असहयोग आंदोलन के दौरान सारे देश में विदेशी वस्त्रों की होली जलायी गयी और अन्य विदेशी वस्तुओं का भी बहिष्कार किया गया। ब्रिटिश शासन की नीतियों से भारत का हथकरघा और कुटीर उद्योग खत्म हो गया था। महात्मा गाँधी विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का नारा देकर ब्रिटिश शासन की आर्थिक नाकेबंदी करने में जुटे थे। इस आंदोलन से हिंदू मुसलमानों में एकता की भावना कायम हुई और काशी विद्यापीठ के अलावा दिल्ली में जामिया मिल्लिया इस्लामिया राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र के रूप में स्थापित हुए।
महात्मा गाँधी ने 1अगस्त 1920 को ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन को शुरू किया। उनके आह्वान पर सारा देश और सभी जाति – मजहब – वर्ग के लोग इसमें शामिल हुए। काफी तादाद में लोगों ने सरकारी नौकरी को करना छोड़ दिया और छात्र छात्राओं ने भी स्कूल-कालेज का इस आंदोलन के दौरान बहिष्कार किया। सारे देश की जनता में ब्रिटिश सरकार की वादा खिलाफी के विरुद्ध आक्रोश व्याप्त था। ब्रिटिश सरकार ने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान गाँधी जी को देश की शासन व्यवस्था में सुधार का भरोसा दिया था, लेकिन युद्ध की समाप्ति के बाद रालेट एक्ट के अंतर्गत कठोर कानूनों को देश में लागू किया गया और इसके विरुद्ध उभरे जन आंदोलन का दमन किया गया। इसमें जलियाँवाला बाग में शांतिपूर्वक सभा कर रहे लोगों पर गोलीबारी की घटना देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे काला अध्याय है। गाँधी जी ने चौराचौरी में हिंसा की घटना के बाद असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया और ब्रिटिश सरकार के द्वारा उन्हें गिरफ्तार करके छह साल के कारावास की सजा सुनायी गयी। असहयोग आंदोलन के दौरान सारे देश के लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित होने का मौका मिला। इस दौरान गाँधी जी ने मुसलमानों के खिलाफत आंदोलन को भी समर्थन दिया, जिससे काफी तादाद में मुसलमान इस आंदोलन में शरीक हुए। असहयोग आंदोलन का व्यापक प्रभाव पश्चिमोत्तर भारत के अलावा देश के पूर्वी राज्यों में भी कायम था। इस आंदोलन के दौरान काफी तादाद में लोग गिरफ्तार हुए और मारे भी गये।
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