सहायता करे
SUBSCRIBE
FOLLOW US
  • YouTube
Loading

गोहत्या मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार की नीतियों पर उठाये सवाल

गोहत्या मामलों पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ये बात मान ली है कि निर्दोष व्यक्तियों को फंसाने के लिए उत्तर प्रदेश में गोहत्या निरोधक कानून, 1955 के प्रावधानों का लगातार दुरुपयोग हो रहा है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 26 अक्टूबर को गोहत्या कानून पर टिप्पणी करते हुए इस पर चिंता भी व्यक्त की है। 26 अक्टूबर को अधिनियम की धारा 3, 5 और 8 के तहत गोहत्या और गोमांस की बिक्री के आरोप में रहमुद्दीन नाम के व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई।

जिसमें न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने कहा कि निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। जब भी कोई मांस बरामद किया जाता है, तो इसे सामान्य रूप से गाय के मांस (गोमांस) के रूप में दिखाया जाता है, बिना इसकी जांच या फॉरेंसिक प्रयोगशाला द्वारा विश्लेषण किए बगैर। अधिकांश मामलों में, मांस को जांच के लिए नहीं भेजा जाता है। व्यक्तियों को ऐसे अपराध के लिए जेल में रखा गया है जो शायद किए नहीं गए थे और जो कि 7 साल तक की अधिकतम सजा होने के चलते प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल किए जाते हैं।

 

अखलाख और जुनैद गोहत्या कांड

अखलाख हत्याकांड मामला तो आपको याद ही होगा। बिसाहड़ा गांव मे 2015 में गौ मांस रखने के शक में अखलाख की पीट पीटकर हत्या कर दी गई थी। जब इस पूरे मामले की जांच की गई तो जिसे गाय का मांस बताकर पीटा गया था वो गाय का नहीं बल्कि बकरे का था। इसी तरह जुनैद के मामले मे भी यही होता है। जुनैद अपने भाई के साथ दिल्ली से ईद की खरीदारी कर ट्रेन से हरियाणा जा रहे थे। उनके बैग में गो मांस होने के शक में भीड़ ने पीटा था। बल्लभगढ़ के पास कथित रूप से चाकू मारकर हत्या की गई।

इसी तरह यूपी में 19 अगस्त 2020 तक रासुका के तहत गिरफ़्तार 139 में से 76 लोगों पर गोहत्या के आरोप हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोहत्या के मामलों में पुलिस द्वारा पेश किये गये सबूतों और साक्ष्यों की विश्वनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब भी कोई मांस बरामद होता है, तो फॉरेंसिक जांच कराए बिना ही उसे गोमांस क़रार दे दिया जाता है।

दरअसल देश में कभी भी किसी को भी गोहत्या का आरोप लगाकर जेल की सलाखों के अंदर डाल दिया जाता है। बाद में जब ट्रायल शुरू होता है तो आरोपी को जमानत मिल जाती है या फिर उनको मौक़े पर ही पीट पीटकर हत्या कर दी जाती है। कुछ तथाकथित हिंदू अपने आपको गोरक्षक कहते हैं और निर्दोष लोगों को गोहत्या का आरोप लगाकर उन्हें मारा पीटा जाता है।

माेहम्मद नईम और माेहम्मद वसीम के साथ गाेतस्कर समझकर की गई थी मारपीट

दैनिक भास्कर की एक खबर के मुताबिक 2019 में भीलवाड़ा के पंडेर इलाके में 5-7 कथित गाेरक्षकाें ने दाे युवकाें माेहम्मद नईम और माेहम्मद वसीम के साथ गाेतस्कर समझकर मारपीट कर दी। गनीमत रही कि उनकी जान नहीं ली गई। जबकि वो दोनों खान उद्यमी और मार्केटिंग मैनेजर थे। देश में गौहत्या के नाम पर कई लोगों की हत्या और गंभीर मारपीट के कई मामले सामने आ चुके हैं। अब इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए सख्त टिप्पणी की है।

बेगुनाह लोगों पर गोहत्या का मामला किया जा रहा है दर्ज

हाईकोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में गोहत्या निरोधक कानून का जमकर दुरुपयोग हो रहा है और इस कानून के तहत कई बेगुनाहों को जेल भेजा जा चुका है। हाईकोर्ट की ओर से योगी सरकार की नीतियों पर सवाल भी उठाए हैं। जस्टिस सिद्धार्थ की सिंगल बेंच ने कहा कि इस कानून में अधिकतम सात साल की सजा का प्रावधान होने के बावजूद लोग लंबे समय तक जेल में रहते हैं। पुलिस किसी भी तरह के मांस की बरामदगी के बाद फॉरेंसिक प्रयोगशाला में जांच कराए बिना ही उसे बीफ या गाय का मांस बता देती है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि इस कानून के तहत लोग ऐसे अपराध में जेल भेजे जा रहे हैं, जिन्हें वह करते ही नहीं हैं।

यूपी में गायों की देखरेख करने के लिए नहीं है कोई पुख्ता इंतजाम

उत्तर प्रदेश में गायों की देखरेख और गौशालाओं में बेहतर सुविधा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। गौशालाएं सिर्फ दुधारू गायों को ही रखने में रूचि दिखाती है। लोग बूढ़ी और बीमारू गाय के साथ दूध नहीं देने वाली गायों को सड़कों पर छोड़ देते हैं और गौशालाएं भी इन्हे नहीं रखती हैं। ऐसे में गायें सीवर का पानी पीने, कचरा ऑर पॉलीथिन खाने के लिए मजबूर है। उनकी सुरक्षा खतरे में हैं।

हाईकोर्ट ने कहा कि आवारा गायें सड़कों पर एक्सीडेंट का बड़ा कारण बन चुकी हैं। गाय और सांडों के कारण आए दिन सड़कों पर हादसें हो रहे हैं और लोगों की जानें जा रही है। इसी तरह गौशालाओं के बाहर घूमने वाली गायें लोगों की फसलों को बर्बाद करती हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि गायों को उनके मालिकों के साथ रहने या फिर गौशालाओं में रखे जाने के नियम बनाए जाने चाहिए। इससे जहां गायों का हित होगा, वहीं आवारा गायों से होने वाले नुकसानों को भी रोका जा सकेगा। इसी तरह सरकार को भी अपनी नीतियों पर विचार करना चाहिए। हाईकोर्ट ने इसी निष्कर्ष के आधार पर आरोपी रहमुद्दीन को सशर्त जमानत देने का आदेश दिया।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

Be the first to comment on "गोहत्या मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार की नीतियों पर उठाये सवाल"

Leave a comment

Your email address will not be published.


*