Articles by विकास पोरवाल
शिक्षक दिवस : सिर्फ केक के साथ न कट जाए यह दिन
रात अंधेरी हो चली है। नगर से बाहर नदी के किनारे एक कुटिया में दीपक जल रहा है। इस दीपक के प्रकाश में दो आकृतियां नजर आ रही हैं। एक किसी वृद्ध की जिनका तेज…
अमृता: इमरोज का वो कैनवास, जिससे सबने केवल इश्क चुराया
प्रिय अमृता, माफ करना, बिना पूछे या जाने ही तुम्हें प्रिय लिख रहा हूं। लेकिन क्या करूं, तुम्हारे बारे में पढ़-पढ़ कर बस इतना ही समझ पाया कि तुम प्रेम की किसी मूरत जैसी ही…
शैलेंद्र गीतों का चित्रकार, जिसके लिखे में आंसू और मन का चेहरा नजर आता था
चांदनी रात में सागर किनारे उल्टी पड़ी नाव पर दो प्राणी बैठे थे। एक गंभीर और दूसरा कुछ अनमना सा। अनमने अधीर ने यौवन में ही चढ़ आए अपने मोटापे को थोड़ा संभालते हुए कहा,…
अमेजन की आग- फेफड़ा जल रहा है और हम धुएं से मोहब्बत कर रहे हैं
रोम जल रहा था तब नीरो बंसी बजा रहा था। किसी सदी का यह वाकया आज कहावत बनकर प्रसिद्ध है। हालांकि, जब ऐसा हो रहा था, तब मैं नहीं था। मैंने नहीं देखा-सुना कि जलते…