बीते एक हफ़्ते में मेरा वॉट्सएप कई मैसेजेस से भरा हुआ है जो कि मुझे कई कॉलेजों के और मेरे अपने कॉलेज के स्टूडेंट्स ने भी किए हैं। सब का यही कहना है कि भाई आप अनावश्यक ली जा रही हॉस्टल फ़ीस और 2-3 अतिरिक्त महीनों की ली गई फ़ीस के एडजस्टमेंट के मसअले पर कुछ बोलते क्यों नहीं। देखिए मैं न तो कोई स्वघोषित युवा नेता हूँ और न कोई स्वघोषित समाजसेवक लेकिन, मैं आप लोगों की आवाज़ बनने के लिए तैयार हूँ, अपनी तरफ़ से जितना बन पड़ेगा बिल्कुल करूंगा।
अब अगली बात जो मैं कहने जा रहा हूँ उस पर कॉलेज मालिकान ज़रूर गौर करें, लगभग 18-20 मार्च से कॉलेज और हॉस्टल्स के बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी, अगर नियमित सेशन की बात की जाए तो वो लगभग मई-जून में आखिरी प्रैक्टिकल के साथ ख़त्म हो जाता है, चूंकि बच्चों से पूरे सेशन की फ़ीस पहले ही जमा करा ली जाती है तो ज़ाहिर सी बात है सामान्य हालात में वो फ़ीस वसूल भी हो जाती है। लेकिन जब पूरे देश में महामारी फ़ैली हुई थी और कॉलेज हॉस्टल मार्च में ही बंद होने शुरू हो गए थे तो बाकी महीनों की फ़ीस का क्या हुआ, यही इन बच्चों का सवाल है और उसी का जवाब और हल कॉलेज मालिकों से जानना चाहते हैं। मैं कॉलेज के प्रशासकों से यही अनुरोध करना चाहता हूँ कि इन सब बच्चों की सुनिए, जो फ़ीस पहले ही जमा हो चुकी है उसका कुछ हल निकालिए, उसको यूँ ही व्यर्थ जाने से बचाइए, क्योंकि हर बच्चे की पृष्ठभूमि एक जैसी नहीं है, इनके मां-बाप बहुत मेहनत से एक-एक पैसा जोड़कर इन्हें महानगरों में पढ़ा रहे हैं। इनकी आवाज़ों को इस तरह अनसुना मत कीजिए।
लॉकडाउन के दौरान जब किसी भी कोर्स के बच्चों ने न ही कोई क्लास ली और न ही हॉस्टल की किसी सुविधा का इस्तेमाल किया तो उस समय-सीमा की फ़ीस को आप कोर्स फ़ीस या अगले साल हॉस्टल लेने वाले बच्चों की हॉस्टल फ़ीस में एडजस्ट क्यों नहीं कर देते। चलो ठीक है, आप कुछ दिन चली अपनी ऑनलाइन क्लासेस का पैसा भी काट लीजिए उसके बाद भी तो इन बच्चों की फ़ीस एक बड़ा हिस्सा अनयूज़्ड ही रह गया न। उसका क्या, क्या वो पैसा हराम का था, दो नंबर का था, बिल्कुल नहीं, किसी का बाप किसान है तो किसी का बाप कोई छोटा सा व्यापारी, आपके पास तो हर साल नए एडमिशन आते हैं तो आप शायद ये नहीं समझ पायेंगे कि फ़सल का बर्बाद होना क्या होता है, साहूकार का कर्जा क्या होता है या फ़िर धंधे में नुकसान होना क्या होता है।
मैं इस बात से भी बिल्कुल इत्तेफ़ाक रखता हूँ कोरोना लॉकडाउन के दौरान शिक्षण संस्थानों को भी नुकसान हुआ है, लेकिन इसका मतलब ये तो है नहीं कि आप दूसरे का पेट काटकर अपने नुकसान की भरपाई करेंगे। देखिए इस महामारी से नुकसान हम सब को हुआ है, इसलिए उसकी भरपाई भी तभी हो पाएगी जब हम एक दूसरे का सहयोग करेंगे और इस समय आपके कॉलेजेज़ में पढ़ने वाले बच्चों और उनके अभिभावकों को आपके सहयोग की ज़रूरत है।
आखिर में ज़्यादा लंबा न करते हुए सभी कॉलेजों के प्रशासकों से मेरा यही अनुरोध है कि आप इन बच्चों की 2-3 महीनों की फ़ीस को ज़ाया होने से बचाइए, मेरा यही अनुरोध है कि हराम की कमाई से आप लोग भी बचिए , इनका सहयोग कीजिए, इन बच्चों की तरफ़ से पूरे सहयोग की ज़मानत मैं लेता हूँ, अपनी बात मैं दुष्यंत जी के एक मशहूर शेर से ख़त्म करना चाहूँगा कि …
“सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं है,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए”
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