अनूठी सांस्कृतिक विरासत और गौरवमयी परम्पराओं से सुसज्जित इस देश के नागरिकों में न जाने क्यों अपने भारतीय होने पर गर्व की अनुभूति नहीं होती । उन्नीसवीं शताब्दी में अनेक महापुरुषों को जन्म देने वाली इस भारत भूमि में आज महापुरुष कहे जाने योग्य महानुभावों की गणना नगण्य है।
आज भारत में भौतिक क्षेत्र में असाधारण प्रगति हुई है । भारतीय भौतिक ढाँचे व रहन – सहन के तरीके में भी आधुनिक नाम का विशेष परिवर्तन आया है । लेकिन, ये भौतिक परिवर्तन या प्रगति किसके लिए ? मानवता के विकास के लिए या अविकास के लिए ? यह प्रश्न इसलिए उठा क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में मानवीय मूल्यों में अप्रत्याशित गिरावट आयी है । नैतिक व अनैतिक व्यवहार में मनुष्य मानों भेद करना ही भूल गया है । ऐसे में समाज के बुद्धिजीवी वर्ग में देश के भविष्य के प्रति शंकाएँ उठने लगी हैं परिणामस्वरूप भौतिक प्रगति व्यर्थ प्रतीत होती है ।
किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी पूँजी उसकी युवा शक्ति है । युवा वर्ग के सद्प्रयत्नों द्वारा ही राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सकता है। देश का युवा वर्ग यदि राष्ट्र के भविष्य निर्माण के प्रति अपने कुछ सार्थक उत्तरदायित्व निश्चित करे तो अवश्य ही राष्ट्र सद्प्रगति की ओर उन्मुख होगा । इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रत्येक युवक को अपने व्यक्तित्व निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करना होगा । उसे विभिन्न चिन्ताओं और निराशाओं से निकलकर अपने स्वास्थ्य के प्रति गंभीर व चरित्र निर्माण के प्रति सजग होकर एक स्वस्थ व्यक्तित्व का निर्माण करना होगा । स्वस्थ व्यक्तित्व द्वारा ही वह एक स्वस्थ व प्रगति उन्मुख राष्ट्र का निर्माण कर सकता है ।
आज का युवा वर्ग उत्साहहीन व दिशाहीन दिखाई देता है । इसका कारण उसका किसी एक निश्चित लक्ष्य के प्रति संकल्पित न होना है । जबकि जीवन में सफल होने के लिए किसी एक लक्ष्य का निर्धारण आवश्यक है ।
एक निश्चित लक्ष्य निर्धारित न होने से युवकों में एक अकुलाहट आने लगती है । इस अकुलाहट को दूर करने व रिक्तता को पूरित करने के लिए वे अवांछनीय तत्वों के शिकार हो जाते हैं । ऐसा युवा वर्ग ही दिशाहीनता के कारण शिक्षित होकर भी आपराधिक घटनाओं में संलिप्त पाया जाता है ।
जो व्यक्ति अपने चरित्र का निर्माण एक लक्ष्य को निर्धारित करके उपयोगिता की दृष्टि से करता है वह भविष्य में कभी निराश नहीं होता । ऐसा व्यक्ति समाज और राष्ट्र का गौरव बनकर राष्ट्र की प्रगति में सहायक होता है । जीवन का एक निश्चित लक्ष्य होने से ही व्यक्ति की सारी सकारात्मक उर्जा उसी लक्ष्य की प्राप्ति में केन्द्रीभूत हो जाती है । ऐसे व्यक्ति के पास नकारात्मक विचारों से घिरने का समय ही नहीं बचता ।
लक्ष्य निर्धारण मनुष्य को आत्म संतोष व आत्मविश्वास प्रदान करता है । जिससे उसके अंदर पुरुषार्थ,कर्मठता व निर्भीकता उदित होती है । ऐसा युवक ही मानवता के आभूषण में एक अमूल्य नग का कार्य कर मनुष्य जीवन को सफल बनाता है । मानवता ऐसे व्यक्ति की सदैव कृतज्ञ रहती है ।
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