दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) से सम्बद्ध कॉलेजों में लंबे समय से प्राचार्य के पदों पर नियुक्तियां ना होने से ये पद खाली पड़े हुए हैं। इन कॉलेजों में सबसे ज्यादा दिल्ली सरकार के कॉलेज हैं जो पिछले 9 महीनों से बिना गवर्निंग बॉडी के चल रहे हैं, हालांकि इनमें काम चलाऊं ट्रंकेटिड गवर्निग बॉडी है, कुछ में तो दोनों ही नहीं। और अब कॉलेज में बिना गवर्निंग बॉडी के प्राचार्य और शिक्षकों की नियुक्ति संबंधी विज्ञापन निकाले जा रहे हैं। दिल्ली सरकार डीयू को गवर्निंग बॉडी के लोगों की लिस्ट कई बार भेज चुकी है, लेकिन बहाना बनाकर उसे वापिस भेज दिया जाता है या उसे पास नहीं किया जाता। इसकी वजह से शिक्षकों, कर्मचारियों व छात्रों की योजनाएं ठप पड़ी हैं।
बता दें कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत 28 कॉलेज आते हैं, जिनमें से दर्जन ऐसे कॉलेज हैं जो अस्थायी रूप से या ओएसडी प्राचार्यों के सहारे चल रहे हैं। इन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी के ना होने से प्राचार्य पदों पर नियुक्तियां नहीं हो पाई हैं। इन कॉलेजों में भले ही गवर्निंग बॉडी नहीं है मगर ट्रंकेटिड गवर्निंग बॉडी ने प्राचार्य व शिक्षकों के पदों के विज्ञापन निकाल दिए। जबकि कुछ कॉलेजों में प्राचार्य पदों में आरक्षण की वजह से पद आरक्षित होना चाहिए था, लेकिन सभी कॉलेजों ने प्राचार्य के पदों को सामान्य (अनारक्षित) निकाला है। इसे लेकर डीयू एससी, एसटी शिक्षकों में आक्रोश व्याप्त है।
दिल्ली विश्वविद्यालय एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स फोरम के चेयरमैन व पूर्व विद्वत परिषद के सदस्य प्रो. हंसराज ‘सुमन’ ने बताया है कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले 28 कॉलेजों में पिछले 9 महीने से गवर्निंग बॉडी नहीं है, जिसके कारण लंबे समय से स्थायी प्राचार्यों की नियुक्तियां नहीं हो पा रहीं और इसलिए एडहॉक शिक्षक स्थायी रूप से सेवा नहीं दे पा रहे। ओबीसी कोटे के कर्मचारियों के पदों को मार्च 2020 तक भरने के लिए यूजीसी ने निर्देश जारी किए हैं, लेकिन कोई भी कॉलेज इन पदों के विज्ञापन नहीं निकाल रहे हैं।
दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले डीयू के श्री अरबिंदो कॉलेज, अरबिंदो कॉलेज (सांध्य), मोतीलाल नेहरू कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज सांध्य, भगत सिंह कॉलेज, भगत सिंह कॉलेज (सांध्य ), सत्यवती कॉलेज, सत्यवती कॉलेज, (सांध्य), राजधानी कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज, भारती कॉलेज, गार्गी कॉलेज, मैत्रीय कॉलेज, इंद्रा ग़ांधी फिजिकल एजुकेशन, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भगिनी निवेदिता कॉलेज आदि कॉलेजों में दो से पांच साल से प्राचार्यों के पद खाली पड़े हैं।
प्रो सुमन ने बताया है कि प्राचार्य के पदों पर भी आरक्षण होते हुए भी डीयू में 79 कॉलेज ऐसे हैं जिनमें से एक पद पर भी एससी, एसटी, ओबीसी व दिव्यांग श्रेणियों पर नियुक्ति नहीं हुई है। डीयू में जब संसदीय समिति ने वर्ष-2015 में दौरा किया था तब रजिस्ट्रार, कुलपति व डीन ऑफ कॉलेजिज को कहा गया था कि प्राचार्य पदों पर आरक्षण दिया जाए। समिति का कहना था कि कॉलेजों के इन पदों को एक जगह क्लब करके रोस्टर बनाया जाए और यूजीसी व डीओपीटी दिशानिर्देश के अनुसार आरक्षण देकर पदों का विज्ञापन निकाला जाना चाहिए। यदि प्राचार्य पदों को क्लब करते हैं तो 50 फीसद पदों पर आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों की नियुक्ति होगी।
इसे इस तरह से देखा जा सकता है। एससी (12), एसटी (06), ओबीसी (20), दिव्यांग श्रेणी (04) पद बनते हैं। मगर अभी तक डीयू ने प्राचार्य के पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर नहीं बनाया है और न ही पदों का विज्ञापन ही निकाला, जिससे सारे पद खाली पड़े हुए हैं। प्रो. सुमन का कहना है कि किसी भी कॉलेज या संस्थान में प्राचार्य महत्वपूर्ण पदों में स्वीकार किया जाता है। यही सबसे अधिक समय कॉलेज/संस्थान को देते हैं, प्रोफेसर व प्राचार्य बराबर रैंक के माने जाते हैं। जब प्रोफ़ेसर में आरक्षण दिया जा रहा है तो प्राचार्य पदों पर क्यों नहीं?
उनका कहना है कि दिल्ली सरकार के अधिकांश कॉलेजों में लंबे समय से कुछ तो 5 साल या उससे अधिक से प्राचार्य के पद खाली पड़े हुए हैं। इसकी वजह से शैक्षिक व गैरशैक्षिक पदों पर रिक्तियां नहीं निकाली गईं। अगर पदों की रिक्तियां निकाली गईं तो आरक्षण नहीं दिया गया है। इसलिए हमारी कुलपति से मांग है कि दिल्ली सरकार के कॉलेजों में जल्द ही गवर्निंग बॉडी के लोगों की लिस्ट भेजा जाए ताकि नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू हो सके।
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