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दिल्ली विश्वविद्यालय में भेदभाव का पता लगाने के लिए कॉलेजों की मॉनिटरिंग जरूरी, यूजीसी चेयरमैन को लिखा पत्र

दिल्ली विश्वविद्यालय एससी, एसटी ओबीसी टीचर्स फोरम के चेयरमैन व पूर्व विद्वत परिषद सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने यूजीसी चेयरमैन को पत्र लिखकर मांग की है कि डीयू के कॉलेजों की मॉनिटरिंग के लिए एक कमेटी गठित करे, जिसमें सभी वर्गों के शिक्षकों को प्रतिनिधित्व दिया जाये। कमेटी इन कॉलेजों में जाकर पता लगाए कि आरक्षण से संबंधित यूजीसी की ओर से जारी सर्कुलर/ निर्देशों का पालन विभागों/कॉलेजों द्वारा कितना किया जा रहा है।

पत्र में कहा गया है कि विश्वविद्यालय के अंतर्गत लगभग-60 विभाग जहां स्नातकोत्तर डिग्री, एमफिल,पीएचडी, सर्टिफिकेट कोर्स, डिग्री कोर्स आदि कराए जाते हैं। 80 कॉलेजों में स्नातक, स्नातकोत्तर का अध्ययन अध्यापन होता है। इन कॉलेजों में 10 हजार शिक्षक (स्थायी और तदर्थ) और 6 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। इन कॉलेजों व विभागों में हर साल स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर 70 हजार छात्र-छात्राओं के प्रवेश होते हैं। पिछले 22 साल से डीयू में जुलाई 1997 से शिक्षकों के पदों में केंद्र सरकार की आरक्षण नीति लागू है। इसके बाद भी कोई भी कॉलेज भारत सरकार की आरक्षण नीति का पालन नहीं करते। वर्तमान में कॉलेजों में 5000 एडहॉक शिक्षक कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा 500 से अधिक विभागों में शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं। इन पदों पर पिछले एक दशक से अधिक से स्थायी नियुक्तियां भी नहीं हुईं। इसी तरह से 3000 शिक्षकों की पदोन्नति अधर में लटकी हुई है।

फोरम ने यूजीसी चेयरमैन को बताई समस्याएं-

यूजीसी व एमएचआरडी के निर्देश है कि शिक्षकों के पदों में आरक्षण लागू करते हुए रोस्टर बनाते समय उसे 2 जुलाई 1997 से 200 पॉइंट पोस्ट बेस रोस्टर बनाएं। रोस्टर वरिष्ठता के आधार पर कॉलेज को एक इकाई मानकर बनाया जाये, लेकिन अधिकांश कॉलेज इस नीति का पालन नहीं करते वे रोस्टर सब्जेक्ट्स वाइज व डिपार्टमेंट वाइज बना रहे हैं। कॉलेज रोस्टर रजिस्टर कभी 13 पॉइंट तो कभी डिपार्टमेंट वाइज बनवाकर विश्वविद्यालय से पास कराकर एडहॉक शिक्षकों की नियुक्ति कर रहे हैं।

डीयू कॉलेजों में वर्तमान सत्र के लिए प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। प्रत्येक कॉलेज प्रवेश के समय उच्च कट ऑफ लिस्ट जारी करते हैं, जिससे आरक्षित श्रेणी की सीटें खाली रह जाती है। आरक्षित सीटों को भरने के लिए पांचवी कट ऑफ लिस्ट के बाद स्पेशल ड्राइव चलाया जाता है मगर कट ऑफ में मामूली छूट देने से एससी, एसटी, ओबीसी कोटे की सीटें कभी पूरी नहीं भरी जाती।

विश्वविद्यालय की ओर से स्नातक स्तर के प्रवेश के लिए6 कट ऑफ लिस्ट जारी हो चुकी है, कॉलेजों द्वारा स्पेशल ड्राइव के बाद भी आरक्षित वर्ग की सीटें खाली है। क्योंकि कॉलेज कट ऑफ नीचे नहीं कर रहे हैं। ऐसा हर साल होता है कि बाद में यह कहकर कि इन सीटों पर छात्र उपलब्ध नहीं है, इन सीटों को सामान्य में तब्दील कर दिया जाता है।

प्रो. सुमन ने बताया है कि इसी तरह से शिक्षकों की भांति कर्मचारियों का कोटा एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण पूरा नहीं है। कर्मचारियों की लंबे समय से ना तो स्थायी नियुक्ति ही हुई और न ही पदोन्नति ही। जब आरक्षित वर्गों की सीटें बनती है तो कुछ कॉलेज उन्हें कंट्रेक्चुअल (अनुबंध ) के आधार पर नियुक्त करते हैं। उन्होंने बताया है कि यूजीसी ओबीसी आरक्षण के तहत कर्मचारियों की सीटों को भरने के लिए दो बार निर्देश जारी कर चुकी हैं लेकिन अधिकांश कॉलेजों ने या तो विज्ञापन निकाले नहीं या इन पदों को भरा नहीं, सीटें खाली पड़ी हुई है।

प्रत्येक कॉलेज में आरक्षित वर्गो के शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों के लिए ग्रीवेंस सेल बनाया गया है। इस सेल का कार्य आरक्षित वर्ग के व्यक्तियों के साथ होने जातीय भेदभाव, नियुक्ति, पदोन्नति व प्रवेश आदि समस्याओं का समाधान समय पर कराना है, लेकिन ये सेल कार्य नहीं मनमाने ढंग से चलाए जा रहे हैं।

पत्र में लिखा है कि पिछले दिनों डीयू से संबद्ध कॉलेजों में नेक की टीम आई थी लेकिन, उस टीम ने शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों को होने वाली समस्याओं पर कोई बातचीत नहीं की।

ये हैं मांगें-

फोरम ने यूजीसी चेयरमैन से मांग की है कि यूजीसी जल्द ही डीयू कॉलेजों के लिए एक मॉनिटरिंग कमेटी गठित करे। कमेटी हर 6 महीने के बाद कॉलेजों का दौरा कर शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों से उनकी समस्याओं पर बातचीत करे।

इन कॉलेजों में शिक्षकों का रोस्टर, स्थायी नियुक्ति, पदोन्नति के अलावा कर्मचारियों की नियुक्ति, पदोन्नति, पेंशन के अतिरिक्त छात्रों के प्रवेश संबंधी समस्या, छात्रवृत्ति का समय पर ना मिलना, रिमेडियल क्लास, सर्विस के लिए स्पेशल क्लास, स्पेशल कोचिंग एससी, एसटी के छात्रों के लिए जैसे तमाम समस्याओं पर उन छात्रों से बातचीत कर कमेटी एक रिपोर्ट तैयार करे।

कमेटी इस रिपोर्ट को यूजीसी, एमएचआरडी, एससी, एसटी कमीशन, संसदीय समिति को भेजे। इसके साथ ही रिपोर्ट को मीडिया में सार्वजनिक भी किया जाए ताकि आम आदमी को पता चल सके कि विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में किस तरह से भेदभाव की नीति अपनाई जाती है।

पत्र में यह भी लिखा है कि जिन कॉलेजों, विभागों ने शिक्षकों/कर्मचारियों/छात्रों के प्रवेश में,नियुक्तियों में आरक्षण नीति का सही से पालन नहीं किया है ऐसे कॉलेजों की एक लिस्ट तैयार की जाए और उसे एमएचआरडी, संसदीय समिति को सौंपा जाये कि अनुदान देते समय इन कॉलेजों पर नजर रखी जाये।

यूजीसी समय-समय पर केंद्र सरकार द्वारा आरक्षण संबंधी सर्कुलर जारी करती है लेकिन, इन सुविधाओं का लाभ आरक्षित वर्ग को हो इसके लिए उसे विश्वविद्यालय/कॉलेज/संस्था को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना होता है, लेकिन कोई भी कॉलेज रोस्टर, छात्रों के प्रवेश संबंधी आंकड़े, शिक्षकों के खाली पदों की संख्या आदि को वेबसाइट पर नहीं डालते।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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