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देशद्रोह केस में विनोद दुआ को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- हर जर्नलिस्ट संरक्षण का हकदार

वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ को सुप्रीम कोर्ट से देशद्रोह मामले में बड़ी कामयाबी हासिल लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विनोद दुआ के खिलाफ देशद्रोह और अन्य अपराधों के लिए दर्ज प्राथमिकी को खारिज किया। SC ने कहा कि वर्ष 1962 का आदेश हर जर्नलिस्‍ट को ऐसे आरोप से संरक्षण प्रदान करता है। हम 1962 का आदेश क्या है? इस बारे में भी आगे बात करेंगे।

बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में एक स्थानीय भाजपा नेता श्याम ने दुआ के यूट्यूब शो में प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी करने के खिलाफ यह एफआईआर दर्ज कराई थी। यह विनोद दुआ का शो दिल्ली दंगों पर केंद्रित था। एफआईआर में उन पर फर्जी खबरें फैलाने, लोगों को भड़काने, मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित करने जैसे आरोप लगाए गए थे। यह एफआईआर भाजपा नेता श्याम द्वारा शिमला जिले के कुमारसैन पुलिस स्टेशन में 6 मई को दर्ज कराई गई।

विनोद दुआ ने इस एफआईआर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने 6 अक्टूबर, 2020 को दुआ, हिमाचल प्रदेश सरकार और मामले में शिकायतकर्ता की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था।

एनडीटीवी की खबर के अनुसार, SC ने केस को रद्द कर दिया। हालांकि कोर्ट ने दुआ के इस आग्रह को खारिज कर लिया कि 10 साल का अनुभव करने में वाली किसी भी जर्नलिस्‍ट पर एफआईआर तब तक दर्ज नहीं की जानी चाहिए जब तक कि हाईकोर्ट जज की अगुवाई में कठिन पैनल इसे मंजूरी न दे दे. कोर्ट ने कहा कि यह विधायिका के अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण की तरह होगा।

पीठ ने कहा कि, “प्रत्येक पत्रकार केदार नाथ सिंह मामले (जो आईपीसी की धारा 124 ए के तहत देशद्रोह के अपराध के दायरे को परिभाषित करता है) के तहत सुरक्षा पाने का हकदार है।” 1962 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला कहता है कि सरकार की ओर से किए गए उपायों को लेकर कड़े शब्‍दों में असहमति जताना राजद्रोह नहीं है।

श्याम ने आरोप लगाया था कि दुआ ने अपने यूट्यूब शो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वोट पाने की खातिर ‘मौत और आतंकी हमलों’ का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। शीर्ष अदालत ने इससे पहले पिछले साल 14 जून को रविवार के दिन अप्रत्याशित सुनवाई करते हुए विनोद दुआ को अगले आदेश तक गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान कर दिया था। हालांकि, कोर्ट ने दुआ के खिलाफ चल रही जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि दुआ को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग या ऑनलाइन मोड के माध्यम से जांच में शामिल होना होगा, जैसा कि पुलिस द्वारा जारी समन में व्यक्तिगत पेशी के लिए कहा गया है।

याचिका में क्या कहा गया-

विनोद दुआ ने कहा कि, “प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है।”

लाइव लॉ की खबर के अनुसार याचिका में कहा गया है कि, “शीर्ष अदालत राज्य में सत्ताधारी दल से पुलिस को दूर करने पर जोर दे रही है, लेकिन कोई भी प्रमुख राजनीतिक दल जो विभिन्न राज्यों में सत्ता में हैं वे पुलिस पर अपना नियंत्रण छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।” याचिका में कहा गया है कि, “मीडिया के खिलाफ हाल ही में एक प्रवृत्ति है, जहां राज्य सरकारें जो अपनी राजनीतिक विचारधाराओं के साथ एक विशेष प्रसारण नहीं पाती हैं, मीडिया के लोगों के खिलाफ प्राथमिक रूप से उन्हें परेशान करने और उन्हें डराने के लिए प्राथमिकी दर्ज करती हैं ताकि पत्रकार राज्य सरकार या फिर पुलिस के आगे झुक जाएं।”

याचिका में कहा गया कि, “दुआ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना और जबरन कदम उठाना उनके मौलिक अधिकारों का प्रत्यक्ष रूप से उल्लंघन है।” याचिका में दावा किया गया है कि मीडिया को चुप कराने के लिए अधिकारियों का एक ठोस दृष्टिकोण है जो उनके लिए उपयुक्त नहीं है। दुआ ने आरोप लगाया कि दुआ के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी राजनीति से प्रेरित है और विशुद्ध रूप से COVID-19 के समय में केंद्र सरकार के कामकाज का गंभीर मूल्यांकन या अलोचना न हो सके इसलिए ऐसा किया जा रहा है।

याचिका में कहा गया है कि, “बोलने की स्वतंत्रता के खिलाफ लगाया गया प्रतिबंध उन मुद्दों को संदर्भित करता है जो सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, नैतिकता और राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। याचिकाकर्ता (दुआ) के मामले में तथ्य सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं और सत्य हैं। इसलिए देशद्रोह और अन्य गंभीर अपराधों के आरोप पूरी तरह से गलत हैं।”

याचिका में कहा गया है कि दुआ उच्च रक्तचाप (hypertension) और मधुमेह(Diabetes) सहित सह-रुग्णता (CO-Morbidities) वाले एक वरिष्ठ नागरिक हैं।

 

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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