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गुजरात से बीजेपी खुश, लेकिन दिल्ली एमसीडी, हिमाचल और उपचुनावों से लगा जोरदार झटका

8 दिसंबर का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। गुजरात विधानसभा चुनाव, हिमाचल विधानसभा चुनाव के नतीजों में रुझानों में अब परिणाम स्पष्ट होने लगे हैं। इसके पहले दिल्ली एमसीडी चुनाव परिणाम 7 दिसंबर को ही आ गया था। बीजेपी ने जहां गुजरात में एक बार फिर से प्रचंड जीत हासिल कर ली है। वहीं हिमाचल में कांग्रेस ने बहुमत हासिल कर लिया है इसके अलावा उपचुनावों के परिणाम भी बीजेपी के लिए बड़ा झटका लगने जैसा है।

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गुजरात में किसको कितनी सीटें मिली?
गुजरात विधानसभा चुनाव के अब तक के परिणामों के अनुसार 27 साल से सत्ता में बनी बीजेपी इस बार भी प्रचंड जीत दर्ज कर रही है। अभी तक के आंकड़ों के अनुसार संभावना जताई जा रही है कि गुजरात की 182 सीटों में भाजपा ने 150 से अधिक सीटें जीत ली हैं। वहीं आम आदमी पार्टी 5 सीटों से औऱ कांग्रेस 16 सीटों पर बढ़त बनाए है।

माना जा रहा है इस बार आम आदमी पार्टी के चुनावी मैदान में होने की वजह से बीजेपी को काफी फायदा मिला है।

गुजरात में 2 चरणों में चुनाव हुए। पहले चरण में 89 सीटों पर दूसरे चरण में 93 सीटों पर। कुल सीट 182 है और जीत के लिए 92 सीटों की जरूरत होती है।

क्या कहते है पुराने आंकड़े?
2002 के गुजरात विधानसभा चुनावों की बात करें तो बीजेपी को 127 सीटें, 2007 में 117 सीटें, 2012 में 116 सीटें और 2017 में 99 सीटें मिली थीं। वहीं कांग्रेस की बात करें तो 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी। कांग्रेस ने बीजेपी को बड़ी टक्कर दी थी।

गुजरात में फोरम4 की टीम भी पहुंची और आपको बताया था कि गुजरात की जनता क्या चाहती है। सबसे बड़ा मुद्दा मोरबी का था। मोरबी जिले के मच्छु नदी पर बना ब्रिज टूटने से इस हादसे में लगभग135 लोगों की जान चली गई थी। महंगाई, बेरोजगारी, और हिंदू राष्ट्र, बिलकिस बानो का मामला गुजरात चुनाव के प्रमुख मुद्दे रहे। लेकिन इसके बाद भी बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला। एक बात तो साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा गया है। बीजेपी की जीत से तो यहीं लगता है कि जनता पर बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी का मुद्दा ज्यादा हावी नहीं रहा जो वहां के लोगों से भी बात करके लगा। इसके अलावा राजकोट औऱ अहमदाबाद की रिपोर्टिंग के दौरान बड़ी तादाद में ऐसे लोग मिले जो आम आदमी पार्टी को वोट करना चाहते थे। परिवर्तन की लहर में आम आदमी पार्टी और काग्रेस दोनों को विकल्प समझने की वजह से इसका फायदा भाजपा को मिला।

कांग्रेस को हिमाचल में डर
हिमाचल विधानसभा चुनाव परिणाम 2022- हिमाचल में 68 सीटें हैं। यहां शुरुआती रुझानों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच जबरदस्त मुकाबला देखने को मिला। लेकिन, अब स्थिति साफ हो गई है। कांग्रेस को 39 सीटें मिलती नजर आ रही है तो बीजेपी को 26 सीटें और अन्य को 3 सीटें मिल रही है। हिमाचल प्रदेश में यह माना जाता रहा है कि यहां एक बार बीजेपी और फिर दूसरी बार कांग्रेस की सरकार बनती है। यही रवायत यहां इस बार भी देखने को मिला। इसके अलावा जरूरी मुद्दों में मंहगाई, बेरोजगाई और ओल्ड पेंशन स्कीम का मुद्दा भी काफी गरमाया। यहां पर आम आदमी पार्टी के आने से कांग्रेस का ज्यादा नुकसान नहीं हो पाया। यहां आप का खाता भी न खुला।

2017 में बीजेपी मे 44 सीटें हासिल की थी और कांग्रेस को सिर्फ 21 सीटें मिली थी लेकिन इस बार स्थिति काफी उलट है। हालांकि ये भी माना जा रहा है कि दोनों ही पार्टियां निर्दलीय उम्मीदवारों से संपर्क में रहेंगी क्योंकि कांग्रेस को डर है कि खरीद फरोख्त करके विधायकों के आंकड़ों में हेराफेरी न हो जाए।

उपचुनावों में ज्यादातर जगह बीजेपी पिछड़ी

उत्तरप्रदेश के संसदीय क्षेत्र मैनपुरी से सपा की डिम्पल यादव बीजेपी के रघुराज सिंह शाक्य से काफी आगे चल रही है।

उत्तर प्रदेश में खतौली विधान सभा सीट पर हुए उपचुनाव में राष्ट्रीय लोक दल से उम्मीदवार मदन भैया ने बीजेपी के राजकुमारी को शिकस्त दी है।

वहीं रामपुर में बीजेपी के आकाश सक्सेना ने सपा के मोहम्मद आसिम रजा को शिकस्त दी है।

राजस्थान में सरादारशहर से कांग्रेस के अनिल कुमार शर्मा बीजेपी के अशोक कुमार से आगे चल रहे हैं।

ओडिशा में पदमपुर से बरसा सिंह (बीजू जनता दल) के उम्मीदवार बीजेपी के प्रदीप से आगे चल रहे हैं।  

छत्तीसगढ़ के भानुप्रतापपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार सावित्री मनोज बीजेपी के ब्रह्मानंद से आगे हैं।

बिहार के कुरहनी में बीजेपी के केदार प्रसाद जेडीयू के मनोज कुमार से आगे चल रहे हैं।

इससे पहले दिल्ली निगम चुनावों में बीजेपी को हार मिली

आम आदमी पार्टी के वोट प्रतिशत में गुजरात में बढ़ोतरी और अन्य राज्यों में प्रदर्शन के आधार पर यह माना जा रहा है कि वह अब राष्ट्रीय पार्टी बन गई है।

इससे पहले बुधवार को आये परिणामों में दिल्ली नगर निगम के चुनावों में 15 साल से सत्ता पर काबिज बीजेपी को हटाकर आम आदमी पार्टी ने अपना नियंत्रण बना लिया है। दिल्ली नगर निगम के कुल 250 वार्डों में से आम आदमी पार्टी को 134 सीटों पर जीत मिली जबकि भाजपा को 104 सीटें और कांग्रेस को 9 सीटों में जीत मिली है। इसके अलावा 3 निदर्लीय उम्मीदवारों को जीत मिली है।
दिल्ली में सबसे बड़ा मुद्दा गंदगी का, गाजीपुर में कूड़े के पहाड़ का और सड़कें थी। बीजेपी ने यमुना नदी के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को घेरा तो आप ने कूड़े के पहाड़ को मुद्दा बनाया। आम आदमी पार्टी के कई नेताओं पर शराब घोटालों के आरोप लगे। आप के मंत्री सत्येंद्र जैन जेल में हैं। उनके भी कई वीडियो वायरल कर आम आदमी पार्टी को घेरा गया। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया पर स्कूल घोटाले के कई आरोप लगे। लेकिन ये सब जनता के लिए बड़े मुद्दे नहीं बन पाए। दिल्ली में आम आदमी पार्टी का मुफ्त बिजली, पानी और स्कूल का फॉर्मुला काम आया और यहीं कारण है कि दिल्ली एमसीडी चुनावों में बीजेपी के बड़े बड़े नेताओं ने प्रचार किया। जेपी नड्डा, गौतम गंभीर जैसे बड़े चेहरों को कमान सौंपी गई। लेकिन उसके बाद भी बीजेपी हार गई और आम आदमी पार्टी की बहुमत से अधिक सीटें मिली। लेकिन ये यहीं खत्म नहीं होता है। इसके बाद मेयर चुना जाता है।

मेयर के लिए बीजेपी का दाव
अब जब आम आदमी पार्टी ने बेशक पूर्ण बहुमत से जीत हासिल कर ली है लेकिन दिल्ली एमसीडी चुनाव होने के बाद मेयर चुना जाता है। इस पर बीजेपी दावा कर रही है कि वही अपना मेयर बनाएगी। मेयर चुनने के लिए एमसीडी में चुने हुए पार्षद ही मेयर को चुन सकते हैं दिल्ली की जनता सीधे मेयर का चुनाव नहीं कर सकती। एमसीडी की सरकार का कार्यकाल 5 साल का होता है लेकिन मेयर का कार्यकाल सिर्फ 1 साल का होता है। इसलिए हर साल मेयर चुना जाता है। इसमें एक नियम ये भी है कि 5 सालों में एक बार महिला को मेयर बनाया जाता है। इसलिए मेयर के लिए आम आदमी पार्टी की अतिशी का नाम लिया जा रहा है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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