सफ़र में आँधी, तूफान और बारिश का मिलना लाज़मी है। वरना धूप ही सागर को ख़त्म कर दे और मलाल भी न हो। इतने दिनों बाद बादलों की गड़गड़ाहट और हवा का शोर कानों को सुकून दे रहा था।
लीजिये मैडम अब तो बारिश की बूंदों ने भी आपकी सुन ली। वरना यहाँ इस सुनसान जंगल में तुम्हारी कौन सुनेगा।
क्योंकि मौसम बेदर्द नहीं होता। ये ऊँचे लंबे पेड़, सूखे पत्ते यही तो मेरे सुकुन का ज़रिया है पेड़ पौधे, फूल पत्ते उन पर मंडराती तितलियाँ सबका अपना महत्त्व है। जिस पत्थर पर तुम बैठे हो अगर ये पांव के नीचे आ जाए तो व्यक्ति उसी पत्थर से टकराकर गिर भी सकता है और उसी पत्थर से एक नया रास्ता भी बनाया जा सकता है।
ये वही जगह है जिसकी मुझे तलाश थी। जहां आकर अपनी थकान मिटाई जा सके, बेपरवाह होकर जिया जा सके और इन हवाओं के साथ बहा जा सके।
(फ़ोटो – दिल्ली विश्वविद्यालय दक्षिणी परिसर की है)
साभारः कोमल कश्यप