दिल्ली विश्वविद्यालय के विवेकानंद कॉलेज में 13 फरवरी से चल रहे तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का शनिवार को समापन हो गया।। इसका विषय “Perspective on peace and devlopment in a world of conflict” रहा। अंतिम दिन प्रो नंदी ने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्कृति को बचाकर ही स्थायी शांति और सतत विकास के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि “हिंसा हमारे समाज का चरित्र बनता जा रहा है जो बेहद चिंताजनक है ।” उन्होंने कहा कि राज्य और राजनीति-प्रेरित हिंसा एक वैश्विक चुनौती है। हर समाज, हर तबके और हर समुदाय तक विकास और लाभ का हिस्सा पहुंचना ही असल मायने में सतत विकास -प्रक्रिया है ।
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के पूर्व कुलपति प्रो गिरीश्वर मिश्र ने अपने वक्तव्य में कहा कि विकास के नए और वैकल्पिक मार्गों को खोजकर ही वैश्विक स्तर पर शांति और समरसता कायम की जा सकती है। उन्होनें भारतीय संदर्भ में शिक्षा पर होने वाले बजटीय खर्च को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में गिरावट युवाओं के भीतर हिंसा का एक बड़ा कारण है। उन्होंने आगे कहा कि लाभ की केंद्रीयता और सतत विकास की धारा एकसाथ नही चल सकती, अगर विकास लालच से संचालित है तो यह विकास नहीं एक प्रकार की हिंसा है ।
जेएनयू के प्रोफेसर वायएस अलोन ने संविधान निर्माता डॉ आंबेडकर के हवाले से कहा कि व्यवस्था में बदलाव के विरोधी मूल्य और विचार सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक हिंसा के कारक हैं । उन्होंने भारतीय विकास प्रक्रिया को जाति केंद्रित बताते हुए इसमें बदलाव की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने परम्परागत विकास-प्रणाली की धारणा के स्थान पर आधुनकि और सामुदायिक विकास का मॉडल अपनाने की वकालत की ।
ओएनजीसी एवं आईसीएसएसआर की ओर से प्रायोजित इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम सत्र में अमेरिकी मनोचिकित्सक और आमंत्रित विद्वान मंजू जैन ने ‘आंतरिक शांति और संघर्ष विषय पर एक वर्कशॉप का संचालन किया, जिसमें बड़ी संख्या में छात्रों, शोधार्थियों, शिक्षकों ने भाग लिया ।
अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के समापन समारोह में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कॉलेज की प्राचार्य डॉ हिना नंदराजोग ने कहा कि इस तरह के सम्मेलन न केवल छात्रों के लिये बल्कि अध्यापकों के लिए भी बेहद उपयोगी हैं ।
सम्मेलन की समन्वयक डॉ वनिता सोंधी ने आमंत्रित वक्ताओं, आमंत्रित शोधकर्ताओं, शिक्षकों और छात्रों के प्रति आभार जताया।
प्रकृति -चक्र को बाधित कर वैश्विक शांति की बात करना बेमानी है- प्रो रंगराजन
इससे पहले दूसरे दिन प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो महेश रंगराजन ने कहा कि परमाणु हथियारों से लिपटी आधुनकि मानव सभ्यता में प्रकृति सर्वाधिक संकट में है।

प्रसिद्ध पर्यावरणीय इतिहासकार प्रो रंगराजन ने अपने वक्तव्य में इस वर्तमान शताब्दी को युद्ध की शताब्दी करार देते हुए कहा कि युद्ध में मानवीय क्षति के साथ साथ पूरी प्रकृति पर आघात पहुंचा है । प्रकृति संरक्षण का रास्ता वैश्विक शांति से खुलेगा और तभी मनुष्य आंतरिक और बाह्य स्तर पर सतत विकास की ओर बढ़ पायेगा । उन्होंने आगे कहा कि ”बगैर चिड़ियों के वसन्त-गीत की कल्पना नही की जा सकती ।”
आमंत्रित वक्ता और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवम प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो एनआर फ़ारूक़ी ने अपने वक्तव्य में वैश्विक स्तर पर शांति स्थापना हेतु नए विकल्पों की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और सामुदायिक संघर्ष को खत्म करने के लिए प्रकृति-प्रदत्त समरसरता और समानता पर विशेष जोर देना होगा । उन्होंने कहा कि शांति बनाए रखने और स्थायी शांति बनाने में फर्क है और यह तभी सम्भव है जब हम युद्ध या संघर्ष के कारणों की जड़ को पहचान उसे खत्म करें। उन्होंने वैश्विक समरसता और शांति-स्थापना के लिये भक्तिकालीन सूफ़ी सन्तों की भूमिका को रेखांकित किया।

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