रोहिथ वेमुला की तीसरी बरसी है। आज के दिन ही यानी 17 जनवरी, 2016 को हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में पीएचडी के इस छात्र ने खुदकुशी कर ली थी। रोहिथ के नाम दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक लक्ष्मण यादव ने फेसबुक पर एक पत्र लिखा है। आप खुद पढ़िए औऱ एक पीड़ित छात्र और शिक्षक दोनों के मर्म को अनुभव कीजिए-
साथी रोहिथ वेमुला,
सबसे पहले तो तुम्हें क्रांतिकारी सलाम साथी। आज 17 जनवरी है। तुमको गए दो साल हो गए। तुम आज भी बहुत टूटकर याद आते हो। आज के दिन फिर से तुमसे अपनी वही एकमात्र शिकायत करूँगा कि साथी! यूँ हार नहीं मानना था, लड़ना और जीतना था। माना कि लड़ाई बहुत कठिन और लंबी थी, जिसे लड़ने में सब कुछ झोंक दिया था तुमने; लेकिन ये सही नहीं किये तुम। साथी आज तुम्हारे बाद भी तुमसे ऊर्जा लेकर हम जैसे जाने कितने लड़ रहे हैं। काश! तुम भी आज होते और हम साथ मिलकर नारे लगा रहे होते- ‘ब्राह्मणवाद की छाती पर, बिरसा फूले अम्बेडकर’। साथी! ये नारे अब और गूंजने लगे हैं। मुझ जैसा ‘चुप्पा’ युवा तक अपने कैम्पस में अब ज़ोर से ये नारा लगता है, तो तुम याद आते हो। तुम हममें जिंदा हो।
साथी रोहिथ! तुमको पता है कि अब देश भर के कैम्पस में माहौल बदल रहा है। जहाँ एक तरफ़ वंचित-शोषित तबके के युवाओं में एक चेतना आई है और वे खुलकर बोल रहे हैं, तो वहीँ सत्ता अब और सूक्ष्म तरीके से हमला कर रही है। महीनों तुम्हारी फ़ेलोशिप बंद करने वाली सरकार अब तो सबकी फ़ेलोशिप बंद करती जा रही है। सीटें आधी कर दी, कैम्पसों में अपने चापलूसों को भर दिया, बोलने वालों की आवाज़ें प्रकारांतर से दबा रही है। शोधार्थी को गाइड धमकाता-समझाता है, तो नौकरियों के नाम पर सत्ता एक रीढ़विहीन चापलूस पैदा कर रही है। अब कैम्पसों में आवाज़ उठाना और कठिन हो गया है। तुम्हारे जाने के दो साल बाद भी कैम्पस बदले नहीं, बल्कि और बदतर हो गए हैं। तुम होते, तो तुमको डीयू बुलाता और दिखाता।
साथी रोहिथ! हम आज भी मानते हैं कि तुम्हारी सांस्थानिक हत्या की गई। तुमको पता नहीं होगा कि तुम देशभर के युवाओं और विश्वविद्यालयों को झकझोर गए। तुम बता गए कि आज़ादी के सत्तर साल बाद भी देश की अकादमिक संस्थाओं में ब्राह्मणवादी, मनुवादी, सामंती, पितृसत्ता का ही कब्ज़ा है, जिसे तुमने नंगा कर दिया। इतना ही नहीं, तुमने जाने कितने द्रोणाचारियों को नंगा कर दिया, जो प्रगतिशील लिबास में छिपे थे। आज पिछले एक साल में अपने दिल्ली विश्वविद्यालय में हम जैसे युवा बाकायदा इस कब्ज़े को देख पा रहे हैं, झेल रहे हैं और उसके खिलाफ़ खड़े होने की हिम्मत जुटा रहे हैं। तुमने हिम्मत दी, आज जाने कितने रोहिथ पैदा हो रहे हैं, लड़ रहे हैं। अब सवाल और पूछे जाने लगे हैं, आज के युवा बेचैन हैं। तुम होते, तो ….
साथी रोहिथ! तुम वैज्ञानिक बनना चाहते थे, तुम लड़ना और बदलना चाहते थे, लेकिन तुम्हारे सपनों की हत्या करने वाली सत्ताएँ आज भी ज़िंदा हैं और लगातार वही कर रही हैं, लेकिन अब चीज़ें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। तुमने जाने कितने प्रगतिशील संगठनों तक को अपने बैनर-पोस्टर में आंबेडकर की तस्वीर लगाने को मजबूर कर दिया, तुमने सत्ता चला रही पार्टी को आंबेडकर के सामने ला खड़ा किया, बशर्ते तमाशे जैसा ही सही, लेकिन अब तो आंबेडकर के राजनैतिक क़ातिल तक बेचैन हो गए। जाने कितने युवा आज भी तुम्हारे ख़त को पढ़ते होंगे, बेचैन होते होंगे। तुमने कैम्पस ही नहीं, देशभर के युवाओं को झकझोरा, तो आज कहीं चंद्रशेखर लड़ रहा है, तो कहीं जिग्नेश बोल रहा है। तुम जहाँ कहीं होगे, तो क्या सोच रहे होगे, कभी सपने में आकर मुझे ज़रूर बताना। इसी बहाने मिलते रहना।
एक बार फिर से तुम्हें इंकलाबी सलाम करने का मन है, ज़िन्दा रहना हममें, हम लड़ेंगे साथी, जब तक लड़ने की ज़रूरत बाकी होगी…
अलविदा दोस्त
तुम्हारा दोस्त, तुम्हारा हमख्वाब युवा
लक्ष्मण यादव
(17 जनवरी 2018)

श्रीमान मैं आपका आभारी रहूंगा की मुझे आपसे पढ़ने का मौका मिला और मेरी हर बात पर आपकी जो जिरह मुझसे होती थी आज मेरे वो ही काम आ रहा है,
श्रीमान एक अनजाने के लिए आपने जो पत्र लिखा है वो उस तक तो नहीं जा सकता लेकिन इस पत्र का एक एक शब्द हम जैसे लाखों युवाओं को क्रांतिकारी बनने कि और जरूर कामयाब करेगा ।
आपको बहुत मानने वाला छात्र अनस