कैसी यह महामारी है आयी, जहां सरकार नहीं ना लाज बचाई।
कोरोना महामारी का स्वरूप अब काफी भयानक हो गया है। दूसरी लहर ने सरकार पर लोगों का भरोसा खो दिया। लोगों ने सिस्टम और सरकार की नाकामियों की पोल खोल कर दी है।
याद कीजिये जब कोरोना महामारी की वजह से पिछले साल जनता कर्फ्यू लगाया गया था। लॉकडाउन लगने से पलायन का भयावह स्वरूप किसी से छुपा नहीं है। देश को महामारी की गंभीर हालत में लाकर छोड़ने का श्रेय सरकार पर ही जाता है। क्योंकि इससे पहले सरकार ने ही कहा था कि भारत ने कोरोना से जंग जीत लिया है। पिछले साल जब भारत की सरकार हम से थाली पिटवा रही थी, और टॉर्च जला रही थी। तो उसी समय अन्य देश अपने यहां कोरोना से लड़ने को लेकर रणनीतियां बना रही थीं।
प्रवासी मजदूर न जाने कितने सदा के लिए ऊपर चले गये। कोई सड़क दुर्घटना में मारा गया तो कोई भूखा प्यासा मारा गया और कोई चलती ट्रेन से कुचलकर मारा गया। जहां चलती ट्रेन इतनी अंधी हो गई कि मजदूरों को वो कुचल गई वहां सरकार ने क्या किया? पदयात्रा तो उन्हीं को याद होगा जो रोता तड़पता भाग रहा होगा, उन्हें क्या पता जो बंगाल में रैली कर रहा था? अस्पताल में बेड नहीं ,मरीज सड़क पर रो रहे हैं, जहां तहां हालत गंभीर है, घर से अस्पताल जाने के रास्ते में जान चली जा रही है, सरकारी एम्बुलेंस की भी सेवा लोगों के नसीब में नहीं आ रही।
यह भयावह नहीं तो क्या है, सरकार की असफलता? मेरे हाहाकार मचाने के बाद आप जब ऑक्सीजन पर विचार कर रहे हैं, इसी से पता चल रहा है आप कितनी बातें स्वीकार कर रहे हैं। कांप जाते है रूह मेरे जब जमीनी धरातल पर लोगों की कहानियां देखती हूं, लोगों को रोता देख मै हैरान हो जा रही हूं। बिना ऑक्सीजन के लंबी कतारों में लोग खड़े हैं। 1-2 घंटे ही नहीं 6-8 घंटे तक। लेकिन अस्पतालों में मानों बस व्यापार चल रहा हो।
आज, इस बीमारी की वजह से लोगों ने काला व्यापार शुरू कर दिया है- ब्लैक दवाई से लेकर ब्लैक ऑक्सीजन तक। कोरोना की दवाइयां देने वालो के अंदर अजीब सा अहंकार देखा जा रहा है। ऑक्सीजन की कमी से मौतौं का सिलसिला थम नहीं रहा और जब ऑक्सीजन मिल जा रहा है तो मरने के बाद श्मशान घाट तक पर जगह नहीं मिल रही है।
अब क्या ही बोलेगी जनता
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