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असली देशद्रोहियों पर नकेल कसने में देरी अंध राष्ट्रवाद का नतीजा तो नहीं!

तस्वीर - गूगल साभार

देश की सरहदों पर खून बहाने वाले जवानों के साथ जब उनका ही  दूसरा जवान साथी देश के साथ जासूसी करता है तो वो भी देश का गद्दार कहलाता है। एक जवान को देश की सरहदें इसलिए सौपी जाती हैं ताकि वो दुश्मनों से देश की रक्षा कर सके न कि देश को खतरे में डाले। जासूसी के कई ऐसे मामले हैं जिसको मीडिया में जगह नहीं दी गई। इस मुद्दे पर सब खामोश क्यों हैं? मीडिया से लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी भी इस पर खामोश क्यों है? जबकि बीजेपी तो राष्ट्रवाद की बात करती है। फिर राष्ट्र को खतरे की बात करना बेमानी है क्या? क्या ये छद्म राष्ट्रवाद तो नहीं? जो लोग देश की जानकारियां देशभक्ति की आड़ में दूसरे देशों तक पहुंचा रहे हैं वो देशभक्त तो हो नहीं सकते हैं। पहले पुलवामा जैसी घटनाओं के घटित होने के पीछे के कारण की खोज न कर पाने के लिए विपक्ष लगातार कोसता है लेकिन बीजेपी मौन क्यों रहती है? जिस तरीके से भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा और देश के लिए खतरा मानने वाले कई लोगों को अब तक हिरासत में लिया गया कुछ के ऊपर बयान के आधार पर तत्काल कार्यवाही करते हुए देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया। वो चाहे सीएए के विरोध में प्रदर्शनकारियों की बात हो या बीजेपी और सरकार से लगातार सवाल करने वाले लोगों की। क्या असली खतरा उनके बयानों से ही है? अगर हां तो इसके सिवा जो देश के जवान और अधिकारी हकीकत में देश की गद्दारी कर रहे होते हैं जो अहम जानकारियों को सरहद के पार पहुंचा कर पुलवामा जैसे हमलों को अंजाम देने की फिराक में होते हैं उन पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं होती या होती भी है तो उन पर खुलकर चर्चा नहीं हो पाती? यह सोचने का विषय है।

हाल ही के एक घटना की बात करें तो नेवी से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां कथित रूप से सोशल मीडिया के सहारे दुश्मन देश के जासूसों तक पहुंचाते हुए अब तक 11 नौसैनिकों समेत 13 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। जवान जिसे देश की इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौपी जाती है। वो कैसे देश के साथ इतनी बड़ी गद्दारी कर सकते हैं। और इसमें होने वाली कार्यवाही में इतना विलंब क्यों लगता है? अपनी आवाज उठाने वाले लोगों पर बीजेपी तुरंत कार्यवाई करती है। बिना किसी जुर्म के गिरफ्तार कर लेती है तो फिर वो इन मुद्दों पर शांत कैसे रहती है? सोशल मीडिया का जरिए किसी को भी कोई भी जानकारी बहुत आसानी से मिल जाती है। किसी को भी हनीट्रैप के जरिए इसमें फंसाया जा सकता है। इसी का फायदा उठाकर उन्होंने 11 नौसेना के जवानों से जानकारियां हासिल की थी। पहले आईएसआई की ओर से इन 11 जवानों पर नजर रखी गई। उसके बाद आईएसआई के लोग महिला बनकर जवानों से चैट करने लगे। काफी समय से 11 नौसेनिक खुफिया जानकारी उस चैट के जरिए पाकिस्तान को देते रहे। उन्हें इसके जरिए पैसा भी दिया जाता रहा। भारतीय नौ सेना के 11 जवानों समेत 2 अन्य लोगों को देश की अहम जानकारी पाकिस्तान को दिये जाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इनकी गिरफ्तारी मुंबई, कारवाड़ और विशाखापटनम में हुई है। इतना बड़ा मुद्दा लेकिन कहीं पर भी इसका जिक्र या चर्चा नहीं हुई। क्या देश के साथ गद्दारी करने वालों पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं होना चाहिए था?

सरकार जवानों के स्मार्टफोन में सोशल मीडिया वाले ऐप कर चुकी हैं बैन

सोशल मीडिया से किसी भी प्रकार की जानकारी हासिल की जा सकती है, इसलिए 2017 में ही सरकार ने निर्देश दिया था कि जवानों के मोबाइल फोन में सोशल मीडिया वाले ज्यादातर ऐप न हों। अगर वे फोन में हों, तो उन्हें हटा दिया जाए। असल में, हमारी सरकार और खुफिया ब्यूरो जैसी एजेंसियों को यह महसूस हो रहा है कि चीन से बन कर आने वाले मोबाइल और चीनी कंपनियों के मोबाइल ऐप हमारे देश की सूचनाओं को सीमा पार पहुंचा रहे हैं और इस तरह स्मार्टफोन हमारे देश की जासूसी करने में सहायक साबित हो रहे हैं। इतना ही नहीं हनीट्रैप के जरिए भी जवानों से खुफिया जानकारी निकलवाई जा रही थी।

इन लोगों पर फेसबुक समेत अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल के जरिये भारतीय नौसेना की संवेदनशील जानकारी लीक करने का आरोप है। आंध्र प्रदेश पुलिस, नौसेना की खुफिया और केंद्रीय खुफिया एजेंसियों ने संयुक्त रूप से यह कार्रवाई तब शुरू की, जब बीते दिसंबर में जासूसी मामले में शामिल सात नौसेना कर्मियों को गिरफ्तार किया था। आंध्र पुलिस और केंद्र की खुफिया एजेंसियों ने मिलकर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया था। नौसेना के सूत्रों ने बताया कि पकड़े गए नौसेना कर्मियों के सोशल मीडिया प्रोफाइल को खंगाला जा रहा है और इस बात की जांच की जा रही है कि उनके किन संदिग्ध लोगों से संबंध हैं। नौसेना कर्मियों द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग की खबरें सामने आने के बाद भारतीय नौसेना ने अपने कर्मियों को फेसबुक जैसे सोशल मीडिया उपकरण और स्मार्टफोन के इस्तेमाल पर सख्ती से रोक लगा दी है। कुछ महीनों से सेना और वायुसेना में भी ऐसे मामले देखने को मिले हैं।

11 जनवरी 2020 में एक ओर मामला सामने आता है। कश्मीर के पुलिस अधिकारी देविंदर सिंह तीन आतंकवादियों के साथ पकड़े जाते हैं। डीएसपी देविंदर सिंह उन आतंकवादियों को कश्मीर से दिल्ली में लाने की फिराक में था। कार में हिजबुल मुजाहिदीन का आतंकी नवीद, आरिफ व लश्कर का ओवरग्राउंड वर्कर इरफान सवार थे। 11 जनवरी को पुलिस ने देविंदर सिंह समेत तीनों आतंकवादियों को श्रीनगर-जम्मू हाईवे पर गिरफ्तार कर लिया था। इस मामले की जांच के लिए एनआईए जांच कर रही है।

इस दोनों ही मामलों में अभी तक सिर्फ जांच चल रही है। देश में इस तरह की गतिविधियों का होना और उन पर कोई ठोस कदम न उठाना सीधा सरकार और प्रशासन पर सवाल खड़े करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि नोटबंदी से आतंकवाद खत्म हो जाएगा। लेकिन क्या सच में देश से आतंकवाद खत्म हो गया है?

देविंदर सिंह पहले भी इस तरह की कई गतिविधियों में शामिल हो चुके हैं। एक अधिकारी ने आरोप लगाया कि देविंदर सिंह ने 1990 के दशक में एक शख़्स को भारी मात्रा में अफीम के साथ गिरफ़्तार किया था लेकिन बाद में उसे रिहा कर दिया और अफीम बेच दी। उस मामले में भी उनके ख़िलाफ़ जांच शुरू हुई लेकिन जल्द ही इसे बंद कर दिया गया। देविंदर सिंह के अफ़ज़ल गुरु के साथ भी संबंध थे। उन्होंने अफ़ज़ल गुरु को अपना मुखबिर बनाने की कोशिश भी की। अफ़ज़ल गुरु को संसद पर हुए हमले के मामले में 9 फरवरी 2013 को फांसी हुई थी। ये हमला चरमपंथी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने किया था। अफ़ज़ल गुरु का लिखा एक पत्र भी सामने आया था। पत्र में लिखा था कि वो जेल से रिहा भी हो गए तो देविंदर सिंह उन्हें सताएंगे। इसके बाद देविंदर सिंह पर पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शामिल होने के भी आरोप हैं।

सवाल ये है कि एक ऐसा व्यक्ति जो आतंकवादियों के साथ कई सालों से शामिल था। उसको आखिर बार बार कौन बचा रहा था? जब देविंदर सिंह के बारे में पहले से ही इन सब बातों की जानकारी थी तो अब तक उसे पकड़ा क्यों नहीं गया था? किसी भी जांच में ये बात साफ नहीं हो पाई कि इसके पीछे आखिर कौन जिम्मेदार है?

हमारे देश में इसके लिए कानून भी बनाया गया है। कोई भी व्यक्ति ऐसी सूचना जिसको गुप्त रखा जाना देश की एकता व अखंडता की रक्षा के लिये जरूरी है और अगर कोई व्यक्ति ऐसी संवेदनशील जानकारी को सार्वजनिक करता है तो उसके लिए दंड का प्रावधान हमारे संविधान में दिया गया है। सरकारी गोपनीयता कानून, 1923 को इसी आधार पर बनाया गया था। इसका कानून का उद्देश्य था कि देश की अखंडता व एकता की सुरक्षा बनाए रखने के लिये जिन बातों का गुप्त रहना आवश्यक है उन्हें गुप्त ही रखा जाना चाहिये। लेकिन इसके बावजूद भी देश से संवेदनशील जानकारियां लगातार हमारे विरोधियों के पास पहुंचती रही है। ये काफी चिंता का विषय है।

देश में आतंकवादियों पर नकेल कसने के लिए तमाम एजेंसियां काम कर रही हैं। उन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता मगर जिस तरह से कार्यवाही होती हैं उस पर सत्ता पक्ष के दबाव और उसके परिणाम हम सबके सामने आते हैं। अगर इसी तरह से हमारे ही अधिकारी और सेना के जवान जो देश की सुरक्षा करते हैं वही देश की सुरक्षा के लिए खतरे बनने में मदद करेंगे और ये एजंसियां चुपचाप उन्हें देखेगी या उनपर लगाम नहीं लगा पाएगी तो निश्चित रूप से देश के लिए किसी बड़े खतरे की ओर कभी भी संकेत कर सकती है। जरूरी है कि देश में पार्टीवाद से परे उठकर हिंदू मुस्लिम से परे उठकर जो भी देश के लिए खतरा बनकर सामने आएं उन पर सत्ता में बैठे लोगों के द्वारा दबाव बनाकर कड़ी कार्यवाही की जाए, देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो (उन पर ऐसी कार्यवाही हो जिससे देश की एकता और अखंडता आगे भी सुनिश्चत हो सके) तो ही जाकर ऐसी घटनाओं पर विराम लग सकता है। देश की सुरक्षा के लिए जो बजट तय होते हैं उनका विशेष ध्यान दिया जाए। उनका सही इस्तेमाल हो। तमाम तकनीकों का पता लगाया जाए जिससे सूचनाओं को संग्रहित करने में आसानी मिल सके। साथ ही ऐसे किसी काम में शामिल लोगों का पता लगाने के लिए कोई ठीक प्रकार से चरणबद्ध तरीके की योजना हो तो ही हम किसी बड़ी घटना को अंजाम देने से पहले सतर्क हो सकते हैं और उन्हें तुरंत पकड़ सकते हैं। मीडिया में इन सब चीजों का भी जिक्र हो, चर्चा हो ताकि सभी चीजें लोगों के सामने भी आ सकें जो जरूरी हों।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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