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क्षेत्रीय भाषा को आगे ले जाने में युवा रचनाकारों ने की पहल, कुमाउनी में लाए काव्य संकलन

किसी भी क्षेत्र की भाषा उस क्षेत्र तक ही रह जाती है, जिस क्षेत्र में वो बोली जाती है। लेकिन अब कुछ नये लेखक अपनी क्षेत्र की भाषा में कहानियां, कविताएं और किताबें लिख रहे हैं और अपनी बोली को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। किसी भी क्षेत्रीय भाषा या बोली का भविष्य उसे बोलने और लिखने वालों से होता है। बोलियां न सिर्फ क्षेत्रीयता की पहचान होती हैं, बल्कि वो उस इलाके की संस्कृति और इतिहास की भी परिचायक होती हैं। आज क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों के सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है।

नई पीढ़ी अपनी दुधबोली बोलने में शर्म करती है। इसमें पूरा दोष सिर्फ युवाओं का ही नहीं है, बल्कि उनके माता-पिता और समाज का भी है, जिन्होंने आधुनिकता की दौड़ में अपने बच्चों को अपनी बोली से दूर कर दिया। लेकिन, नई पीढ़ी के कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो अपनी बोली के संरक्षण को लेकर प्रयासरत है। ताजा उदाहरण उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का है। 6 जिलों वाले कुमाऊं मंडल में कुमाउनी बोली जाती है। तमाम क्षेत्रीय भाषाओं की तरह यह भी अपनी जड़ें खो रही है, लेकिन कुछ युवा ऐसे हैं, जो इसके संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं। 25 वर्ष से कम के इन युवाओं ने मिलकर कुमाउनी सामूहिक काव्य संकलन निकाला है, जिसका शुक्रवार को कुमाउनी पत्रिका ‘पहरू’ के अल्मोड़ा स्थित कार्यालय में विमोचन हुआ। ‘जो य गङ बगि रै’ नामक कुमाउनी सामूहिक काव्य संकलन 15 से 25 साल के बीच के युवाओं की मेहनत का नतीजा है।

छोटी सी उम्र में क्षेत्रीय भाषा में काव्य संकलन लाने के उद्देश्य के बारे में किताब के संपादक ललित तुलेरा कहते हैं कि यह एक प्रयास है। हम चाहते हैं कि कुमाउनी में लिख रहे रचनाकारों का कुमाउनी साहित्य संसार से परिचय कराया जाए। ताकि वे कुमाउनी के विकास और संरक्षण के लिए आगे आएं और अन्य युवाओं को भी प्रोत्साहित करें। साथ ही इस कदम से कुमाउनी समाज को भी अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूक करने की कोशिश है। उन्होंने बताया कि काव्य संकलन का शीर्षक ‘जो य गङ बगि रै’ (जो यह नदी बह रही है) कुमाउनी की पिछले 200 वर्षों से चली आ रही साहित्य यात्रा को ध्यान में रखते हुए रखा गया है। इस काव्य संकलन में 17 युवा रचनाकारों ने कविताएं लिखी हैं। इनमें 8 महिला रचनाकार हैं।

युवा कवयित्री ज्योति भट्ट की कविताएं भी इसमें छपी हैं। उन्होंने बताया कि यह अपनी बोली के संरक्षण की दिशा में बड़ा प्रयास है। वह खुद बचपन से कविता और कहानियां लिखती हैं। बचपन में उनकी रचनाएं स्थानीय पत्रिकाओं में छपती थी। अब काव्य संकलन का हिस्सा बनकर उन्हें खुशी हो रही है। ज्योति भट्ट के अलावा काव्य संकलन में भास्कर भौर्याल, प्रदीप चंद्र आर्या, भारती जोशी, दीपक सिंह भाकुनी, गायत्री पैंतोला, हिमानी डसीला आदि की भी कविताएं हैं। वहीं, विमोचन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जमन सिंह बिष्ट थे। इस दौरान महेंद्र ठकुराती, शशि शेखर जोशी, डॉ. हयात सिंह रावत, इंद्रमोहन पंत, अमन नगरकोटी, माया रावत आदि मौजूद रहे।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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