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डीयू में स्नातक दाखिले में खाली पड़ी सीटों को भरने के लिए स्पेशल ड्राइव चलाने की मांग

आम आदमी पार्टी के शिक्षक संगठन दिल्ली टीचर्स एसोसिएशन (डीटीए)  ने दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलसचिव, कार्यवाहक कुलपति, यूजीसी के चेयरमैन व एससी/एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति के चेयरमैन को पत्र लिखकर मांग की है कि स्नातक स्तर (अंडर ग्रेजुएट) पर कॉलेजों में खाली पड़ी आरक्षित श्रेणी की सीटों के लिए स्पेशल ड्राइव चलाया जाए। साथ ही इससे पहले कॉलेजों से विषयानुसार आंकड़े मंगवाएं जाये ताकि पता चल सके कि कॉलेजों ने अपने यहां स्वीकृत सीटों से ज्यादा कितने दाखिले सामान्य वर्गों के छात्रों के किये हैं तथा उसकी एवज में आरक्षित वर्ग की कितनी सीटों पर दाखिला दिया है। केंद्र  सरकार की ओर से आरक्षित सीटों को भरने के लिए एससी-15 %, एसटी-7.5 %, ओबीसी-27 %, पीडब्ल्यूडी-5 %, ईडब्ल्यूएस-10 % आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है। इसलिए जब तक कोटा पूरा नहीं हो जाता विश्वविद्यालय/कॉलेजों को स्पेशल ड्राइव चलाकर इन सीटों को भरना होता है लेकिन, कॉलेजों द्वारा ऐसा नहीं किया जाता। हर साल आरक्षित श्रेणी की सीटें खाली रह जाती है।

इस संबंध में टीचर्स एसोसिएशन के प्रभारी व पूर्व विद्वत परिषद सदस्य प्रोफेसर हंसराज ‘सुमन’ ने कुलसचिव, कार्यवाहक कुलपति, संसदीय समिति, यूजीसी को पत्र लिखा है, इसमें बताया है कि शैक्षिक सत्र-2020-21 में दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों/कॉलेजों में एससी/एसटी/ओबीसी/पीडब्ल्यूडी/ ईडब्ल्यूएस  कोटे के अंतर्गत स्नातक स्तर के छात्रों की विश्वविद्यालय के कॉलेजों में खाली पड़ी सीटो को कॉलेजों ने उच्च कटऑफ निकालकर आरक्षित वर्गों के छात्रों को जो छूट दी गई वह बहुत कम दी गई वरना सीटें खाली नहीं रहती। उन्होंने पत्र में बताया है कि हर वर्ष स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर  कॉलेजों में आरक्षित श्रेणी से संबंधित छात्रों की अलग-अलग कॉलेजों में, अलग-अलग विषयों में बहुत सारी सीटें खाली रह जाती है,किन्तु कॉलेज अपने यहाँ इन खाली सीटों को भरने के लिए कट ऑफ कम नहीं करते, साथ ही ना ही प्रवेश की तिथि को आगे बढ़ाकर और न ही कट ऑफ कम कर इन सीटों को भरने में रुचि लेते हैं, जिससे कैम्पस व कैम्पस के बाहर सीटे खाली पड़ी हुई है।

प्रोफेसर सुमन ने अपने पत्र में लिखा है कि कॉलेजों में सीटों के खाली रहने पर छात्रों के प्रवेश के लिए हर साल स्पेशल ड्राइव चलाया जाता है लेकिन, कॉलेज कटऑफ कम नहीं करते। केवल खानापूर्ति के लिए स्पेशल ड्राइव चलाया जाता है, कॉलेजों ने इन सीटों को भरने के लिए पहली से पांचवीं कट ऑफ में कटऑफ डाउन करना चाहिए था, लेकिन वह किया नहीं जिससे आरक्षित श्रेणी के छात्र-छात्राओं की सीटें खाली पड़ी हुई है। पिछले साल भी आरक्षित श्रेणी की सीटें खाली रह गई थी और छात्र प्रवेश लेने से वंचित रह गए थे। इस वर्ष भी वही स्थिति दोहराई जा रही है। तीसरी कटऑफ और चौथी कटऑफ तक आरक्षित वर्ग के छात्रों के प्रवेश बहुत कम मात्रा में हुए हैं और कॉलेजों ने अपनी कट ऑफ कम नहीं की, कुछ कॉलेजों को छोड़कर अधिकांश कॉलेजों में 10 से 15  कहीं-कहीं तो 20 फीसदी एसटी वर्ग की सीटें खाली पड़ी है जबकि सामान्य वर्गों के छात्रों के प्रवेश की सीटें लगभग भर गई है, कुछ कॉलेजों में तो सामान्य वर्गों की निर्धारित सीटों से ज्यादा सीटों पर प्रवेश हुआ है, यानी प्रवेश संख्या से अधिक हुए हैं और कॉलेजों को उसकी एवज में एससी, एसटी, ओबीसी व पीडब्ल्यूडी कोटे के छात्रों को प्रवेश दिया जाना चाहिए, लेकिन किसी भी कॉलेजों ने ऐसा नहीं किया।

विज्ञान विषयों में प्रवेश कम हुए

प्रोफेसर सुमन ने अपने पत्र में कुलसचिव को बताया है कि सबसे ज्यादा बुरी स्थिति विज्ञान विषयों में आरक्षित वर्ग के छात्रों की है, इन कॉलेजों में प्रवेश बहुत कम मात्रा में हुए हैं, दाखिले के बाद कुछ छात्र छोड़कर इंजीनियरिंग, डॉक्टर, बीटेक, जेबीटी या अन्यों जगहों पर चले गए हैं। जिन छात्रों ने अपना दाखिला रद करा लिया है, कॉलेज/विभाग का दायित्व बनता है कि जितने छात्र अपना दाखिला रद कराकर गए हैं उसकी एवज में उतने ही प्रवेश सभी श्रेणी के छात्रों का करें। अभी तक बड़े व स्थापित कॉलेजों में बहुत कम संख्या में आरक्षित वर्ग के दाखिले हुए हैं।

प्रो. सुमन ने कुलसचिव और कुलपति दिल्ली विश्वविद्यालय का ध्यान दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित प्रवेश बुलेटिन के 4.1 की ओर दिलाना चाहा है। इस पृष्ठ पर अनुसूचित जाति/जनजाति के आवेदकों के लिए सीटों का आरक्षण दिया गया है कि यदि 5 फीसद छूट देने के बाद भी आरक्षित सीटें खाली रहती है तो सभी सीटों को भरने के लिए आवश्यक हद तक छूट दी जाएगी। (एसी रिजॉल्यूशन 210 ,ए 88,14-6-1983) (ईसी रिजॉल्यूशन 157, 24/12/2001) सभी कॉलेजों/विभागों के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति आवेदकों के लिए आरक्षित सभी सीटों को भरना अनिवार्य है। इन मामलों में उत्तीर्ण होने का प्रतिशत योग्यता का मानदंड है। इसी पृष्ठ पर विश्वविद्यालय/कॉलेजों में होने वाले दाखिले संबंधी निर्देश दिए गए हैं कि कॉलेजों को एससी/एसटी, ओबीसी का कोटा पूरा करना है। उनका कहना है कि इस नियम का तमाम कॉलेज उल्लंघन कर रहे हैं। विश्वविद्यालय/कॉलेजों में होने वाले दाखिला संबंधी निर्देश दिए गए हैं कि कॉलेजों को एससी, एसटी, ओबीसी का कोटा पूरा करना है, लेकिन तमाम कॉलेज इस नियम का उल्लंघन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब तक डीयू से कोई दाखिला संबंधी सर्कुलर नहीं आएगा, हम पुराने नियमों को स्वीकार करते रहेंगे।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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