दिल्ली के सियासी मैदान में इस बार पहले के मुक़ाबले कड़ा मुक़ाबला होने की उम्मीद लगाई जा रही है। तक़रीबन 20 वर्षों बाद दिल्ली की मुखिया बनी शीला दीक्षित अपने पराजय की हिसाब लेने के लिए तैयार हैं। हालांकि दिल्ली की आप सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी आगामी चुनाव के लिए ज़रूर ही कमर कस लिया होगा।
पिछले चुनाव में मिली करारी हार के बाद दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित बख़ूबी जानती हैं कि इस बार का भी मुक़ाबला काटे का होगा। यही वजह है कि दिल्ली की कमान लेते ही जनता के बीच निकल पड़ी हैं। उधर केजरीवाल भी घर-घर पहुँच के वोट करने को अपील कर रहे हैं।
लोकसभा चुनाव और उसके कुछ महीनों बाद ही होने वाली विधानसभा के 70 सीटों के चुनाव में इन दोनों सूरमाओं का शक्ति प्रदर्शन देखने को ज़रूर मिलेगा। शीला पिछले चुनाव में मिली केजरीवाल से करारी शिकस्त शायद ही कहीं भूली होंगी, तो वहीं केजरीवाल को इस बार अपनी ताज बचाने की बेहद ही उत्सुकत्ता होगी।
इन दोनों राजनीतिक धुरंधरों के कार्य के बारे में आम लोगों की राय भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रही है। लोगों को दिख रहा है कि शीला दीक्षित ने दिल्ली को किस क़दर चमकाया था, और अब केजरीवाल की अगुआई वाली आप सरकार में किस तरह की परेशानियां आ रही हैं।
आम लोगों में ख़ास कर देखा जा रहा है कि केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली सरकार भी किसी ना किसी मुद्दे पर घिरती आ रही है। यही वजह है की शीला दीक्षित केंद्र को रफ़ाल, जीएसटी और नोटबंदी जैसे मुद्दों पर घेरने वाली है तो आप सरकार को पानी, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण के मुद्दों पर विशेष कर घेरने वाली है।
बहरहाल, किसका पलड़ा भारी होगा ये तो आगामी चुनाव का दौर ही बताएगा, लेकिन इतना तो अन्दाज़ा लगाया ही जा सकता है शीला दीक्षित के आने से दिल्ली के राजनीति का पारा आसमान छूने वाला है।
-साहित्य मौर्य
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