अभी एमपी गुना में किसान और दलित दंपति पर पुलिसिया अत्याचार का मामला थमा नहीं है कि अब यूपी के हापुड़ का यह वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें फल विक्रेता पर पुलिसिया अत्याचार और प्रशासन का खतरनाक रवैया देखा जा सकता है। खबरों के अनुसार फल विक्रेता ने पुलिस पर मारपीट करने के बाद फलों से भरे ठेले को गंदे नाले में फेंकने का गंभीर आरोप लगाया है। लेकिन आपको पता है जैसे ही कोई वीडियो वायरल होती है तो पुलिस प्रशासन अपने बर्बर रवैये को छुपाने के लिए एक वीडियो ट्वीट करता है, जिसमें पीड़ित या पीड़िता यह कहते नजर आता है कि यह घटना हुई ही नहीं है। दरअसल ये सब तो मैंने खुद किया है।
देख रहे हैं पुलिस ने सफाई देते हुए यह ट्वीट करते हुए लिखा है कि ऐसी कोई घटना हुई ही नहीं है। और कहा कि पुलिस का हूटर सुनकर फल विक्रेता खुद ही ठेला लेकर भाग रहे थे और उसी आपाधापी में एक ठेला नाले में गिर गया। ध्यान से सुनिये हापुड़ पुलिस क्या कह रही है-
उक्त सम्बन्ध में फल विक्रेता द्वारा बताया गया है कि उसका ठेला किसी भी पुलिसकर्मी द्वारा नहीं पलटा गया था बल्कि पुलिस की गाड़ी के हूटर की आवाज सुनकर घबराहट में ठेले का एक पहिया नाले के मेन हॉल में आ गया जिसकी वजह से ठेला पलट गया था।
इस सम्बन्ध में फल विक्रेता का वक्तव्य–
??? pic.twitter.com/RfT1nuDZS2— HAPUR POLICE (@hapurpolice) July 17, 2020
उक्त सम्बन्ध में फल विक्रेता द्वारा बताया गया है कि उसका ठेला किसी भी पुलिसकर्मी द्वारा नहीं पलटा गया था बल्कि पुलिस की गाड़ी के हूटर की आवाज सुनकर घबराहट में ठेले का एक पहिया नाले के मेन हॉल में आ गया जिसकी वजह से ठेला पलट गया था। इस सम्बन्ध में फल विक्रेता का वक्तव्य- के लिए वीडियो भी लगा है, जिसको आपने सुन लिया है।
हो सकता है आज भी किसी के बहकावे में गलत बयान दे रहा हो ????? https://t.co/1rdZtff1Np
— CPभाई यादव (@cp4yad) July 17, 2020
इस समय जो वक्तव्य के रूप में पेश किया गया है उसे आप देखिये कैसे हिचकिचाहट के साथ फल विक्रेता बोल रहा है और कह रहा है। सच्चाई अब उसके पहले लगाए गए आरोपों की मानें या फिर पुलिस का कहना। पुलिस है जो कहेगी वो तो मानना ही पड़ेगा। पत्रकार भी बंधा होता है अगर खुलकर पुलिस की बात न माने और आरोपों पर ध्यान दे तो उस पर एफआईआर हो जाएगी।
लेकिन आरोपों को सुनना जरूरी है और उससे जो उठ रहे हैं सवाल उसे भी उठाना जरूरी है, क्योंकि हमारा काम है गरीबों की आवाज को बुलंद करना और उसकी लड़खड़ाती बोली और उसके एक्सप्रेशन से कुछ कहना और प्रशासन से पूछना।
जानकारी के अनुसार, लॉकडाउन के बाद अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए हापुड़ नगर कोतवाली क्षेत्र के रहने वाले रोहताश सिंह और अशोक कुमार फलों का ठेला लगाते थे। अशोक और रोहताश ने गुरुवार को नगर कोतवाली क्षेत्र के पक्काबाग के पास फलों का ठेला लगाया हुआ था। आरोप है कि तभी नगर कोतवाली पुलिस गाड़ी में सवार होकर वहां पहुंच गई और ठेले वालों पर लाठी भांजना शुरू कर दिया। बताया जा रहा है कि इसी दौरान पुलिस ने एक गरीब का फलों भरा ठेला उठाकर पास के एक गंदे नाले में फेंक दिया।
इस घटना का सोशल मीडिया पर तेजी से वीडियो वायरल हुआ। इसमें आप एक फल विक्रेता को नाले में देख सकते हैं। इस मामले को लेकर राजनीतिक दलों ने भी सरकार को घेरना शुरू कर दिया है। समाजवादी पार्टी ने इस मामले को लेकर एक ट्ववीट किया है ट्वीट में लिखा गया है कि
हापुड़ में गरीब ठेले वाले के फलों को नाले में पलटा! पुलिस की वर्दी का रौब और हेकड़ी दिखाना शर्मनाक! वैश्विक महामारी काल में लोगों की मदद करने के बजाय उनका शोषण, दमन और उत्पीड़न कर रही पुलिस पर लगाम लगाए सरकार। मामले का संज्ञान ले दोषियों पर सख्त कार्रवाई करे सरकार।
हापुड़ में गरीब ठेले वाले के फलों को नाले में पलटा! पुलिस की वर्दी का रौब और हेकड़ी दिखाना शर्मनाक!
वैश्विक महामारी काल में लोगों की मदद करने के बजाय उनका शोषण, दमन और उत्पीड़न कर रही पुलिस पर लगाम लगाए सरकार।
मामले का संज्ञान ले दोषियों पर सख्त कार्रवाई करे सरकार। pic.twitter.com/7s8w0hbtEh
— Samajwadi Party (@samajwadiparty) July 17, 2020
आपको बता दें कि यूपी में कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए राज्य सरकार ने हर हफ्ते शनिवार और रविवार के दिन सूबे में लॉकडाउन लगाने का निर्णय लिया है।
अब सवाल सुनिये
पुलिस ने सफाई दे दी। और गरीब ने सफाई दे दी। लेकिन इस सफाई के बदले उसने जो आरोप लगाए उसका क्या। लॉकडाउन शनिवार और रविवार को है। ऐसे में अगर फल विक्रेता है तो उसके पास इतनी तेज हूटर बजाने की जरूरत क्यों पड़ी अगर पुलिस के अनुसार उसका संतुलन बिगड़ने से ठेला नाले में चला गया?
पुलिस पर मारपीट का आरोप यूं ही कोई तो नहीं लगाता क्या पुलिस ने दबाव देकर यह बयान दिलवाने की कोशिश की है। अगर नहीं तो फिर अशोक कुमार अपना नाम बताने वाला शख्स इतना नपा तुला बयान इस तरह से कैसे दे रहा है और वो भी अपनी गलती बता रहा है?
पुलिस को हमने लॉकडाउन के दौरान देखा है अत्याचार करते हुए गरीबों और शोषितों पर। प्रवासी मजदूरों पर। और उस अत्याचार के मजे लेते राजनेताओं और टीवी एंकरों को। तो कैसे हम भूल जाएं कि इस तरह का अत्याचार पुलिस नहीं कर सकती है?
ठेला अगर गिर गया नाले में तो पुलिस आखिर हूटर बजाकर चली कैसे गई। उस वीडियो में उसे भी तो दिखना था। पुलिस का काम है जनता की सेवा करना। नाले से ठेले को निकालने में उसने कैसे मदद की?
नाले में खड़े होकर इस तरह से फल निकालना देखना और दिखाना क्या अब यही बचा है प्रशासन को ऐसे जोखिम काम करने वाले के लिए क्या कुछ उपाय नहीं करने चाहिए?
फल के हुए नुकसान की भरपाई करने की कोशिश क्या स्थानीय प्रशासन द्वारा की गई। यदि नहीं तो क्यों ऐसे समय में जब लोगों की आर्थिक स्थिति खराब है। लोग कमा नहीं पा रहे और ऐसे में यदि इस तरह की घटनाएं हो रही हैं तो उसके लिए जो खुद से संघर्ष कर रहे हैं उन्हें कमाने क्यों नहीं दिया जा रहा है। वो भी सुकून से?
ठेला लेकर भागने जैसा डर दिखाता है कि पुलिस से कितना तंग आ चुकी है जनता और पुलिस ने किसी प्रकार की स्थानीय लोगों से तालमेल नहीं बिठा रखा। लोग उसे साहब और उस वर्दी के खौफ में अपनी आय कर रहे हैं। ऐसा क्यों?
नहीं पता मुझे भी इन सवालों का जवाब मगर आप अपने आप से एक बार जरूर पूछिएगा।
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