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डीयूः कमेटी की बैठक में शिक्षकों की इन अहम बातों पर होगा बड़ा फैसला!

गूगल : आभार

एडहॉक शिक्षकों की सर्विस को पदोन्नति में काउंट कराना कल (1 अक्टूबर) होगा अहम मुद्दा

दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) द्वारा गठित उच्च स्तरीय कमेटी की सोमवार को फिर से बैठक होने जा रही है। इसमें पदोन्नति में एडहॉक सर्विस को जोड़ना सबसे अहम मुद्दा है, जिस पर बात होगी। साथ ही पदोन्नति के लिए दशकों से लंबित मामलों में एपीआई, ओरिएंटेशन, रिफ्रेशर कोर्स की बाध्यता से छूट के साथ-साथ तमाम तरह की लीव (मैटरनिटी लीव, चाइल्ड केयर लीव, स्टडी लीव) का मुद्दा भी रहेगा।

पिछली बैठक में सहमति न बन पाने वाले मुद्दों पर भी फिर से चर्चा होगी, जिसमें उप प्राचार्य की योग्यता और कार्यकाल प्रमुख हैं।

विश्वविद्यालय की उच्च स्तरीय कमेटी के सदस्य प्रो हंसराज ‘सुमन’ ने बताया है कि “सोमवार को होने वाली बैठक में कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी, जिनमें पदोन्नति का मुद्दा सबसे अहम रहने वाला है। पदोन्नति में दो सबसे बड़ी अड़चनें हैं। पहली अड़चन एडहॉक सर्विस को न जुड़ने को लेकर है और दूसरी अड़चन बैक डेट से एपीआई इकट्ठा करने की बाध्यता से है। उनका कहना है कि इन दोनों ही अड़चनों को मिटाकर शिक्षक समुदाय को दशकों से लंबित उनके वाजिब हक पदोन्नति दिलाने की पुरजोर कोशिश की जाएगी ताकि जल्द से जल्द पदोन्नति का रास्ता खुल सके। इस बैठक में तमाम तरह की छुट्टियों पर जाने वाले शिक्षकों की अवकाश अवधि को पदोन्नति हेतु जोड़ने पर भी स्पष्टता बनाई जाएगी।”

कमेटी के दूसरे सदस्य डॉ. रसाल सिंह ने बताया है कि “बैकडेट से एपीआई और रिफ्रेशर व ओरिएंटेशन कोर्स की बाध्यता हमारी प्राथमिकता है। यह कमेटी अगली दो-तीन बैठकों में शिक्षकों की सेवा शर्तों को अंतिम रूप देने के लिए संकल्पित है। इस कमेटी द्वारा प्रस्तावित मसौदे को विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद (एसी/ईसी) में पारित करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यादेश बनाकर लागू किया जा सकेगा।”

प्रो सुमन के अनुसार विनियमन से अध्यादेश बनने में दो महीने तक लग सकते हैं। अध्यादेश बनते ही विश्वविद्यालय में पदोन्नति का रास्ता खुल जाएगा।

प्रो सुमन ने यूजीसी विनियमन 2018 को लेकर इस बात पर अपनी चिंता जताई है। साथ ही उनका कहना है कि “विश्वविद्यालय के विभागों में जिस तरह से सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति हेतु पीएचडी अनिवार्य योग्यता रखी जा रही है यह सरासर गलत होगा क्योंकि इससे आरक्षित व वंचित वर्गों की सीटें भरी नहीं जा सकेंगी। दूसरा यूजीसी के नियमों का उल्लंघन होगा, तीसरा व्यक्ति के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा। अनुच्छेद-16 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को अवसर की समानता से वंचित नहीं किया जा सकता जो कि यूजीसी द्वारा निर्धारित मानक योग्यता रखते हुए योग्य हैं।”

प्रो सुमन ने बताया है कि एमफिल और पीएचडी के शोध कार्य के अंकों में काफी अंतर दर्शाया गया है। एमफिल दो वर्ष का शोध कार्य है। एमफिल उपाधि प्रदान करते समय डीयू में पीएचडी शोध प्रबंध के मूल्यांकन जैसी सारी प्रक्रिया अपनाई जाती है लेकिन, उसके अंकों में काफी अंतर है। उनका कहना है कि विभाग और कॉलेजों के स्क्रीनिंग में जो अंतर है कम कराने के लिए लड़ा जायेगा ताकि आवेदकों के साथ किसी तरह का भेदभाव न हो, सभी उम्मीदवारों को साक्षात्कार देने का अवसर मिले, यह भी हमारी मांग होगी।

इस कमेटी के सभी निर्वाचित सदस्य डॉ गीता भट्ट, डॉ रसाल सिंह, डॉ पंकज गर्ग, डॉ बीएस दीक्षित, डॉ केपी सिंह आदि के डूटा निर्देशों के अनुसार इसे लागू करवाने की संभावना है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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