स्मृति शेष : स्वामी अग्निवेश की स्मृतियाँ
स्वामी अग्निवेश के देहांत का समाचार आज मिला। पिछले दो दिनों से चचेरे भाई के श्राद्ध में व्यस्त रहने के कारण अखबार और टीवी से दूरी कायम थी। आज किसी पोर्टल के न्यूज से पता चला वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। स्वामी अग्निवेश को सच्चे अर्थों में सामाजिक कार्यकर्ता कहा जा सकता है और उन्होंने बंधुआ मजदूरों को देश में गुलामी से मुक्ति दिलाई। इंदिरा गाँधी के द्वारा भारत में जमींदारी प्रथा के उन्मूलन के बाद यहाँ सामाजिक परिवर्तन के जो आंदोलन शुरू हुए उनमें बंधुआ मजदूरी प्रथा के उन्मूलन का आंदोलन भी शामिल है और स्वामी अग्निवेश को इस आंदोलन का सूत्रधार कहा जाता है।
स्वामी अग्निवेश से पहली मुलाकात
स्वामी अग्निवेश की अभिरुचि राजनीति में रही। उन्होंने राजीव गाँधी के खिलाफ वी. पी. सिंह के द्वारा गठित जनमोर्चा में भी शायद शामिल हो गये थे। स्वामी अग्निवेश दिल्ली में जंतर मंतर रोड पर रहते थे और जिस बिल्डिंग में रहते थे उसी में जनता दल का कार्यालय भी था और यहीं आकाशवाणी के बाल श्रम पर केन्द्रित किसी रेडियो फीचर के इंटरव्यू रिकार्डिंग में उनसे मेरी मुलाकात हुई थी। उन दिनों स्वामी अग्निवेश ने रामप्रसाद बिस्मिल की लिखी देशप्रेम की कविताओं को संकलित करके एक पुस्तिका भी प्रकाशित की थी। वो पुस्तक स्वामी अग्निवेश ने खुद मुझे दी थी।
आकाशवाणी दिल्ली के ग्राम प्रसारण के अंतर्गत स्वामी अग्निवेश ने बंधुआ मजदूरी और समाज की अन्य बुराइयों के निवारण के लिए इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के सहयोग से रेडियो जागरूकता का कार्यक्रम बनाया था। उन दिनों मेरे डेरे पर फोन की सुविधा नहीं होने से संजय जोशी मेरे काल रिसिव करते थे और शायद स्वामी अग्निवेश ने इस कार्यक्रम के प्रोडयूसर के तौर पर काम करने के लिए संजय जोशी को फोन करके मुझसे मिलने की इच्छा भी जाहिर की थी। व्यस्तता के कारण मैं चाहकर भी उनके साथ काम नहीं कर पाया।
तमाम रूढ़ियों को समाज से मिटाने के लिए अथक संघर्ष किया
स्वामी अग्निवेश संन्यासी थे और दयानंद सरस्वती के आर्य समाज के विचारों के प्रति उनके मन में गहरी आस्था का भाव था। सामाजिक विसंगतियों को देखकर उनके हृदय में सदैव गहरी पीड़ा भरी रही और उन्होंने वैचारिक सामंजस्य से तमाम रूढ़ियों को समाज से मिटाने के लिए अथक संघर्ष किया। उनके विरोधियों को उनके जीवन की सरलता और सच्चाई रास नहीं आती थी इसलिए समाज के प्रति उनके नि:स्वार्थ कार्यों को आडंबर और पाखंड भी माना जाता था लेकिन वे आग में तपकर सदैव कुंदन के समान दमकते रहे। यह उनकी आत्मा का तेज था।
स्वामी अग्निवेश ने देश के करोड़ों लोगों के जीवन को अँधेरे से बाहर निकाला और उनके मन में आशा की लौ जलायी। उन्हें शोषित पीड़ित जनता के जीवन से प्रेम था और वे सदैव उनकी हक की लड़ाई में शामिल रहे। स्वामी अग्निवेश का सरकार के साथ अच्छा संबंध रहा और वे सम्मान पुरस्कार की भावना से भी दूर रहते थे और समाज – राजनीति को लेकर सच के साथ खड़े दिखायी देते रहे। भारतीय जनता पार्टी के साथ अगर उन्होंने एक दूरी कायम की तो इसके पीछे शायद उनके धर्म निरपेक्ष विचार ही थे। उनके आत्मिक संस्कारों में देश की आध्यात्मिक परंपरा का आलोक समाहित था।
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