हम आपको सिंघु बॉर्डर की आंखों देखी ताजा हालात के बारे में बताना चाहते हैं। क्योंकि गाजीपुर बॉर्डर पर कल से ही स्थिति ठीक है। वहां तो हर प्रदेश से कोने कोने से लोगों की भीड़ रुकने के लिए और भी आ रही है। इधर सिंघु बॉर्डर पर स्थिति तनावपूर्ण हैं। गृहमंत्रालय ने आदेश दिया है कि 31 जनवरी तक दिल्ली के सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर के आसपास इंटरनेट पूरी तरह से बंद रहेगा। हालांकि बताया जा रहा है कि यह कदम 26 जनवरी की हिंसा और 29 जनवरी को इस्रायली दूतावास पर हुए हमले के बाद सुरक्षा कारणों से उठाया गया है।
लेकिन हम आपको सिंघु की ताजा हालात बताने जा रहे हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि जहां पर हजारों लोग अपने ट्रैक्टर ट्राली लेकर 2 महीने से शांतिपूर्ण आंदोलन में शरीक हैं वहीं इंटरनेट बंद हो चुका है। कर्फ्यू जैसा माहौल है। आपको अगर सिंघु बॉर्डर प्रदर्शन स्थल जाना हो तो आप नहीं जा सकते। यहां तक कि मीडियाकर्मी की भी एट्री बंद कर दी गई है। अगर आप मेनस्ट्रीम मीडिया के रिपोर्टर हैं और लाइव होकर उनसे पूछेंगे, जोर जबरदस्ती करेंगे तो ही शायद एंट्री मिल पाएगी। सिंघु बॉर्डर पर भारी सुऱक्षाबल तैनात हैं। कई सारी बैरिकेडिंग की गई है। दिल्ली पुलिस और रैपिड एक्शन फोर्स के जवान तैनात हैं। आप जैसे ही बैरिकेडिंग के करीब पहुंचेगे तो ही वहीं आपको रोक लिया जाएगा।
यह दृश्य देखकर आप खुद दंग रह जाएंगे।
ऐसा लगता है कि सिंघु बॉर्डर भारत पाकिस्तान का बॉर्डर बन चुका हो। मीडिया से अधिकारियों के बातचीत का रवैया काफी खराब है। जब आप प्रवेश के लिए उनसे अनुनय विनय करते हैं तो आपको वहां से बदतमीजी से चले जाने को कहा जाता है। मुझे नहीं लगता कि इंटरनेट बैन और सोशल मीडिया के लोगों को न जाने दिये जाने की वजह से आप यह खबर भी देख पा रहे होंगे। क्योंकि मेन स्ट्रीम मीडिया को रोके जाने के बाद भी मेन स्ट्रीम मीडिया आपको यह नहीं दिखायेगा कि उनके साथ भी वहां बदसलूकी की जा रही है।
सिंघु बॉर्डर पर एगर आपकी एंट्री हो भी जाती है तो आप वहां से बाहर नहीं निकल सकते चाहे आप कितने भी इमरजेंसी में हो। यह आपातकालीन स्थिति आखिर क्यों है। मैं इस सरकार से पूछना चाहता हूं कि अपने ही देश में भारत पाकिस्तान की तरह बॉर्डर खड़ा करना और उसमें लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करने का अधिकार किसने दिया। मैं केंद्र सरकार और दिल्ली, यूपी, हरियाणा की सरकारों से पूछना चाहता हूं कि क्या लोगों को सड़क पर भी इज्जत के साथ बैठने का अधिकार नहीं है। यह तानाशाही की चरम सीमा है जहां आप घुसपैठियों की एंट्री करके आपस में पत्थरबाजी करा देते हो और हिंसक माहौल बनाते हो। बिजली पानी जैसी मूलभूत चीजों को बैन कर देते हो। इंटरनेट सेवा बंद करके कर्फ्यू जैसा माहौल बनाते हो। अंदर महिलाओं और बच्चों तक को इस आपात काल स्थिति से गुजरने देते हो। यह अधिकार आपको किसने दिया। क्या सुप्रीम कोर्ट को इस पर संज्ञान नहीं लेना चाहिये। अगर आप मेरे इस बातचीत से जरा भी इत्तेफाक रखते हों कि प्रदर्शन करना और इज्जत के साथ करना लोगों का मौलिक अधिकार है। यहां तक कि इंटरनेट सेवा बंद करके लोगों की आवाज को दबाना तानाशाही है। इसके खिलाफ आवाज उठाना हम चौथे स्तंभ की जिम्मेदारी है तो आप इस आवाज को जरूर उठाइये क्योंकि यह लोगों के मौलिक अधिकार हैं।
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