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73वां गणतंत्र दिवस कई मायनों में अलग है, जानिये कुछ रोचक जानकारी जो जरूरी है

14 अगस्त 1947 को 12 बजे के बाद हमारा देश आजाद हुआ था। जिस प्रकार एक व्यक्ति के जीवन में कुछ नियम कानून होते है जीवन यापन करने के लिए उसी प्रकार एक देश चलाने के लिए कुछ नियम कानूनों की जरूरत पड़ती है। आजादी के बाद हम सभी स्वतंत्र तो हो गऐ थे परंतु अब देश चलाने के लिए कुछ नियमों की जरूरत थी, जिसकी शुरुआत 9 दिसम्बर 1946 को दिल्ली के काउंसिल चैंबर के  पुस्तकालय मे संविधान सभा की पहली बैठक के रूप में हुई जिसके अस्थायी अध्यक्ष के रूप में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा ने अध्यक्षता सम्भाली तथा 13 दिसम्बर 1946 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव रखा तथा संविधान की रूप रेखा संविधान सभा में सदस्यों को बताई। यह संकल्प संविधान सभा द्वारा 22 जनवरी, 1947 को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था। 14 अगस्त, 1947 की देर रात सभा केन्द्रीय कक्ष में समवेत हुई और ठीक मध्यरात्रि में स्वतंत्र भारत की विधायी सभा के रूप में कार्यभार ग्रहण किया।

29 अगस्त, 1947 को संविधान सभा ने भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए डॉ. बी. आर. अम्बेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति का गठन किया। संविधान के प्रारूप पर विचार-विमर्श के दौरान सभा ने पटल पर रखे गए कुल 7,635 संशोधनों में से लगभग 2,473 संशोधनों को उपस्थित किया, परिचर्चा की एवं निपटारा किया।

26 नवंबर, 1949 को भारत का संविधान अंगीकृत किया गया और 24 जनवरी, 1950 को माननीय सदस्यों ने उस पर अपने हस्ताक्षर किए। कुल 284 सदस्यों ने वास्तविक रूप में संविधान पर हस्ताक्षर किए। जिस दिन संविधान पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे, बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही थी, इस संकेत को शुभ शगुन माना गया। 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हो गया। उस दिन संविधान सभा का अस्तित्व समाप्त हो गया और इसका रुपांतरण 1952 में नई संसद के गठन तक अस्थाई संसद के रूप में हो गया।

संविधान को बनाने मे 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन का समय लगा, जिसमें देश के प्रत्येक नागरिक के अधिकार सुनश्चित किए गए हैं।

73 वां गणतत्र दिवस

इस गणतंत्र दिवस का सभी को बेसब्री से इंतजार है और हो भी क्यो ना यह दिन होता ही इतना खास है देश के राष्ट्रीय त्य़ोहारों मे से एक जो हमको इस देश मे रहने का गर्व महसूस कराता है कि किस प्रकार हमारा देश एक फूल की टोकरी के समान है जिसमें अलग-अलग फूल समाहित है और एक साथ है।

जिस प्रकार यह देश है और इसकी झलक दिल्ली में 26 जनवरी के दिन परेड के दौरान राजपथ पर निकाली झांकियों मे मिलती है। इससे देश की शक्ति का पूरे विश्व को पता चलता है और इसके साथ कई शौर्य गाथाओं का पता चलता है और इस दिन उन वीरों को सम्मानित किया जाता है जो इस देश के लिए कुर्बान हुए तथा अपनी वीरता दिखाई।  इस दिन राष्ट्रपति राजपथ पर झंडा फहराते हैं।

वैसे यह गणतंत्र दिवस इसलिए भी खास है क्योकि देश मे इतनी बड़ी कोरोना महामारी चल रही है जिसकी वजह से ज्यादा लोग इस सम्मेलन मे शामिल नही हो पाएंगे और जो होना चाहते है उनको कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज का प्रमाण पत्र दिखाना होगा तब जाकर उन लोगो को समारोह मे शामिल होने दिया जाएगा।

परेड कहां होता है?

हर साल गणतंत्र दिवस की परेड राजपथ पर होती है, लेकिन इसकी पहली परेड इर्विन स्टेडियम में हुई थी।

लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी, कई बार इससे पहले परेड की जगह बदली गई। 1950 से 1954 के बीच गणतंत्र दिवस परेड का आयोजन कभी किंग्सवे कैंप, कभी लाल किला तो कभी रामलीला मैदान में होता था। 1955 के बाद से गणतंत्र दिवस की परेड रायसीला पहाड़ी से शुरू होकर राजपथ, इंडिया गेट से गुजरते हुए आठ किलोमीटर की दूरी तय करके लाल किले पर खत्म होती है

इस साल किन-किन राज्यों को मिला अपनी झांकी दिखाने का मौंका

जैसा की हम जानते है हर वर्ष कुछ राज्यों को मौंका मिलता है अपनी झांकी दिखाने का उसी प्रकार इस वर्ष भी यह मौका 12 राज्यों को मिला है- इसमें अरुणाचल प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मेघालय, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों को शामिल किया गया है तथा इसके साथ ही मंत्रालय से जुड़ी 9 झांकियों को भी इसमें शामिल किया गया है।

रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि भारतीय वायुसेना के 75 विमानों का भव्य फ्लाई-पास्ट, प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया के माध्यम से चयनित 480 नर्तकों द्वारा सांस्कृतिक प्रदर्शन, 75 मीटर लंबाई के 10 स्क्रॉल का प्रदर्शन और 10 बड़े एलईडी स्क्रीन लगाए जाने जैसे कार्यक्रम बुधवार को गणतंत्र दिवस परेड में पहली बार होंगे।

वीर पुरस्कार

जैसा की हम जानते है की प्रत्येक वर्ष वीरता के लिए पुरस्कार वितरीत किये जाते है और इसी प्रकार इस वर्ष भी वितरित किए जाएंगे जिसमें कुल 939 पुलिस कर्मियों को पदक से सम्मानित किया गया है। 189 वीरता पुरस्कारों में से अधिकांश, 134 कर्मियों को जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में उनकी वीरता के लिए सम्मानित किया जा रहा है। 47 कर्मियों को वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में वीरतापूर्ण कार्रवाई के लिए और 01 व्यक्ति पूर्वोत्तर क्षेत्र में वीरतापूर्ण कार्रवाई के लिए सम्मानित किया जा रहा है। वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाले कर्मियों में जम्मू-कश्मीर पुलिस से 115, सीआरपीएफ से 30, आईटीबीपी से 03, बीएसएफ से 02, एसएसबी से 03, छत्तीसगढ़ पुलिस से 10, ओडिशा पुलिस से 09 और महाराष्ट्र पुलिस से 07 और शेष अन्य राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों से हैं।

गणतंत्र दिवस में आए कुछ नये बदलाव

गणतंत्र दिवस की परेड में पहला बदलाव यह है कि इस बार गणतंत्र दिवस का समारोह 10 बजे शुरू न होकर 10.30 बजे शुरु होगा। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक कम विजिबिलिटी की वजह से फ्लाईपास्ट नही दिख पाता था इसलिए यह बदलाव हुआ। इस बार समारोह में ऑटो चालकों, सफाई करने वाले कर्मचारियों के लिए सीटें रिजर्व होगी। राजपथ पर दोनों तरफ 10 एलईडी स्क्रीन लगाई जाएगी ताकि दूर बैठे लोगों को कार्यक्रम स्पष्ट रूप से दिख सके। इस बार समारोह में औषधीय पौधों के बीज दिए जाएगे ताकि लोग निमंत्रण पत्र को फेंकने की बजाय पौधों के बीजों को लगाये तथा वातावरण में अपना योगदान दें।

गणतंत्र दिवस 2022 की थीम ‘इंडिया@75’ है। ये थीम आजादी के अमृत महोत्सव को ध्यान में रखते हुए तय की गई है।

बीटिंग रीट्रीट में इस बार 1000 से ज्यादा ड्रोन अमृत महोत्सव के थीम पर शो दिखाएंगे। ड्रोन से एयर शो करने वालों में अब भारत का नाम भी गिना जाएगा।1000 ड्रोन जिस तकनीक द्वारा शो दिखाएगे वह आईआईटी दिल्ली द्वारा तैयार किया गया है। इससे पहले इस तकनीक का इस्तेमाल चीन, रूस तथा अमेरिका करता था।

बीटिंग रिट्रीट 29 जनवरी की क्या हैं तैयारियां

26 जनवरी की परेड के बाद 29 जनवरी की शाम को विजय चौक पर ‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह का आयोजन होता है। समारोह में नौसेना, वायु सेना और केंद्रीय सशस्‍त्र पुलिस बलों के पारम्‍परिक बैंड अलग अलग धुन बजाते हैं और देश के लिए शहीद हुए जवानों को याद करते हैं. लेकिन, इस बार ‘बीटिंग द रिट्रीट’ में बजाई जाने वाली धुन अबाइड विद मी नहीं बजाई जाएगी. यह धुन पिछले 70 सालों से बजता आ रहा था. दरअसल, ये धुन हर साल ‘बीटिंग द रिट्रीट‘ में बजाई जाती है.

26 जनवरी पर चार दिवसीय समारोह होता है, जिसमें सबसे आखिरी कार्यक्रम ‘बीटिंग द रिट्रीट’ ही होता है. यह कार्यक्रम कल नई दिल्ली के ऐतिहासिक विजय चौक में आयोजित होता है. बीटिंग रिट्रीट एक सदियों पुरानी सैन्य परंपरा है, जब सेनाएं सूर्यास्त के बाद युद्ध मैदान से वापस लौटती थीं. जैसे ही वापसी का बिगुल बजता था, लड़ाई रोक दी जाती थी, हथियार रख दिए जाते थे और युद्ध स्थल छोड़ दिया जाता था. उसी से जोड़कर भारत में इसे साल में एक बार आयोजित किया जाता है.

ऐसे में इस कार्यक्रम में अलग अलग बैंड की परफॉर्मेंस के बाद रिट्रीट का बिगुल वादन होता है, जब बैंड मास्टर राष्ट्रपति के समीप जाते हैं और बैंड वापिस ले जाने की अनुमति मांगते हैं, तब सूचित किया जाता है की समापन समारोह पूरा हो गया है.

-रितिक (पत्रकारिता के छात्र)

Disclaimer: इस लेख में अभिव्यक्ति विचार लेखक के अनुभव, शोध और चिन्तन पर आधारित हैं। किसी भी विवाद के लिए फोरम4 उत्तरदायी नहीं होगा।

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