कविताः अनाथ है, फिर भी खुश है
न कोई साथ था, न कोई पास था मैंने फिर भी एक अकेली बच्ची को हंसते देखा। न जाने कौन सी मजबूरी थी जो उसे छोड़ दिया उस नादान को इस बेगैरत दुनिया में…
न कोई साथ था, न कोई पास था मैंने फिर भी एक अकेली बच्ची को हंसते देखा। न जाने कौन सी मजबूरी थी जो उसे छोड़ दिया उस नादान को इस बेगैरत दुनिया में…