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दिल्ली हाईकोर्ट ने अधिक फीस वसूली मामले में आईआईएमसी को जारी किया नोटिस

मीडिया संस्थान भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) के फीस वृद्धि का मामला अब दिल्ली उच्च न्यायालय तक पहुंच गया। याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने 15 फरवरी 2021 को अपने आदेश में आईआईएमसी को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए आदेशित किया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि यदि याचिकाकर्ता अपने तर्क में सफल हो जाता है तो भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) को छात्रों से लिया गया अतिरिक्त शुल्क वापस करना होगा।

याचिकाकर्ताओं की ओर से केस में नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता अनुराग ओझा और एडवोकेट शिवम मल्होत्रा और दो अन्य वकीलों ने याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए फीस वृद्धि को मनमाना और गलत बताया। याचिकाकर्ता गौतम कहते हैं कि संस्थान प्रशासन लगातार अपने पद और ताकत से हम छात्रों की आवाज़ को दबाने की कोशिश करता रहा है। कहने को तो पत्रकारिता के क्षेत्र में आईआईएमसी देश का सर्वोच्च मीडिया संस्थान है, जहां छात्र-छात्राओं को सवाल करना सिखाया जाता है मगर ऐसे मौकों पर जब हम उनसे सवाल करते हैं तो उनके कार्रवाई को देखकर यह समझा जा सकता है कि उनके कथनी और करनी में कितना फ़र्क है। लेकिन फिर भी हम अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।

आईआईएमसी से अंग्रेजी पत्रकारिता की पढ़ाई कर चुकीं आस्था बताती हैं कि सस्ती (यदि निशुल्क करना संभव न हो) और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देश के प्रत्येक नागरिक का अधिकार है। कोई भी संस्थान या विश्वविद्यालय जो हमें शिक्षा के अधिकार से, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिबंधित करता है, वह एक गंभीर मानवाधिकार का उल्लंघन कर रहा है।

सचिन बघेल कहते हैं कि फीस को अफोर्डेबल मॉडल में लाने के लिए हमने हर कदम उठाया लेकिन आईआईएमसी प्रशासन ने हमेशा नाजायज़ तरीके से फीस वसूलने की कोशिश की। अदालत का दरवाजा खटखटाना हमारा आखिरी उपाय रह गया था। अब जब अदालत ने नोटिस जारी किया है तो हमारी उम्मीदें बढ़ी हैं।

गौतम कुमार, आस्था सव्यासाची और सचिन बघेल भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व छात्र हैं जिन्होंने फीस वृद्धि के खिलाफ़ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। आपको बता दें भारतीय जनसंचार संस्थान में फीस वृद्धि को लेकर सत्र 2019-2020 में छात्रों ने लम्बा प्रदर्शन किया जो एक आंदोलन का रूप ले चुका था। ये छात्र, संस्थान में मीडिया कोर्स की पढ़ाई के लिए लागू भारी-भरकम फीस के अतिरिक्त हर वर्ष मनमाने तरीके से फीस को स्वत: 10 प्रतिशत बढ़ाये जाने के खिलाफ़ जांच की मांग कर रहे थे। अंतत: छात्र शक्ति के आगे संस्थान प्रशासन झुका और प्रशासन को फीस वृद्धि के मामले में एक कमेटी बनाने पर मजबूर होना पड़ा था। जब कमेटी ने संस्थान प्रशासन को अपनी रिपोर्ट सौंपी तो आईआईएमसी प्रशासन ने कमेटी के सुझावों को दरकिनार करते हुए लॉकडाउन की आड़ में पुराने फीस सर्कुलर को दुबारा लागू कर दिया। हालांकि, समिति की निष्पक्षता और सुझावों पर भी छात्र सवाल उठाते रहे हैं। ऐसे में संस्थान के छात्रों को दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए मज़बूर होना पड़ा।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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