कविताः मगर क्या
मन में है कि मैं कुछ आज लिखूं, मगर क्या अपने मूल्यों को खोता संविधान लिखूं दर्दों से कराहता हिन्दुस्तान लिखूं गुड़िया, दामिनी के शोर को लिखूं या फिर मुल्क की सियासत के चोर लिखूं…
मन में है कि मैं कुछ आज लिखूं, मगर क्या अपने मूल्यों को खोता संविधान लिखूं दर्दों से कराहता हिन्दुस्तान लिखूं गुड़िया, दामिनी के शोर को लिखूं या फिर मुल्क की सियासत के चोर लिखूं…