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अटल जी को उनकी कविता गीत नया गाता हूं के जरिए श्रद्धांजलि

 दो अनुभूतियां -पहली अनुभूति बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं गीत नहीं गाता हूं लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर अपनों के मेले में…