लोकतंत्र की समाधि
सुबह उठता हूँ, कूकती है कोयल, चहकते हैं पंछी बहती है हवा और बज उठती हैं घण्टियां जोर-जोर से फड़फड़ाते हैं पर्दे और फट्ट की आवाज से बन्द हो जाती हैं खिड़कियां मैं बाहर निकलकर…
सुबह उठता हूँ, कूकती है कोयल, चहकते हैं पंछी बहती है हवा और बज उठती हैं घण्टियां जोर-जोर से फड़फड़ाते हैं पर्दे और फट्ट की आवाज से बन्द हो जाती हैं खिड़कियां मैं बाहर निकलकर…