मीत
-अंकित कुंवर जेई न समझे मित्र का मान, होई दुखदायी कहूँ महान। सच्चा मित्र सम्मान पाहिजे, शत्रु विधाता पापित काहिजे। केहू कहि दुख हरि हमारो, देखत देखत गुण बौछारो। अवगुण अस्त व्यस्त…
-अंकित कुंवर जेई न समझे मित्र का मान, होई दुखदायी कहूँ महान। सच्चा मित्र सम्मान पाहिजे, शत्रु विधाता पापित काहिजे। केहू कहि दुख हरि हमारो, देखत देखत गुण बौछारो। अवगुण अस्त व्यस्त…
-रचना दीक्षित बचपन,सपने, यादें, विरासत छोड़ आई थी,रख आई थी, सहेज आई थी अपने घर की दहलीज़ के भीतर कभी ढूंढती हूँ, खोजती हूँ, टटोलती हूँ, तलाशती हूँ कहीं भी कुछ भी जब तब पूंछते…
-रचना दीक्षित जाने क्यों नहीं बदलते कभी पिता मेरे हों या मेरे बच्चों के जब देखो रहते हैं पिता बचपन में देखा तो पिता बड़ी हुई तो भी पिता उम्र के इस पड़ाव पर जब…
-रचना दीक्षित सोचती हूँ माँ है बहुरूपिया या गिरगिट एक ही दिन में बदलती है असंख्य रूप रंग पर सब सार्थक लस्सी शरबत चाय में चीनी बन के घुलना रोटियों पर घी बन के पिघलना…