फेसबुकिया देशभक्तों और तथाकथित राष्ट्रवादियों पर गजब का व्यंग्य, आप भी पढ़िये
-विवेक आनंद सिंह “ऐ ख़ाक-ए-वतन अब तो वफ़ाओं का सिला दे मैं टूटती सांसों की फ़सीलों पे खड़ा हूँ” -जावेद अकरम फ़ारूक़ी बचपन बीता, जवानी ढलने को आई है, बहुतों की ढल भी गई और…