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जानिए क्यों खास है लीप ईयर, छूट गया तो इतना बदल जायेगा समय

तस्वीर - गूगल साभार

हमारा जीवन घटनाओं से भरा पड़ा है। हर सेकेंड, मिनट और अगला ही पल एक नई घटना का सामना कराता है। अधिक विस्तार में देखें तो जमीन से आसमान तक और ग्रह से नक्षत्रों तक की घटनाएं हम पर असर डालती हैं और नहीं कुछ तो कैलेंडर ही देख लीजिए। आज आप फरवरी में एक अधिक दिन जी  रहे हैं। यानी  29 फरवरी का दिन हर साल सबसे छोटी फरवरी 28 दिन में ही निकल लेती है, लेकिन हर चार साल में पूरा एक दिन बड़ा हो जाता है और लीप ईयर बन जाता है। आइए जानते हैं इस लीप ईयर की खासियतें…

लीप ईयर क्या है?
सिंपल है साल में 365 दिन होते हैं, महीने 12 और बस फरवरी को छोड़कर हर महीने 30 या 31 दिन, फरवरी सबसे छोटी होती है। इसमें होते हैं 28 दिन। बच्चे खुश होते हैं कि इस महीने कम स्कूल जाना है, बड़े खुश होते हैं कि कम दिन काम करके अधिक सैलरी मिलेगी। लेकिन हर चार साल में बच्चों और बड़ों की यह खुशी थोड़ी से कम हो जाती है क्योंकि फरवरी थोड़ी से बड़ी हो जाती है। फरवरी की ये बढ़ोतरी पूरे एक दिन की होती है। चार साल में हुई इसी बढ़ोतरी को लीप डे कहते हैं और जिस साल लीप डे आता है, उसे लीप ईयर कहते हैं।

कौन सा साल लीप ईयर है?
इस सवाल का जवाब गणित में छिपा है। दरअसल लीप ईयर हर चार साल में एक बार आता है तो कौन सा साल लीप ईयर है और कौन सा नहीं तो यह जानने के लिए प्राइमरी की मैथ की किताब खोलिए। यहां लिखा मिलेगा कि जिस साल के नंबर में 4 से भाग हो जाए यानी कि जो ईयर नंबर चार से पूरी तरह कट जाए और शेष कुछ न बचे वही लीप ईयर है। यानी उसी साल फरवरी में आपको अधिक दिन देखने हैं जैसे कि यह साल है 2020, अब इसमें 4 से भाग करने पर शेष कुछ नहीं बचता इसलिए यह लीप ईयर है। इसके पहले 2016 लीप ईयर था।

लीप ईयर आता क्यों है?
ये थोड़ा टेक्निकल सवाल है। दरअसल हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। इसके साथ ही वह अपनी धुरी पर भी घूमती है। सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने से मौसम बदलते हैं और धुरी पर चक्कर लगाने से दिन और रात होते हैं। धुरी का चक्कर तो पृथ्वी 24 घंटे में पूरा कर लेती है, लेकिन सूर्य के चारों ओर का चक्कर पूरा करने में उसे 365 दिन लगते हैं। 365 दिन से एक पूरा साल बनता है। लेकिन बारीकी वाली बात यहीं हैं। दरसअसल पृथ्वी सूर्य के चारों ओर का एक चक्कर पूरा करने में 365 दिन और 6 घंटे लेती है। यही छह घंटे चार साल में जुड़-जुड़ कर पूरा एक दिन बन जाते हैं। इसी पूरे एक अधिक दिन को सबसे छोटी फरवरी में जोड़ दिया जाता है। नाम हुआ लीप ईयर, यानी अधिक वर्ष और बारीकी से देखें तो पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 365.24219 दिन में पूरी करती है।

अगर लीप ईयर न आए तो?
लीप ईयर बेहद जरूरी भी है ऊपर कहा है न कि हमारे जीवन में घटनाएं असर डालती हैं इन्हीं घटनाओं में मौसम चक्र खास तौर पर हमें प्रभावित करता है। अगर हम लीप डे को छोड़ते चले जाएं तो पूरे सौ साल में यह 25 दिन के बराबर हो जाएगा। लगभग एक महीने के बराबर हमारी पृथ्वी पर तो इतने दिन में मौसम का रुख बदलने लगता है तो अगर हम लीप ईयर छो़ड़ देंगे तो हमारे कैलेंडर मौसम के साथ मेल नहीं खाएंगे। हर साल सौर मंडल के समय चक्र से दुनिया 6 घंटे आगे निकल जाएगी। इस तरह 100 वर्ष बाद 25 दिन आगे होगी। ऐसा हुआ तो मौसम वैज्ञानिक मौसम परिवर्तन का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं लगा पाएंगे। यही वजह है कि हर चार साल बाद लीप ईयर मनाया जाता है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

विकास पोरवाल
पत्रकार और लेखक

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