डोनाल्ड ट्रम्प एक ऐसे नेता हैं जो कुछ भी करने से पहले उसके दूरगामी प्रभाव के बारे में नहीं सोचते। वो ख़ुद भी नहीं जानते कि वो जो कर रहे हैं उसका अंजाम क्या हो सकता है। ट्रम्प के ख़राब निर्णयों का अंजाम विश्व को कई बार भुगतना पड़ता है। चाहे ट्रम्प का पेरिस जलवायु परिवर्तन डील से ख़ुद को अलग करना हो, चीन के साथ ट्रेड वॉर हो या ईरान से तेल ख़रीदने पर पाबंदी लगाना हो, उनके विवादास्पद निर्णयों की वजह से उनकी ख़ूब आलोचना होती रही है। ईरानी क़ुद्स फ़ोर्स के प्रमुख मेजर जनरल क़ासिम सुलेमानी की ड्रोन से हमला कर की गई हत्या इसका ताज़ा उदाहरण है।
सुलेमानी की हत्या कर अमेरिका ने विश्व में एक बार फिर से तनाव बढ़ा दिया है। ईरानी मेजर जनरल की मौत की ख़बर फैलते ही कच्चे तेल की कीमतों में चार फीसदी का ज़बरदस्त उछाल आया है जिसके अभी और बढ़ने की संभावना है। ईरान ने भी अमेरिका से सुलेमानी की हत्या का बदला लेने का ऐलान कर डाला है। तेहरान अमेरिका से युद्ध जीत तो नहीं सकता लेकिन, अगर युद्ध हुआ तो यह देश अमेरिका को ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान पहुँचाने में सक्षम है। ईरान समर्थित लड़ाके सीरिया, लेबनॉन व इराक़ में जगह-जगह पर मौजूद हैं जिनके पास मिसाइल, रॉकेट जैसे आधुनिक और खतरनाक हथियार मौजूद हैं। इराक़ी मिलिट्री बेस पर रॉकेट से किया गया हमला इसका उदाहरण है। इस हमले में एक अमेरिकी कांट्रेक्टर की मौत हो गयी थी। इराक़ के शिया समुदाय पर ईरान की अच्छी पकड़ है और इन लड़ाकों और इराक़ की शिया जनता के सपोर्ट से ईरान कहीं भी अमेरिकी ठिकानों पर हमला करा सकता है। यही नहीं ईरान पर रूस और चीन जैसे देश जो कि यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी कॉउन्सिल का हिस्सा हैं का सपोर्ट है।
क्यों की गयी सुलेमानी की हत्या ?
सुलेमानी ने इराक़ से आइसिस को खदेड़ने में एक अहम भूमिका निभाई थी उसके बाद भी वह अमेरिका के लिए सरदर्द बना हुआ था। इराक़ में ग़रीबी, बेरोज़गारी आदि को लेकर मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं और सुलेमानी इराक़ के लोगों को अमेरिका के ख़िलाफ़ भड़काने की कोशिश कर रहा था। वह इराक़ के स्थानीय मिलिशिया संगठनों को खड़े रहने में मदद कर रहा था। इन संगठनों का मानना है कि अब आइसिस खत्म हो चुका है तो अमेरिका को अपने बचे हुए पाँच हज़ार सिपाही भी वापस बुला लेने चाहिए। इसके अलावा सुलेमानी सीरिया में भी रूस व चीन की मदद से ग्रह युद्ध भड़काने में लगा हुआ था। सुलेमानी सीरिया में ग्रह युद्ध भड़का कर बशर अल असद की सरकार को गिराने की कोशिश में लगा हुआ था जिसे अमेरिका का समर्थन प्राप्त है। अमेरिका सीरिया में अपने हितों के लिए बशर अल असद की सरकार बनाये रखना चाहता है जबकि रूस और ईरान इस सरकार को गिराना चाहते हैं।
पिछले महीने की 27 तारीख़ को किरकुक में स्थित एक इराक़ी मिलिट्री बेस पर रॉकेट से हमला किया गया था जिसमें एक अमेरिकी कांट्रेक्टर की मौत हो गयी थी जबकि कई इराक़ी और अमेरिकी सिपाही ज़ख्मी हो गए थे। अमेरिका ने कतेब हिज़्बुल्लाह संगठन को इस हमले का जिम्मेदार ठहराया था। इस संगठन को ईरान द्वारा समर्थन प्राप्त है। जिसके जवाब अमेरिका ने एक ड्रोन हमला कर के दिया जिसमें 25 लड़ाके मारे गए और 55 ज़ख्मी हुए। जिसके जवाब में इराक़ के लोगों ने इराक की राजधानी बग़दाद में अमेरिकी दूतावास पर भारी विरोध प्रदर्शन किया गया जिसमें कोई हताहत तो नहीं हुआ लेकिन एम्बेसी के रिसेप्शन एरिया को तोड़ डाला गया। इराक़ में स्थित अमेरिकी दूतावास ग्रीन ज़ोन में स्थित है जहां तक पहुँच पाना भी मुश्किल है। यहां पर इस प्रकार का प्रदर्शन बड़ी सुरक्षा ब्रीच था। यह अमेरिका का सबसे बड़ा दूतावास है। जिसके बाद 3 जनवरी 2020 को रात के लगभग एक बजे बगदाद एयरपोर्ट पर अमेरिका द्वारा एक ड्रोन हमला किया गया जिसमें सुलेमानी और छह अन्य लोगों जिनमें इराक़ी फ़ौजी और कतेब हिजबुल्ला के नेता अबु महदी भी शामिल थे मारे गए।
कौन था सुलेमानी ?
कासिम सुलेमानी ईरान की क़ुद्स फोर्स का प्रमुख मेजर जनरल था। क़ुद्स फोर्स दुनिया में ईरान का प्रभाव बढ़ाने के लिए ग़ैर पारंपरिक तरह से युद्ध करती है जिसमें गुरिल्ला तकनीक से हमले करना, स्थानीय मिलिशियाओं को सपोर्ट करना, ट्रेनिंग देना आदि काम शामिल हैं। कासिम सुलेमानी को एशिया का सबसे मजबूत लीडर माना जाता था। सुलेमानी को ईरान का अगला संभावित राष्ट्रपति भी माना जाता था। आइसिस को इराक़ से खत्म करने में सुलेमानी का बहुत बड़ा हाथ था। अली खोमेनी के आने के बाद सुलेमानी को 2011 में आईआरजीसी का मेजर जनरल बनाया गया जो सबसे बड़ी पोस्ट है। यह संस्था सीधे सर्वोच्च नेता को रिपोर्ट करती है। आईआरजीसी को अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है लेकिन इसके बाद भी न जॉर्ज बुश न ही ओबामा ही सुलेमानी पर हमला करने की हिम्मत कर पाए क्योंकि इससे विश्व में अस्थिरता आने की संभावना थी। डोनाल्ड ट्रम्प के ऐसा करने से विश्व की शांति व स्थिरता पर ख़तरे के बादल मंडरा गए हैं।
दिल्ली में हमला सुलेमानी ने कराया था ?
ट्रंप ने ट्वीट किया कि सुलेमानी लंदन से नई दिल्ली तक आतंकी हमले कराने के लिए ज़िम्मेदार है, लेकिन यह नहीं बताया कि कौन सा हमला? शक की सुईं 2012 में इज़राइल डिफ़ेंस एडवाइज़र की पत्नी पर हुए हमले की तरफ़ घूमती है जिनकी कार को बम लगा कर उड़ाने की कोशिश की गई थी। इसमें डिफ़ेंस एडवाइज़र की पत्नी व सड़क पर खड़े दो लोग भी घायल हो गये थे। इजराइल के प्रधानमंत्री ने इस घटना के पीछे ईरान का हाथ बताया था।
भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
रूस और चीन ने ईरान में भारी इन्वेस्टमेंट की है। ईरान और अमेरिका के बीच अगर युद्ध होता है तो सबसे ज़्यादा नुक़सान इन दोनों को होगा। ईरान सऊदी के तेल ठिकानों पर भो हमले कर सकता है जिससे पूरे विश्व में तेल की कीमत बढ़ सकती है। इस तनाव से भारत पर कोई सीधा प्रभाव तो नहीं पड़ेगा लेकिन पहले से ही मंदी और महंगाई की मार झेल रहे भारत में तेल की कीमतों में और भारी वृद्धि हो सकती है। ईरान में चबार पोर्ट के रूप में भारत का एक प्रोजेक्ट है परंतु इसके अलावा भारत को कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा। भारत ने इस पूरे मसले पर न्यूट्रल रुख अपनाया है।
(नोट- प्रस्तुत लेख के किसी अंश से आपत्ति की स्थिति में फोरम4 उत्तरदायी नहीं है। यह लेखक के अपने निजी विचार हो सकते हैं।)
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