मैं मध्य प्रदेश के गुना का हूं। किसान हूं और दलित भी। गरीब हूं। आजादी के 70 साल बाद भी अभी गुलाम ही हूं। इस वक्त कोरोना के कारण जब पूरी दुनिया वैसे भी तबाही के मुंह में जा रही है, मेरी जमीन बर्बरता की चोट से कलपते आंसुओं से भीग गईं और दिशाएं नन्हीं नाबालिग चीत्कारों से गूंज से बहरी हो गईं। कोई आंसुओं को पोछने वाला तो दूर बचाने तक को नहीं आया। जब पत्नी बचाने आई तो चीरहरण कर दिया। यही कारण है कि खेत में सरेआम वर्दी के कहर के कारण कीटनाशक पी लेना पड़ा। यह 14 जुलाई 2020 की नई दास्तान है।
मामला क्या है?
मध्य प्रदेश के गुना शहर से किसान परिवार पर पुलिस की बर्बरता का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वायरल वीडियो में दिख रहा है कि पुलिस ने मौके से राजकुमार और उसके परिजनों को हटाने के लिए लातों और लाठियों का भरपूर प्रयोग किया। राजकुमार की पत्नी की भी पिटाई की गई और कपड़े तक फाड़ दिये।
देखें वीडियो-
इसके बाद पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई से दुःखी होकर ये किसान दंपती ने जहर पी लेते हैं, इसके बाद वीडियो में यह भी दिख रहा है कि दंपती के बच्चे कैसे विलाप कर रहे हैं।
बता दें कि गुना शहर के पीजी कॉलेज से लगी सरकारी जमीन पर राजकुमार अहिरवार नामक दलित शख्स लंबे अर्से से खेती कर रहा था। मंगलवार को एसडीएम की अगुवाई में अतिक्रमण विरोधी दस्ता मौके पर पहुंचा। पुलिस भी साथ थी।
प्रशासन ने राजकुमार और उसके परिवार द्वारा बोई गई अंकुरित फसल पर बुलडोज़र चलाना शुरू कर दिया। राजकुमार और उसके परिवार ने अमले के सामने मिन्नतें कीं। राजकुमार बताता रहा कि इस जमीन पर उसके बाप-दादा के जमाने से खेती हो रही है। उसका परिवार बरसों से जमीन पर काबिज़ है। उसने माना कि जमीन का पट्टा नहीं है और साथ ही कहा कि यहां पहले कभी कोई नहीं आया।
राजकुमार और उसका परिवार चाहता था कि फसल पकने और कटने तक उन्हें बख्श दिया जाये। लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई।
बेटी चीखती रही और लोग देखते रहे
पिटाई के बाद जब पिता बेसुध होकर गिर पड़ा तो उसके सात बच्चों में से बड़ी बेटी चीखती हुई उसके पास पहुंची। पिता के सिर को गोद में रखकर बोलती रही, पापा उठो न… उठो न पापा। बाकि भाई-बहनों ने उसे इर्द-गिर्द से घेर लिया। वीडियो में दिख रहा है कि कैसे बच्चे विलाप कर रहे हैं।
ऐसी घटनाएं कोई नई नहीं है। नया है बस वीडियो बनाना और इसका वायरल हो जाना। ताकि घटनास्थल पर तो लोग नहीं बचा सके। लेकिन वायरल होने के बाद अब लोग संवेदनशील दिख रहे हैं। जहर पीने के बाद सारी सच्चाई भी बाहर तो आ ही जाएगी।
संवेदनहीन पुलिस का रवैया भी कोई नया नहीं है यह तो आजादी से पहले से जैसे ब्रिटिश हुकूमत की पुलिस से होता चला आ रहा
बीजेपी राज में हर ओर जंगल राज है?
यह मध्य प्रदेश है, जहां 4 महीने पहले ही शिवराज सरकार दोबारा बनी है। यह वही सरकार है जो गरीबों-किसानों के हक के साथ खड़े होने का दावा करती है। इसके पहले कांग्रेस की कमलनाथ सरकार थी, जिसकी जब सत्ता से बेदखली हो रही थी तो वे नारे लगा रहे थे कि उन्हें गरीबों-कमजोरों और किसानों के साथ खड़े होने का यह सबब मिल रहा है। लेकिन अब हकीकत किसी से छुपी नहीं है। मध्यप्रदेश का यही वह जगह है जहां विकास दुबे के पकड़ने की कामयाबी की बात कही जाती है वहीं इस तरीके की घटनाएं भी दिख रही हैं। यूपी, मध्यप्रदेश जैसी जगहों पर बढ़ते अपराधों पर विपक्ष यही कह रहा है कि बीजेपी में हर ओर जंगल राज है।
विकास दुबे की घटना के बाद पुलिस का घिनौना चेहरा?
कानपुर में पुलिस पर हुआ हमला अभी भूला नहीं है। विकास दुबे भले ही मर गया है लेकिन 8 पुलिस वालों की शहादत भुलाई नहीं जा सकेगी। इसके 15 दिन बाद गुना की इस घटना को देख लीजिए जहां पुलिस बर्बर बन बैठी है। यह दोनों ही घटनाएं चीख-चीख कर इस सच को बता रही हैं, देश में दो अलग-अलग वर्ग के बीच न्याय समान नहीं है। न्याय बल्कि है नहीं। अन्याय ही अन्याय है। इस तरह देशभर की पुलिस व्यवस्था पर सवाल है कि क्या वह वाकई वर्ग, चेहरा, जाति देखकर कार्रवाई का तरीका तय करती है?
याद रखिए कि हर आंसू बहाने वाला व्यर्थ में बहे आंसू का मोल लेना शुरू करेगा तो डूबती सियासत को उबारने के लिए एक कच्ची डोरी भी न बचेगी। तब आप क्या कीजिएगा? सवाल छोटा है, लेकिन जवाब तलाश लीजिए।
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