तो माला प्यार की तोड़ देना, वक्त की मांग है
जब प्रयास विनम्रता के सारे असफल हो जाएं द्वार देवताओं के प्रार्थनाएं सारी अनसुनी हो जाएं तो बंधन मनुहार के तोड़ देना, वक़्त की मांग है निभाते रहे हम ही रीत सदा प्रीत की हारकर…
जब प्रयास विनम्रता के सारे असफल हो जाएं द्वार देवताओं के प्रार्थनाएं सारी अनसुनी हो जाएं तो बंधन मनुहार के तोड़ देना, वक़्त की मांग है निभाते रहे हम ही रीत सदा प्रीत की हारकर…
-संजय आए हम लेकर पीड़ा का सागर, हम ही इसके गायक हैं, भले हों उपेक्षित आज, पर हम ही कल के नायक हैं। मिला हमें सदा ही वो बिखरे हों काँटें जिस पथ में, सुख व हम हैं ऐसे ही, चाँद सितारे हों अमावस्या के नभ में, बीता बचपन, बीती जवानी, बीता सारा जीवन अभावों में और सहते रहे दंश हम कितने अभिशापों का ख़ुद के ही भावों में, पीया है विष हमने दुनिया भर के आघातों का, सो इस जग में हम ही नीलकंठी परम्परा के वाहक हैं, भले हो उपेक्षित आज पर हम ही कल के नायक हैं। हम लिखा के लाए आँखों में ही मंज़िल का खोना, हर दिल अज़ीज़ होके भी किसी के दिल में न होना, देखे हैं हमने अपने ख़्वाबों के जनाज़े अपनी ही आँखों में, अभागे ऐसे स्वपसीने की ठंडक ख़ुद को ही हासिल न होना, सिखलाया है हम ही ने जग को, बदलना ख़ून को पसीने में, सो लिखने को परिवर्तन की गाथाएं हम ही लायक़ हैं, भले हों उपेक्षित आज पर हम ही कल के नायक हैं। हम उनमें से हैं जिन्होंने देखा है सावन में भी पतझड़, दरिया बनाने वाले हम,…
– संजय भास्कर आने वाले दिनों में जब हम सब कविता लिखते पढ़ते बूढ़े हो जायेंगे उस समय लिखने के लिए शायद जरूरत न पड़े पर पढ़ने के लिए एक मोटे चश्मे की जरूरत पड़ेगी…
– संजय भास्कर अक्सर जब कभी मिल जाती है पुरानी डायरी तब लगभग हर उस शख्स के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है जिन्होंने कभी इस डायरी में कुछ सपने संजोये होंगे डायरी में…