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आसाम के प्रदर्शन से चाय की यादें तरोताजा होती हैं जहां सबसे पहला पौधा मिला था!

चाय दिवस मना रहे हैं तो किसकी बदौलत आसाम की बदौलत, जिसने हमको प्यार के साथ जीना सिखाया। प्यार की परिभाषा में चाय आती है तो आसाम को उसके लिए श्रेय जाता है, लेकिन सरकारें आसाम के लिए क्या सोचती हैं यह आसाम में संस्कृति बचाने के लिए उतरे सड़क पर प्रदर्शनकारियों के तौर तरीकों से भलीभांति सीखा जा सकता है। चाय की चुस्कियों को लेने से पहले सोचें कि क्यों चाय प्रदेश के जलने की खबर से लोगों की सहानुभूति के लिए 30 किलोमीटर की यात्रा ईटानगर में हो जाती है। नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में मार्च करने की खबर अखबारों का हिस्सा भी नहीं बन सका। दो लोगों की सरकारी मरने की सूचना की पुष्टि और सैकड़ों लोगों के घायल होने की खबर तो पहुंच गई लेकिन उस खबर का क्या जो इंटरनेट बंद होने से और कर्फ्यू होने की वजह से इंसानियत को धक्का पहुंचा…. खैर अब चाय के बारे में ठीक से जान लीजिए-

पेय पदार्थों की श्रेणी में चाय को नॉन एल्कोहॉलीय बेवेरेज यानी अएल्कोहॉलीय पेय कहा जाता है। प्यार को चाय की चुस्की से जोड़ दिया जाता है तो कहीं कॉफी की घूंट से। सभी उपन्यासकार इसका जिक्र करते ही हैं। बिना इसके तो सबका दिन भी नहीं बन पाता। कुछ आशिक प्यार में चाय का प्रयोग करते हैं तो वहीं कुछ बेवफाई में अल्कोहॉलिक बेवरेजेस जिसमें अल्कोहॉल की बहुतायत मात्रा पाई जाए। खैर हम चाय की बात करते हैं। क्योंकि 15 दिसंबर यानी आज चाय का दिन है। आज अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस है। अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस का मुख्य लक्ष्य चाय बागान से लेकर चाय की कंपनियों तक में काम करने वाले श्रमिकों की स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करना है। भारत, नेपाल, तंज़ानिया जैसे प्रमुख चाय उत्पादक देशों ने में इसकी शुरुआत 2005 से की गई, लेकिन एक साल बाद यह श्रीलंका में मनाया गया और वहां से फिर विश्वभर में मनाने का प्रचलन शुरू हो गया। वनस्पति विज्ञान की भाषा में थीएसी कुल का चाय का वानस्पतिक नाम कैमेलिया साइनेंसिस है।

विश्व की आधी से अधिक आबादी को चाय की लत है। इसका प्राकृत स्थान भारतवर्ष अथवा चीन अथवा दोनों देश कहे जाते हैं। प्राचीन आलेखों के अनुसार चीन में चाय 2700 बी.सी. में भी उगाई जाती थी। वहां इसका पौधा कभी भी जंगली रूप में नहीं पाया गया। लेकिन 19वीं शताब्दी में हमारे देश के आसाम क्षेत्र में जंगली चाय के पौधे पाए गए। माना जाता है चाय की अन्य किस्में यहीं से विकसित हुई। असम में इस समय नागरिकता संशोधन कानून को लेकर कर्फ्यू का माहौल है। इस विरोध को उनके संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है। जाना भी चाहिए क्योंकि चाय के कुल उत्पादन का देश में 50 फीसद भाग ऊपरी आसाम से प्राप्त होता है। इसी वजह से श्रीलंका के साथ दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश भारत है।

एक चाय वाले की कहानी भी सुनिए, वीडियो-

 

माना जाता है कि एक चीनी भिक्षु ने अपनी तपस्या के दौरान थकावट महसूस होने पर जब गर्म पानी पिया तो उसे एकाएक स्फूर्ति का अहसास हुआ। बाद में देखा गया कि जिस बर्तन में पानी गर्म हो रहा था, उसमें साथ लगे पेड़ की पत्तियां गिर गई थीं और यह पेड़ चाय का था।

कहते हैं कि छठी शताब्दी में चाय पीने की परंपरा चीन से जापान पहुंची। एक बौद्ध भिक्षु द्वारा चीन से जापान लाई गई चाय जापान में शाही दरबार और बौद्ध मठों से लेकर जापानी समाज में बहुत तेजी से फैली। धीरे-धीरे इसकी खबर यूरोप तक पहुंची। चीन से चाय का व्यापार करने का पहला अधिकार पुर्तगाल को मिला। इंग्लैंड में चाय के नमूने 1652 और 1654 में पहुंचे। एशिया महाद्वीप में चाय का आगमन 19वीं शताब्दी में हुआ था जब ब्रिटिश शासकों ने सीलोन और ताइवान (तब फार्मोसा) में चाय की खेती शुरू की।

चाय की गुणता पत्तियों की आयु पर निर्भर करती है। शीर्षस्थ यानी ऊपर की कायिक कलिका सबसे उत्तम श्रेणी की चाय बनाती हैं।

वाणिज्यिक रूप से चाय के 3 प्रकार हैं- काली अथवा किण्वित चाय, हरी अथवा अकिण्वित चाय, ऊलांग या आधा किण्वित चाय।

काली चाय बेहद महत्वपूर्ण है। चाय के बनने की प्रक्रिया के आधार पर ये नाम रखे गए हैं। काली चाय के लिए हरी चाय का किण्वन (फर्मेंटेशन) किया जाता है।

भारत में चाय की दो उन्नत किस्में दार्जिलिंग टी व आसाम टी हैं। आसाम की अपेक्षा दार्जिलिंग टी अधिक सुगंधित और कोमल होती हैं। चाय के शोध संस्थान भी इन्हीं जगहों पर मौजूद हैं जैसे टोकलई एक्सपेरीमेंटल स्टेशन, आसाम।

चाय का गुण

चाय के उत्तेजक गुण इसमें उपस्थित कैफीन नामक एल्कालॉयड के कारण है। कम मात्रा में कैफीन मानसिक व पेशी उत्तेजक के रूप में कार्य करता है। इसके अतिरिक्त चाय में 2.5 फीसद थीइन, 13-18 फीसद टैनिन व वाष्पशील तेल पाए जाते गैं। चाय का रंग व इसका तीखा स्वाद इसमें उपस्थित टैनिन के कारण होता है।

कॉफी से ज्यादा चाय में कैफीन होता है, लेकिन बनाने के बाद कॉफी की तुलना में चाय में कैफीन की मात्रा बेहद कम हो जाती है। इसलिए अगर आप कैफीन कम मात्रा में लेना चाहते हैं तो इसके लिए कॉफी की बजाय चाय बेहतर विकल्प हो सकता है। अगर हम दोनों की तुलना ऐंटिऑक्सिडेंट्स के आधार पर करें तो इसमें भी चाय कॉफी आगे है।

वैसे सबसे ज्यादा ऐंटिऑक्सिडेंट्स ग्रीन टी में पाए जाते हैं। वैसे तो हर तरह की चाय में ऐंटिऑक्सिडेंट्स होते हैं, जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। यूं तो कॉफी में भी ऐंटिऑक्सिडेंट्स मौजूद होते हैं, लेकिन चाय की तुलना में इसमें इसकी बहुत कम मात्रा होती है।

एंटीऑक्सीडेंट को ऐसे समझें

हमारे शरीर में होने वाली अधिकांश क्रियाओं में ऑक्सीकरण प्रक्रिया चलती है। इस प्रक्रिया में हमारे शरीर में फ्री रेडिकल्स (बैक्टीरिया) पनपने लगते हैं। ये बैक्टीरिया हमारे शरीर में कोशिका निर्माण और कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने में सहायक होते हैं।

परन्तु केवल कुछ बैक्टीरिया ही कोशिका निर्माण और वृद्धि में सहायक होते हैं। यदि इनकी संख्या अधिक हो जाए, तो ये हमारे शरीर की कोशिकाओं को नष्ट करने लगते हैं जिससे हमारी कार्य क्षमता कम होने लगती है और कई बीमारियाँ हमारे शरीर में धीरे-धीरे अपना स्थान बना लेती है। एंटीऑक्सीडेंट इन अतिरिक्त बैक्टीरिया को नष्ट कर हमारे शरीर को रोगमुक्त और स्फूर्तिवान बनाए रखने में मदद करता है।

अत्यधिक चाय यानी अत्यधिक कैफीन भूख को दबाता है। अपच पैदा करता है। नींद में खलल और बेचैनी भी बढ़ा देता है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

प्रभात
लेखक फोरम4 के संपादक हैं।

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