गांधी जी के शहादत दिवस पर एनआरसी, सीएए का विरोध पूरे देश में होना था, इसलिए दिल्ली में होना तय था। प्रदर्शनकारी बस छात्र और कुछ संगठन ही थे जो ह्यूमन चेन बनाते और दिल्ली में शांतिपूर्ण प्रदर्शन का संदेश देते। गांधी की बात होती। राजघाट तक मार्च निकालते। गांधी को करीब से जानते। उस पर चर्चा होती। मगर सुबह ही खबर आई कि गांधी के ऊपर हर साल की तरह इस बार भी गोली चली। गांधी आज जहां जहां से गुजरे थे वहां वहां न जाने कितने बेगुनाहों को पुलिस की लाठी और गालियां सहन करने पड़ीं। खैर पूरा माजरा समझिये-
जामिया में छात्र तय कार्यक्रम के तहत राजघाट के लिए निकलने ही वाले थे कि एक पिस्तौल धारी खुद को राम भक्त बताते हुए सामने आया और छात्रों पर गोली चला दी। इस वक़्त पुलिस उसके पीछे मूकदर्शक बनी रही। इससे पुलिस को बहाना मिल गया और गांधी पर गोली भी चल गई। और जहां गांधी पर चर्चा होनी थी वहां गोडसे अपर चर्चा होने लगी। गोडसे रामभक्त बन गया। और गांधी आतंकवादी।
मुझे भी इस शांतिपुर्ण प्रदर्शन को कवर करना था। मगर जब देखा कि अब जामिया के छात्रों को पुलिस निकलने नहीं देगी क्योंकि हिंसा कराने का श्रेय जो जाता है वह साफ साफ दिख रहा है जिससे पता चलता है कि आंदोलन को किसी और तरफ मोड़कर कैसे खत्म करता दिया जाए। इसलिए मैंने सोचा अब राजघाट ही चलते हैं।
मित्र ने बताया कि राजघाट जाने के लिए जो 3 मेट्रो स्टेशन नजदीक हैं वे तो बंद कर दिए गए हैं।राजधानी में अब लोग एकत्र नहीं हो सकते। इसलिए उन तीनों के इतर मैंने मंडी हाउस जाने की कोशिश की। इसमें कामयाब रहा और वहां से ऑटो लेकर सीधा राजघाट पहुंच गया। राजघाट पहुचने पर मानव श्रृंखला नहीं थी लेकिन 10 नेता सीपीआई के एक बैनर थामे मानव श्रृंखला के खड़े थे। उन्होंने राष्ट्रगान गाया। इसके बाद वे वहां से अंदर गए गांधी जी को श्रद्धांजलि देने। मैं भी साथ- साथ पहुंचा। वहां से निकला तो देखा एक रिपब्लिक टीवी की रिपोर्टर खड़ी थी और सीताराम येचुरी के निकलते ही पूछा कि यह प्रदर्शन सही है या गलत? ऐसा प्रश्न इसी तरह की मीडिया से उम्मीद की जा सकती है। राष्ट्रगान गाकर प्रदर्शन करना कहाँ का गुनाह है। या नागरिकता कानून या किसी भी चीज के लिए प्रदर्शन करना क्या गुनाह है।सपोर्ट में भी तो प्रदर्शन मजबूरी में सरकार को कराना पड़ रहा है क्या उनसे यह सवाल उस रिपोर्टर ने पूछा? नहीं ।दरअसल इन्हें सवाल का उत्तर मिलना था जरूरी ताकि यह दिखा सकें कि जो जामिया में पिस्तौल से फायरिंग हुई उसमे ये नेता भी शामिल हैं। खैर मैंने देखा येचुरी कुछ नहीं बोले। रिपोर्टर ने जबरदस्ती की। तो गोदी मीडिया गो बैक के नारे लगे। फिर क्या था। उसने रिपोर्टिंग करनी शुरू की। यह वही रिपोर्टिंग है जिसे गांव गांव का बच्चा देखता है और वह हिन्दू मुस्लिम करता है। रिपोर्टर ने कहा -‘ देखिये ये लोग हिंसा करा रहे हैं। ये लोग ही हैं जो नागरिकता कानून के प्रदर्शन को मदद कर रहे हैं? ये गद्दार हैं…फिर आगे….क्या क्या बोला सुनाई नहीं दिया।
थोड़ा आगे बढ़ा तो देखा पुलिस जो भी वहां पहुंचता लड़का हो या लड़की उसे धक्का मुक्की करके गिरफ्तार कर रही थी। गाली देना तो आम था। इतने में एक पत्रकार ने पूछ ही लिया कि 3 स्टार है आपके पास आप बताईये कि किस अधिकार के तहत यहां गिरफ्तारी करा रहे हैं? कुछ नहीं बोला। पुलिस आयी और उस अधिकारी को साथ ले गयी। पत्रकार महोदय को जवाब नहीं मिला। राजघाट पर जहां देखते वहां अब सन्नाटा था। गांधी सोच रहे होंगे कि आज मेरे मरने के बाद दुनिया कितनी आजाद है। आजाड़ देश मे अघोषित आपातकाल में कितने लड़के लडकिया बलिदान दे रहे हैं।
हर तरफ डर का माहौल था। ऐसा लग रहा था कि अगर मैं भी अकेले होता और कैमरा न होता तो बेइज्जत करके मुझे भी किसी गाड़ी में घसीट लिया जाता।
वहां से निकल कर आईटीओ पहुंचे। वहां पर कुछ डीयू के छात्र जामिया आदि मुद्दों पर पुलिस की जवाबदेही के लिए पुलिस मुख्यालय आ रहे थे। इससे पहले बैरीकेडिंग कर दी गयी। तमाम फोर्स को तैनात कर दिया गया। पूरा मुख्यालय को इंडिया पाकिस्तान का बॉर्डर बना दिया गया। थोड़ी ही देर में तमाम खाली बसों को मंगाया गया। और इतने में सुनाई दिया कि एक लड़की ने अकेले ही नारेबाजी करनी शुरू कर दी। 3 स्टार वाले पुलिस ने तुरंत 3 लोगों को भेजा और कहा भर लो। उसे भरने की हिम्मत तो नहीं हुई क्योंकि पत्रकारों एक कैमरे सामने आ गए। मगर दूसरी तरफ एक लड़की फुरपाथ पर पुलिस के धक्के से मुंह बल गिर पड़ी और उस मासूम लड़की की नाजुक उंगुलियों से खून की धारा बहने लगी। कैमरे आने के बाद भी उसे बसों में ठूंसने का प्रयास किया गया। लेकिन 2 लड़कियां और आ गयी इसके बाद उन चारों लड़कियों ने कहा कि आप हमें 6 बजे के बाद हिरासत में नहीं ले सकते। प्रदर्शन में शामिल छात्राओं ने जवाब मांगा कि आप लोग वर्दी में हैं लेकिन नेमप्लेट गायब क्यों है? इसका जवाब नहीं दिया किसी ने। लेकिन लड़कों को जिस तरीके से 10 -12 को भरा गया। कॉलर खींचा गया। वो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण था। सबसे ज्यादा माजरा तब और खतरनाक लगा जब दाढी और कपड़ों को देखकर लक्ष्य बनाया जाने लगा। तब तो और जब सादी वर्दी में जिसे पुलिस मित्र बताया जाता है वे कोई कार्यकर्ता डंडा लिए साथ मे नारे लगाते हैं कि पुलिस तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं।
खैर हम वहां से निकलते हैं तो वहां भी सभी को भर लिया गया था। यानी पुलिस ने किसी को फटकने नहीं दिया। हालांकि उसके बाद भी लड़के लड़कियां इसी तरह से आती रहीं और पुलिस की शिकार बनती गईं। लोग खुद लाइव करके पत्रकारिता करके लोगों तक अपना संदेश गांधी के अहिंसा का पहुंचाने में लगे रहे। लेकिन गोदी मीडिया ने उसे आप तके दूसरे रूप में पहले ही पहुंचा दिया।
हम आ ही रहे थे कि एक जवान धीरे से आकर पूछा कि जामिया में प्रदर्शन चल रहा है। मैंने उससे कहा नहीं मालूम सर। फिर उससे मैंने कहा कि अब ऐसे गिरफ्तारी होगी तो प्रदर्शन कैसे हो पायेगा। उसने कहा- बहुत गलत हो रहा है। हम देख रहे हैं। तब तक वह पीछे मुड़ चुका था क्योंकि उनके साहब सामने आ चुके थे।
इसका मतलब समझ सकते हैं। नौकरी करने की मजबूरी और सारा हाल जानने की बात। उसने बताया कि हार नहीं माननी चाहिए। लोगों को भीड़ के साथ निकलना चाहिए। यानी वह जानता है कि भीड़ होगी तो पुलिस का हमला नहीं होगा।
खैर पूरी दिल्ली में चप्पे चप्पे पर कश्मीर के बारे में जैसा सुना वैसा ही है। आज की पुण्यतिथि कुछ इसी तरह बीती। अच्छा लगा कि गांधी के विचार आज भी गोडसे के आगे खड़े हैं। एक थप्पड़ एक गाल पर खाने पर दूसरा गाल अपने आप सामने कर देते हैं।
गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि।
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