कविताः जाने क्यों लोग
-सरिता कैसे-कैसे हैं ये लोग… ना जानें क्यों मजहबों के पीछे लड़ते हैं लोग ना जाने क्यों भगवान को बाटतें है लोग ईश्वर अल्लाह को मानते हैं ये लोग पर फिर भी न जाने क्यों…
-सरिता कैसे-कैसे हैं ये लोग… ना जानें क्यों मजहबों के पीछे लड़ते हैं लोग ना जाने क्यों भगवान को बाटतें है लोग ईश्वर अल्लाह को मानते हैं ये लोग पर फिर भी न जाने क्यों…
-सरिता अधूरी ख्वाइशें को पूरा करने कुछ अधूरे सपनों को पूरा करने जाओ तुम फिर लौट आना… उन अनजान पलों में तुम अपने बनकर मदमस्त हवाओं में खुशबू बनकर चलती सांसो की वजह बनकर जाओ…