दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में विभागाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। 13 सितम्बर से विभाग में अध्यक्ष पद खाली पड़ा हुआ है। पिछले 23 दिनों से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। विभाग में एमफिल/पीएचडी के प्रवेश होने हैं, लेकिन डीयू प्रशासन की ओर से विभाग को कोई निर्देश जारी नहीं हुए हैं। विभाग में अभी तक ऐसी स्थिति कभी नहीं बनी इसे लेकर शिक्षकों में गहरा रोष व्याप्त है। इसी को देखते हुए सभी शिक्षक एकजुट होकर बड़ी रैली करने वाले हैं।
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फ़ॉर सोशल जस्टिस की हुई बैठक में तय किया गया है कि हिंदी विभाग में प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन को विभागाध्यक्ष का कार्यभार ना सौंपे जाने को लेकर सोमवार यानी 7 सितम्बर को डीयू कैम्पस में “न्याय मार्च ” रैली निकाली जाएगी। मार्च में डीयू के अलावा, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जेएनयू, आईपी यूनिवर्सिटी, अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के छात्र, शिक्षक , शोधार्थी व सामाजिक संगठनों के लोग भाग लेंगे। रैली से पूर्व 11बजे प्रातः शिक्षक गेट नम्बर-4 आर्ट्स फैकल्टी पर एकत्रित होंगे। न्याय मार्च का नेतृत्व डॉ. केपी सिंह, प्रो. हंसराज ‘सुमन’ और डॉ. लक्ष्मण सिंह यादव करेंगे। उसके बाद यह न्याय रैली डीयू कॉलेजों से होते हुए कुलपति ऑफिस पहुंचकर अपना विरोध प्रदर्शन कर महामहिम राष्ट्रपति, एमएचआरडी, एससी, एसटी कमीशन, एससी, एसटी संसदीय समिति, यूजीसी और कुलपति को अपना ज्ञापन सौपेंगी।
फोरम के अध्यक्ष डॉ. केपी सिंह ने बताया है कि हिंदी विभाग की वरिष्ठता सूची में प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन का नाम होने के बावजूद उन्हें आज तक हिंदी विभाग का अध्यक्ष ना बनाना यह दर्शाता है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में किस तरह से जातीय भेदभाव पनप रहा है। उन्होंने कहा कि हम इस पद पर आरक्षण नहीं मांग रहे हैं बल्कि संविधान के अनुसार व विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत वरिष्ठता क्रम में जिनका नाम है उसे विभागाध्यक्ष नियुक्त ना करना डीयू प्रशासन की क्या मजबूरी है। उन्होंने बताया है कि इस मामले में सरकार पूरी तरह से हस्तक्षेप कर रही है।
फोरम व पूर्व डीयू की विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रो. श्योराज सिंह बेचैन को विभागाध्यक्ष नियुक्त न करना विश्वविद्यालय अधिनियमों का खुलेआम उल्लंघन करना है। उनका कहना है कि विभाग ने जब वरीयता सूची तैयार की हुई है और उसी के आधार पर प्रो. बेचैन विभाग में वरिष्ठ होने के नाते अध्यक्ष पद बनता है उन्होंने डीयू प्रशासन वरिष्ठता क्रम की अनदेखी करने का आरोप लगाया है और सीधे तौर पर जातीय भेदभाव का मामला बनता है।
प्रो. सुमन ने बताया है कि हिंदी विभाग की स्थापना सन 1948 में हुई थी और अब तक 20 विभागाध्यक्ष बन चुके हैं। पिछले 70-72 वर्षों में जब एक दलित प्रोफेसर सामान्य नियुक्ति में आकर जब वरिष्ठता सूची में ऊपर है।जब उनके विभागाध्यक्ष बनने का अवसर आया तो उसे रोकने का प्रयास किया जा रहा है जो कि घोर निंदनीय है। उनका कहना है कि फोरम जब तक डीयू प्रशासन का विरोध करता रहेगा जब तक कि प्रो. बेचैन को विभागाध्यक्ष नहीं बना देता।
फोरम के अध्यक्ष डॉ. सिंह ने सभी विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों, छात्रों और शिक्षकों से अपील की है कि वे 7 अक्टूबर (सोमवार) को हो रही डीयू में न्याय रैली में शामिल हों। कल 11 बजे प्रातः आर्ट्स फैकल्टी के गेट नम्बर-4 पर एकत्रित होकर अपना रोष प्रकट करना है। उन्होंने कहा कि यह रैली हमारे सम्मान और अधिकार के लिए है। इसमें अपनी एकता को दर्शना है और जल्द से जल्द हिंदी विभाग में प्रो. बेचैन को नियुक्त करना है।
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