कविताः मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं
तू गवाह बन जाये मेरे इश्क का, मैं तेरा ईद बन जाऊँ तू बन मेरी मोहब्बत का चाँद, मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं सारे जहां को छोड़ आया हूँ तू आज मेरी गीता…
तू गवाह बन जाये मेरे इश्क का, मैं तेरा ईद बन जाऊँ तू बन मेरी मोहब्बत का चाँद, मैं तेरे लिए मुसलमाँ बन जाऊं सारे जहां को छोड़ आया हूँ तू आज मेरी गीता…