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संसद में विपक्ष को निशाना बनाने की नई परंपरा, जानें निलंबन पर क्या हैं नियम कानून

संसद के शीतकालीन सत्र का सबको बेसब्री से इंतज़ार था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के अनुसार इस सत्र में तीन कृषि कानूनों को निरस्त किया जाना था। सत्र के पहले ही दिन सरकार ने कानून तो वापस लिए लेकिन विपक्ष के 12 सांसदों को निलंबित कर नया धमाका कर दिया। संसदीय मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी ने सदन में विपक्ष के 12 सांसदों के निलंबन के लिए प्रस्ताव पर सहमति ली। उन्होंने सदन को बताया कि सभी 12 सांसदों को पूरे सत्र के लिए सदन की कार्यवाही में जानबूझकर गतिरोध पैदा करना और दुर्व्यवहार जिसमें सुरक्षाकर्मियों के साथ झड़प भी शामिल है, के लिए निलंबित किया गया है। इन 12 सांसदों में कांग्रेस के 6, तृणमूल और शिवसेना के 2-2, सीपीआई और सीपीआई एम के 1-1 सांसद शामिल हैं।

क्या है पूरा मामला

आपको बता दें कि ये सब मानसून सत्र के आखिरी दिन यानी कि 11 अगस्त का है जब सरकार जनरल इन्शुरन्स बिल को पास कराना चाहती थी। विपक्ष की मांग थी कि बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए। इसी को लेकर सदन में हंगामा हुआ था, जिसके बाद विपक्ष ने सदन के मार्शलों के द्वारा मारपीट का आरोप लगाया था एवं इस बाबत उन्होंने सभापति को ज्ञापन भी सौपा था। सरकार ने इसके जवाब में अपने 8 मंत्रियों को प्रेस कांफ्रेंस में भेजा था।

निलंबन को गैरकानूनी क्यों बता रहा है विपक्ष?

संसदीय मामलों के जानकार कह रहे हैं कि ये राज्यसभा के इतिहास में संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा निलंबन है। आपको बता दें इन सभी सांसदों को राज्यसभा के नियम 256 के तहत निलंबित किया गया है। नियम 256 (1) के तहत अगर सभापति को लगता है कि कोई सदस्य सभापीठ के अधिकारों की उपेक्षा कर रहे हैं या फिर बार-बार और जानबूझकर कार्यवाही में बाधा डाल रहे हैं तो उस सदस्य को निलंबित कर सकते हैं। 256 (2) के तहत सभापति किसी भी सदस्य को वर्तमान सत्र से अधिक समय के लिए निलंबित नहीं कर सकता है। इसमें यह भी शामिल है कि सदन कभी भी प्रस्ताव के माध्यम से सदस्य का निलंबन रद्द कर सकता है। सवाल ये उठता है कि क्या पुराने सत्र के मामलें को लेकर इस सत्र के लिए निलंबित किया जा सकता है? क्योंकि सभापति को निलंबन का अधिकार एक सत्र तक ही सीमित रहता है। विपक्ष एवं कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया है कि ये निलंबन संसद के नियमों के खिलाफ है। इसके अलावा विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार ने 12 सांसदों को जानबूझकर कर निलंबित किया है क्योंकि इससे सरकार को राज्यसभा में बिल पास कराने में आसानी होगी। इस सत्र में कई महत्वपूर्ण सूचीबद्ध है जिनमें जाँच एजेंसियों के चैयरमैन का कार्यकाल बढ़ाने का बिल भी शामिल है। जिसका विपक्ष कड़ा विरोध कर रहा है।

निलंबन को लेकर पहले कब क्या हुआ?

ये कोई पहली बार नहीं है कि सदस्यों का निलंबन हुआ है, इससे पहले भी कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों को निलंबित किया जाता रहा है। पहली घटना 1963 में हुई थी। कुछ लोकसभा सांसदों ने पहले राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के वक्तव्य के दौरान हंगामा किया और फिर जब वे संयुक्त सदन का भाषण दे रहे थे तो वाक आउट कर गए। इन सांसदों को फटकार लगाई गई थी। 1989 में ठाकर आयोग की रिपोर्ट की चर्चा पर 63 सांसदों को लोकसभा से निलंबित कर दिया गया था। लोकसभा से भी किसी सांसद को एक दिन, कुछ दिन या फिर पूरे सत्र के लिए निलंबित किया जा सकता है। लोकसभा रूल बुक में ये अधिकार नियम 373 और 374 में हैं. नियम 373 के तहत सांसद को एक दिन के लिए निलंबित किया जा सकता है तो वहीं नियम 374 के तहत एक निश्चित अवधि और पूरे सत्र के लिए निलंबित करने का अधिकार लोकसभा अध्यक्ष को रहता है। हाल ही में 2010 में, महिला आरक्षण बिल के दौरान छीना झपटी के लिए 7 सांसदों को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था। 2001 में लोकसभा के नियम में संशोधन कर अध्यक्ष को एक अतिरिक्त शक्ति प्रदान की गई। एक नया नियम, 374A, अध्यक्ष को सदन के कामकाज को बाधित करने के लिए अधिकतम पांच दिनों के लिए एक सांसद को स्वचालित रूप से निलंबित करने का अधिकार देता है। 2015 में, स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 25 कांग्रेस सांसदों को निलंबित करने के लिए इस नियम का इस्तेमाल किया था।

सरकार क्यों नहीं कराती है विस्तृत चर्चा?

जब भी संसद सत्र चलता है। हंगामे को लेकर पक्ष विपक्ष एक दूसरे पर आरोप – प्रत्यारोप लगते रहते हैं। विपक्ष कहता है सरकार चर्चा नहीं कराना चाहती है, जबकि सत्ता पक्ष कहता है की विपक्ष चर्चा नहीं करने दे रहा है। पिछले सत्र में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष पर आरोप लगाया था की सदन को नहीं चलने में उसका हाथ है। वहीं मॉनसून सत्र के दौरान तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओब्रायन ने आरोप लगाया था कि सरकार ने 38 बिलों को सिर्फ औसतन 10 मिनट प्रति बिल के हिसाब से पास कराएं हैं और 10 में से सिर्फ 1 बिल को ही संसदीय समिति के पास भेजा था। आखिर सरकार को किस बात की जल्दी रहती है। ऐसा हमें कई बार देखने को मिला चाहे वह धारा 370 हो, कृषि कानून या सीएए  (CAA) बिल सरकार ने बिना विस्तृत चर्चा के चंद घंटों में बिल पास करा लिए।

पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च (PRS LEGISLATIVE RESEARCH) के अनुसार जहां 2009-2014 के बीच 71 फीसद बिलों को संसदीय समिति के पास समीक्षा के लिए भेजा गया। वहीं 2014-2019 के बीच सिर्फ 27 फीसद बिलों को ही समितियों के पास समीक्षा के लिए भेजा गया। इसके अलावा 2019 से अभी तक सिर्फ 12 फीसद बिलों को ही संसदीय समिति के पास समीक्षा के लिए भेजा गया है। 

सदन को चलाने की जिम्मेदारी किसकी

2001 में, संसद के सेंट्रल हॉल में संसद में हंगामें के मुद्दे पर आयोजित एक राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान, विभिन्न राजनीतिक नेताओं ने अपने विचार रखे थे। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि बहुमत दल सदन के संचालन के लिए जिम्मेदार है और उसे अन्य दलों को विश्वास में लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि विपक्ष को संसद में रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए और उसे अपने विचार रखने और खुद को सम्मानजनक तरीके से व्यक्त करने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके अलावा 30 जनवरी 2011 को तब के सदन के विपक्ष और बीजेपी के नेता अरुण जेटली कहते हैं कि “संसद का काम चर्चा करना है। लेकिन कई बार संसद का इस्तेमाल मुद्दों की अनदेखी करने के लिए किया जाता है और ऐसे में संसद में बाधा डालना लोकतंत्र के पक्ष में होता है। इसलिए संसदीय बाधा अलोकतांत्रिक नहीं है।”

7 सितंबर, 2012 को संसद के बार-बार बाधित होने और बुरी तरह बाधित हुए मानसून सत्र के बारे में, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा था कि “संसद को कार्य करने की अनुमति नहीं देना भी किसी अन्य रूप की तरह लोकतंत्र का एक रूप है।” इसके अलावा उन्होंने कहा कि “हमें सरकार और उसके भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के लिए संसद को रोकना पड़ा। वैसे भी संसद चलाना सरकार का काम है, विपक्ष का नहीं।” इस आधार पर सोचें तो क्या अब सदन को सुचारू ढंग से संचालित करना सत्ता पक्ष की जिम्मेदारी नहीं है। खासकर तब जब सत्ता पक्ष के पास इतना बड़ा बहुमत हो।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

सचिन
आईआईएससी के छात्र रहे हैं और कई मीडिया संस्थानों में भी काम कर चुके हैं।

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