शरद पूर्णिमा का सौंदर्य
हमारे देश की ऋतु परंपरा में शरद को वसंत के समान ही बेहद सुंदर ऋतु माना जाता है। कवियों ने नाना प्रकार की उपमाओं से शरद के सौंदर्य को काव्य लेखन का विषय बनाया है और इसे वर्षा ऋतु के बाद जाड़े के मौसम की शुरुआत की ऋतु के रूप में भी देखा जाता है। शरद के उत्सव के रूप में नवरात्र हमारे देश का सबसे महान कृषि त्योहार है और इसमें उन्नत कृषि की कामना को लेकर देश के गाँवों में वर्षाजल से आद्रभूमि पर अन्न उगाने की परंपरा रही है। नवरात्र मिट्टी और फसल की पूजा का त्योहार है और शारदोत्सव के रूप में इसके आयोजन के साथ देश की संस्कृति की सुंदर छटा शरद के मौसम में होने वाली रामलीलाओं में प्रकट होती है।
हमारे देव की सौंदर्य परंपरा में शरद पूर्णिमा को सबसे सुंदर माना जाता है और इस दिन बादलों की आवाजाही से रहित आकाश में पूर्णचंद्र का सौंदर्य और धरती पर सागर नदी जलाशय पोखर के अलावा अन्य जलाशयों में इसका प्रतिबिंब अद्भुत प्रतीत होता है। शरद आकाश में बादल के अवसान के ऋतु के रूप में काव्य में चित्रित हुआ है और जल से परिपूर्ण धरती पर शरद के चाँद का सुंदर प्रतिबिंब आकाश और धरती के सबसे सुखद संयोग के रूप में भी देखा जाता है। इसलिए शरद पूर्णिमा प्रणय के प्रतीक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन नौका विहार को काफी आनंददायक माना जाता है और इस दिन जलविहार का आनंद सबके मन को आनंद से विभोर कर देता है। शरद ऋतु में सूर्य का तीव्र ताप मंद होने लगता है और पूर्णिमा के दिन यह ताप समशीतोष्ण हो जाता है। इसी काल में देश में रबी के खेती की शुरुआत होती है। तुलसीदास ने रामचरितमानस में शरद ऋतु के सौंदर्य का सुंदर चित्रण किया है और यह राम के वनवास का प्रसंग है और वन में वर्षाऋतु के बीत जाने के बाद शरद को आया देखकर लक्ष्मण को वन्यपरिवेश में प्रकट होने वाले सुंदर परिवर्तनों को देखकर उसके बारे में बताते हैं – हे लक्ष्मण .! देखो, वर्षाऋतु बीत गयी है और शरद ऋतु का आगमन हुआ है। कास के फूल सारी धरती पर छा गये हैं और ये फूल वर्षा के बुढ़ापे और उसके पके सफेद केशों के समान प्रतीत हो रहे हैं।
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