है. जमीन के कागजी मुद्दों के कारण, गांव में किसान सिंचाई के लिए बिजली नहीं पा सके। अंतत, दिसंबर 2015 में 6 सदस्यों के साथ ढुंडी सौर ऊर्जा उत्पादक सहकारी मंडली को स्थापित किया गया। मंडली ने कुल 56.4 KWp क्षमता के 6 ग्रिड-कनेक्टेड सौर सिंचाई पंपों को लगाया, जिससे सिंचाई सुनिश्चित और ग्रिड से सौर ऊर्जा की निकासी हो सके। यह मंडली औपचारिक रूप से फरवरी 2016 में पंजीकृत हुई, इसे विश्व का पहला सोलर कोऑपरेटिव माना जाता है।

ग्रीनपीस की शोध के मुताबिक, अगर यह योजना सफलतापूर्वक पूरे राज्य में लागू हो जाती है तो किसानों को बिजली पर सब्सिडी उपलब्ध कराने से राज्य सरकार को फायदा पहुंचेगा। वर्तमान में अभी राज्य सरकार किसानों को 50 पैसे प्रति यूनिट की दर से बिजली पहुंचा रही है। सोलर प्रोजेक्ट में निवेश के बाद किसान को सब्सिडी वाले बिजली कनेक्शन को छोड़ना पड़ेगा।

तामिलनाडु का इरुंबई 

तमिलनाडु में सोलर गांव के लिए योजना 2015 में ऑरोविल कंसल्टिंग (AVC) के साथ शुरू हुई थी। इरुंबुई को इसलिए चुना गया क्योंकि इस क्षेत्र में लंबे समय तक बिजली की कटौती आम बात है।

इस प्रोजक्ट के दो उद्देश्य हैं- पहला, गांव का सौरकरण करना और दूसरा, बिजली के उपकरणों जैसे बल्ब और पंखों के बदले ऊर्जा दक्ष उपकरणों (कम बिजली खपत वाले) का इस्तेमाल करना।  तमिलनाडु सरकार की ऊर्जा विभाग की पॉलिसी नोट 2016-17 के मुताबिक, “यह प्रमाणित करने के लिए कि किसी गांव को सौर ऊर्जा के जरिये 100 फीसदी बिजली की जरूरत को पूरा किया जा सकता है, इस उद्देश्य के लिए पायलट आधार पर विल्लुपुरम जिले के इरुंबई गांव को चुना गया। और इसे पूरा करने के लिए 206.1 लाख रुपये की कुल लागत से 170 KW क्षमता के ग्रिड-कनेक्टेड सौर ऊर्जा प्लांट लगाने का सरकारी आदेश जारी किया गया है।”

इरुंबई में सोलर गांव के मॉडल में समुदायिक स्वामित्व का एक तत्व भी है, जो न सिर्फ इस प्रोजेक्ट से गांव को वित्तीय मुनाफा सुनिश्चित करता है बल्कि यह इरुंबई के लोगों के लिए स्वामित्व और पहचान का भाव भी स्थापित करता है।

 

महाराष्ट्र का रालेगण सिद्धि

अण्णा हजारे की वजह से मशहूर रालेगण सिद्धि की पहचान में एक और कीर्तिमान जुड़ गया है। 2017 में महाराष्ट्र सरकार ने रालेगण सिद्धि के पंचायत से बातचीत कर गांव में एक सौर ऊर्जा प्रोजेक्ट को लगाने का प्रस्ताव दिया। यह इलाका महाराष्ट्र के सूखा प्रभावित हिस्सों में है और यहां पिछले दशक से खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। सिंचाई के लिए गांव में दिन के समय बिना रुकावट बिजली आपूर्ति के वादे से लोगों का समर्थन मिला और गांव के पंचायत ने प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी।

रालेगण सिद्धि के निवासी अमोल जेंदे कहते हैं, “हर व्यक्ति को बिजली की जरूरत होती है। नियमित बिजली आपूर्ति के कारण इस प्रोजेक्ट से हमारा भला हुआ है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक हमें पूरी बिजली मिलती है. शाम 6 बजे के बाद, हमें घरेलू कामों के लिए सिंगल फ्यूज मिलता है।”

महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में सिंचाई के सौरकरण के लिए अतिसक्रिय दृष्टिकोण दिखाया है। किसानों को मध्यम आकार के सौर सिंचाई पंपों के लिए सब्सिडी प्रदान करने वाली योजना पर किसानों की प्रतिक्रिया सम्मानजनक नहीं रही। यद्यपि राज्य सरकार जरूरी बदलावों के साथ इस योजना को जारी रख सकती है, जहां एकल सौर सिंचाई पंपों के लिए प्रतिक्रिया उत्साहविहीन रही है, उन इलाकों में सरकार कृषि पंपों के लिए बिजली सुनिश्चित करने के लिए एक वैकल्पिक योजना लागू कर रही है जिसमें छोटे सौर प्लांट का निर्माण किया जाता है। इन दोनों योजनाओं से सिंचाई के लिए बिजली की बेहतर पहुंच सुनिश्चित हुई है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

सरोज
लेखक फिलहाल स्वतंत्र पत्रकार हैं। पहले नेटवर्क 18, आजतक डिजिटल और न्यूज नेशन के साथ काम कर चुके हैं।

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