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गुलाब को काँटों के बीच खिलकर महकना तो है ही

कविताः गुलाब को काँटों के बीच खिलकर महकना तो है ही

-प्रभात अन्धकार है अभी तो प्रकाश एक दिन मिलेगा ही रात में जूगनू और तारों के बाद सूरज खिलेगा ही हैं पुष्प जो खूबसूरत, काँटों से दबे चीखते ही हैं कुछ कीचड़ के आगोश में कई…