हिंदी कविता के इतिहास में आज ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन अत्यंत पावन और पवित्र है। इसी दिन सन् 1398 में हिंदी के महान कवि कबीर दास का काशी में आविर्भाव हुआ था। कबीर को हिंदी के निर्गुण ज्ञानमार्गी संत कवियों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और अपनी कविताओं में उन्होंने धार्मिक उदारता – सहिष्णुता का संदेश दिया है और सामाजिक रूढियों के अलावा ईश्वर और उसकी साधना के नाम पर फैले हर तरह के अज्ञान का उन्होंने विरोध किया। कबीर को निर्भीक और स्पष्टतावादी माना जाता है और वे प्रखर चिंतक के रूप में देखे जाते हैं। कबीर एकेश्वरवादी थे और उन्होंने जगत और ब्रह्म में किसी भेद को मानने से इन्कार किया था और ईश्वर को सर्वव्यापी बताया। कबीर भक्तिकाल के प्रसिद्ध संत रामानंद के शिष्य थे और उन्होंने मनुष्यता को प्रेम और शांति का संदेश दिया।
कबीर को हिंदू और इस्लाम धर्म दर्शन की समन्वित परंपरा का कवि माना जाता है और वे जुलाहा थे इसलिए समुचित रूप से शास्त्र ज्ञान को पाने का मौका भी उनको नहीं मिल पाया था लेकिन, अपने अनुभवों और अनुभूतियों से कबीर ने समाज और जनजीवन में प्रचलित सार्थक-निरर्थक बातों को बहुत निकट से देखा जाना था और उनके काव्य यथार्थ को इसी अनुरूप जाना समझा जाता है।
आलोचकों का कबीर के बारे में यह भी कहना है कि उनके काव्य में समाज की वर्णाश्रम व्यवस्था के विरुद्ध क्षोभ का स्वर समाया है और इसमें व्यापक सामाजिक चेतना का समावेश है। सचमुच इन बातों को झुठलाया नहीं जा सकता। उन्होंने अपने काव्य में सर्वत्र मनुष्य जीवन में सरलता और सादगी पर बल दिया है तथा हर तरह के आडंबर और अज्ञान से मनुष्य को दूर रहने के लिए कहा है। कबीर की कविता में उनकी उलटबांसियों को महत्वपूर्ण माना गया है। प्रसिद्ध आलोचक हजारीप्रसाद द्विवेदी ने हिंदी में पहली बार कबीर नामक पुस्तक की रचना करके उनके काव्य के निहितार्थों की गहरी व्यंजना प्रस्तुत की है और उनके काव्य संसार पर आज भी लेखन किया जा रहा है। कबीर दास के काव्य की भाषा को सधुक्कड़ी कहा जाता है और कवि के रूप में हमन है इश्क मस्ताना कहकर खुद को उन्होंने कविता में प्रेम के सर्जक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज की है।
कबीर को रहस्यवादी कवि भी कहा जाता है और उन्होंने सारे लोगों को ईश्वर के प्रेम का पात्र माना है। वे जीवन में ऊँचे कर्म की महत्ता पर जोर देते थे और मनुष्य के अज्ञान को उसके तमाम दुखों का कारण मानते थे। उन्होंने सच्ची साधना से ईश्वर प्राप्ति को संभव कहा है और उनके अनुसार इसके बाद मनुष्य के जीवन का सारा भटकाव खत्म हो जाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अज्ञान मनुष्य के मन को नाना प्रकार के माया रूपी बंधनों में जकड़ देता है। कबीर संसार से मुक्ति के लिए और भटकाव से त्राण पाने के लिए ज्ञान को एकमात्र साधन समझते थे इसलिए वे ज्ञानमार्गी संत कवि माने जाते हैं।
साहित्य में गहरी सामाजिकता के साथ व्यापक मानवीय चेतना का समावेश करने वाले इस कवि का सारा जीवन काशी में व्यतीत हुआ और कहा जाता है कि शास्त्रों में वर्णित काशी में मृत्यु से मोक्ष की प्राप्ति की प्रचलित कथा का उपहास करते हूए कबीर अपने जीवन के अंतिम दिनों में मगहर चले आये थे और यहीं उनका देहांत हुआ।
कबीर ने जातिप्रथा और वर्णव्यवस्था की निंदा की है और मनुष्य की श्रेष्ठता के मूल में उसके सद्गुणों को देखा है। उन्हें सारे देश के गैर ब्राह्मणवादी धर्म परंपरा के समुदायों में सम्मान प्राप्त है और सिख धर्मग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी उनके सबद संग्रहित हैं। हिंदू धर्म में कबीरपंथ के अनुयायी एक अलग समुदाय के रूप में संगठित हैं और इस प्रकार कबीर को समाज में जागृति लाने वाले संत के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने अपनी उलटबाँसियों के जरिये समाज में प्रचलित पुराने विचारों रीति रिवाजों की कटु आलोचना की थी और वे इस रूप में युगांतकारी कवि माने जाते हैं। वे हिंदी कविता को व्यंग्य की मारक धार से सँवारने वाले कवि हैं और कविता में शास्त्रीय पांडित्य की परंपरा के समानांतर लोक मानस की सरलता और उसकी सादगी को उनके काव्य की विशिष्ट पहचान के रूप में देखा जा सकता है। इस प्रकार कबीर को हिंदी कविता की लोकधर्मी परंपरा का सच्चा पुरोधा माना जाता है।
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