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अब बातचीत नहीं बल्कि समाधान चाहते हैं किसान, पढ़िए किसान आंदोलन में अब तक क्या-क्या हुआ?

किसान अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हुए हैं। आपको बता दें कि कृषि बिलों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज 10वां दिन है और अभी भी किसानों का दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन जारी है। किसानों के नेताओं के साथ आज विज्ञान भवन में पांचवें दौर की बैठक हुई। जिसमें किसान अब सरकार से बातचीत नहीं बल्कि समाधान चाहते हैं। किसान चाहते हैं कि तीनों कृषि बिलों को सरकार वापस ले। अगर सरकार किसानों की मांगों को नहीं मानती है तो वो 8 दिसंबर को भारत बंद करेंगे। लेकिन सरकार की ओर से किसानों के साथ अगली बैठक 9 दिसंबर को होगी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि किसान आंदोलन का रास्ता छोड़कर बातचीत का रास्ता अपनाएं। अब देखना ये है कि किसान 8 दिसंबर को किसान भारत बंद करेंगे या 9 दिसंबर तक बातचीत का इंतजार करेंगे?

8 दिसंबर को होगा भारत बंद 

देशभर के किसान आंदोलन को महाआंदोलन बनाने की तैयारी कर रहें हैं। देश के हर राज्य के किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को भारत बंद में अपना समर्थन दिया है। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी भी इसके समर्थन में हैं। इस संस्‍था के तहत देशभर के 400 से ज्‍यादा किसान संगठन आते हैं। यानी ये आंदोलन सबसे बढ़ा आंदोलन होने वाला है। तृणमूल कांग्रेस, राष्‍ट्रीय लोकदल जैसी पार्टियों ने खुलकर आंदोलन का समर्थन किया है तो बाकी विपक्षी दल भी सरकार को घेरे हुए हैं। आज तेजस्वी यादव ने भी कृषि बिलों के विरोध में पटना के गांधी मैदान पहुंचकर किसानों को समर्थन दिया।

इतना बड़ा कैसे बना किसान आंदोलन?

दरअसल पंजाब के किसान लगातार 2 महीने से केंद्र सरकार के बनाए कृषि बिलों का विरोध कर रहे हैं। आपको याद होगा, पंजाब में कृषि बिलों के विरोध में रेल रोको आंदोलन चलाया था, जिसमें 24, 25 और 26 सितंबर को पंजाब जाने वाले ट्रेने बंद कर दी थी। किसान रेलवे ट्रैक पर बैठ गये थे। उनका कहना था कि सरकार जब तक ये बिल वापस नहीं लेती तब तक किसान पटरियों पर से नहीं हटेंगे लेकिन सरकार पर इन सबका कोई असर नहीं पड़ा तो किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ मार्च का ऐलान किया। 25 नवंबर से शुरू हुआ ये आंदोलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसमें शुरूआत में पंजाब और हरियाणा के किसान शामिल हुए लेकिन धीरे धीरे दूसरे राज्य के किसान संगठन भी इसका हिस्सा बनते गये। किसानों का दिल्ली तक का सफर काफी मुश्किल रहा। सरकार ने भरपूर कोशिश की किसानों को रोकने के लिए जगह जगह बैरिकेट लगाए गए। सड़कों पर बड़े बड़ें पत्थर रख दिये गये ताकि किसान दिल्ली की सीमाओं को पार न कर सकें। इतना ही नहीं किसानों को रोकने के लिए वॉटर कैनन और आंसू गैस के गोले छोड़े गये। इन सबसे किसान ओर आक्रोश में आ गए। उनका कहना था कि क्या हम इस देश का हिस्सा नहीं है?क्या हमें अपनी बात रखने का हक नहीं है? किसान आंदोलन में पुसिल का जो रवैया रहा वो बेहद शर्मनाक रहा। किसान उन सीमाओं पर तब तक डटे रहेंगे जब तक कि सरकार ये कानून वापस नहीं ले लेती।

 

कौन से कानून हैं जिनका किसान कर रहे हैं विरोध? 

केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए तीनों कृषि कानूनों को लेकर किसान विरोध कर रहें हैं। पहला बिल, कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 है। दूसरा बिल, कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020 और तीसरा बिल आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 हैं। किसानों का मानना है कि यह विधेयक धीरे-धीरे एपीएमसी (एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमिटी) यानी आम भाषा में कहें तो मंडियों को ख़त्म कर देगा और फिर निजी कंपनियों को बढ़ावा देगा जिससे किसानों को उनकी फ़सल का उचित मूल्य नहीं मिलेगा। किसानों का ये भी कहना है कि ये तीनों कानून अंबानी और अडानी जैसे पूंजीपतियों के लिए सरकार ने बनाए हैं।

कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 

ये एक ऐसा क़ानून होगा जिसके तहत किसानों और व्यापारियों को एपीएमसी की मंडी से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी। सरकार का कहना है कि वह एपीएमसी मंडियां बंद नहीं कर रही है बल्कि किसानों के लिए ऐसी व्यवस्था कर रही है जिसमें वह निजी ख़रीदार को अच्छे दामों में अपनी फ़सल बेच सके।

कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन व कृषि सेवा पर करार कानून 2020, कानून में क्‍या है?

यह क़ानून कृषि क़रारों पर राष्ट्रीय फ़्रेमवर्क के लिए है। ये कृषि उत्‍पादों की बिक्री, फ़ार्म सेवाओं, कृषि बिज़नेस फ़र्मों, प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं और निर्यातकों के साथ किसानों को जुड़ने के लिए सशक्‍त करता है। आसान शब्दों में कहें तो किसान सीधे एग्री-बिजनस फर्मों, प्रोसेसर्स, होलसेलर्स, एक्‍सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स से भविष्‍य की फसल का पहले से तय कीमत पर कॉन्‍ट्रैक्‍ट कर सकेंगे।

आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम 2020 क्या है? 

बड़ी कंपनियों को स्‍टॉक जमा करने की अनुमति होगी यानी वे किसानों को अपने मुताबिक चला सकती हैं। अनाज, दालों, तेल प्‍याज और आलू जैसी फसलों को जरूरी वस्‍तुओं की सूची से बाहर करना। इससे वे स्‍टॉक होल्डिंग लिमिट से बाहर हो जाएंगे। इससे कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र/एफडीआई को बढ़ावा मिलेगा क्‍योंकि निवेशकों के मन से दखलअंदाजी का डर कम होगा।

किसानों से सरकार की बातचीत की आज पांचवी बैठक 

कृषि कानून को लेकर विज्ञान भवन में किसान नेताओं और सरकार के बीच आज पांचवीं बैठक हुई। कृषि कानून को लेकर केंद्रीय मंत्रियों के साथ किसान नेताओं की चौथी बैठक 3 दिसंबर को हुई थी। इससे पहले, एक दिसंबर और 13 नवंबर को किसान नेताओं के साथ मंत्री स्तर की वार्ता हुई थी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि 9 दिसंबर को दोबारा बैठक होगी। उन्होंने किसानों से कहा है कि सर्दी का समय है, कोरोना का भी डर है ऐसे में किसान नेताओं से अपिल है कि वो बुजुर्ग और बच्चों को घर भेज देंगे तो वो ये उनके लिए अच्छा होगा।

मीडिया कर रही है किसान आंदोलन को बदनाम?

गोदी मीडिया सच में सरकार की गोदी में बैठी है। मीडिया ने हर बार की तरह इस आंदोलन को भी आंतकवादी, पाकिस्तानी, खालिस्तानी बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इंडिया टीवी पर रजत शर्मा ने एक वीडियो अपने प्राइम टाइम में चलाया और अपना वहीं प्रोपेगेंडा दिखाया। उस वीडियों में ऐसा लग रहा था जैसे किसान मोदी तेरी कब्र खुदेगी के नारे लगा रहे हो। सोशल मीडिया पर तमाम संघ के लोगों ने भी किसानों को खालिस्तानी और पाकिस्तानी बताया। दरअसल कुछ लोगों की दिक्कत ये है कि वो इस तरह के विरोध, आंदोलन और प्रदर्शनों को सरकार विरोधी और देश विरोधी बताने लग जाते हैं। आपको बता दें कि इसी बीच कुछ किसानों पर एफआईआर भी की गई। किसानों के इस आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश भी की गई इसे शाहीन बाग 2 भी कहा गया। तमाम फोटोशॉप फोटो को शेयर करके उन्हें खालिस्तानी और पाकिस्तानी बताया गया।

इस पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने 4 दिसंबर को किसान आंदोलन पर होने वाली कवरेज पर चिंता जाहिर की। उन्होंने लिखा कि किसानों के आंदोलन को बिना किसी ठोस प्रमाण के खालिस्तानी, राष्ट्रविरोधी जैसे विशेषण चस्पा कर दिये जिनसे ये धारणा बन सकती है कि आंदोलन अंवैधानिक है। पत्रकारिता की साख इससे प्रभावित हो सकती है।

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

About the Author

कोमल कश्यप
कोमल स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।

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